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वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्त पड़ती रफ़्तार टिकाऊ विकास लक्ष्यों के लिए ख़तरा

विश्व सकल उत्पाद वृद्धि 2019 में 2.7 प्रतिशत रहने का अनुमान.
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विश्व सकल उत्पाद वृद्धि 2019 में 2.7 प्रतिशत रहने का अनुमान.

वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुस्त पड़ती रफ़्तार टिकाऊ विकास लक्ष्यों के लिए ख़तरा

आर्थिक विकास

अनसुलझे व्यापारिक तनावों, अंतरराष्ट्रीय नीतिगत अनिश्चितता और कमज़ोर होते व्यापारिक भरोसे के बीच विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था व्यापक मंदी का सामना कर रही है. संयुक्त राष्ट्र ‘विश्व आर्थिक स्थिति एवं संभावना’ 2019 की मध्यावधि रिपोर्ट में आशंका ज़ाहिर की गई है कि धीमी पड़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था के चलते टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के प्रयासों पर संकट मंडरा रहा हैं.

आर्थिक वृद्धि के कमज़ोर होने से शिक्षा, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और टिकाऊ अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में निवेश भी ख़तरे में पड़ सकता है. रिपोर्ट के अनुसार घरेलू और बाहरी कारणों से सभी बड़ी विकसित अर्थव्यवस्थाओं और बड़े विकासशील देशों में वृद्धि की संभावना प्रभावित हुई है.

रिपोर्ट बताती है कि 2018 में विश्व सकल उत्पाद में वृद्धि तीन फ़ीसदी रही लेकिन 2019 में यह आंकड़ा 2.7 प्रतिशत और 2020 में 2.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो इस साल जनवरी में जारी किए गए पूर्वानुमान से कम है.

रिपोर्ट में कई नकारात्मक जोखिमों को चिन्हित किया गया है जिससे विश्व अर्थव्यवस्था में विकास की गति धीमी हो सकती है और विकास प्रक्रिया को नुकसान पहुंच सकता है. इन जोखिमों में व्यापारिक तनाव में बढ़ोतरी, वित्तीय स्थितियों में अचानक गिरावट और जलवायु परिवर्तन के त्वरित प्रभाव शामिल हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अर्थशास्त्री और आर्थिक विकास के लिए सहायक महासचिव इलियट हैरिस ने कहा कि “मौजूदा मंदी से निपटने के लिए व्यापक और अच्छी तरह से लक्षित नीतियों की आवश्यकता है. यह स्पष्ट है कि टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि से परे देखा जाना चाहिए. ऐसे आर्थिक प्रदर्शन के नए और अधिक मजबूत उपायों की पहचान करने की जरूरत है जो असमानता, असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की लागत को उचित तरीके से दर्शाते हों।”

व्यापारिक तनाव आर्थिक वृद्धि के लिए ख़तरा

अनसुलझे व्यापार विवादों और ज़्यादा सीमा शुल्क के बीच, विश्व व्यापार की अनुमानित वृद्धि 2018 में 3.4 प्रतिशत के बाद 2019 में 2.7 प्रतिशत पर लुढ़क गई है. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अतिरिक्त शुल्क और बदले की कार्रवाई से विकासशील देशों में अप्रत्याशित असर हो सकता है. कमज़ोर अंतरराष्ट्रीय व्यापार गतिविधि की लंबी अवधि भी निवेश की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा सकती है और मध्यम अवधि में उत्पादकता वृद्धि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है.

विकास की मंद गति और मुद्रास्फ़ीति कम होने के परिणामस्वरूप प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने अपनी मौद्रिक नीति के रुख को बदला है. इन हालिया मौद्रिक नीति बदलावों ने विश्व्यापी वित्तीय बाज़ारों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी प्रवाह को स्थिर करने में मदद की है. हालांकि रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अधिक लंबी अवधि का मौद्रिक समायोजन वित्तीय असंतुलन को और बढ़ा सकता है. इससे कर्ज़ संचय और वित्तीय स्थिरता के लिए मध्यम अवधि के जोखिम बढ़ने की आशंका है.

गरीबी उन्मूलन की संभावनाओं को झटका

गहरी संरचनात्मक कमज़ोरियों का सामना करते हुए कई बड़े विकासशील देश मंदी से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं या वहां विकास की गति धीमी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ़्रीका, पश्चिमी एशिया और लातिन अमेरिका तथा कैरिबियाई देशों में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि बहुत कमज़ोर रहने की उम्मीद है.

इससे टिकाऊ विकास लक्ष्यों के लिए अतिरिक्त चुनौतियां खड़ी हो रही हैं जिसमें 2030  तक ग़रीबी को सार्वभौमिक रूप से मिटाने का लक्ष्य भी शामिल है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग़रीबी मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बनी हुई है. ग़रीबी का कम होना शहरीकरण के प्रभावी प्रबंधन पर टिका हुआ है और यह अफ़्रीका और दक्षिण एशिया के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है. इन दो क्षेत्रों में सबसे अधिक ग़रीब लोग हैं.

जलवायु परिवर्तन के विरूद्ध कार्बन प्राइसिंग से मिलेगी मदद

प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और प्रभाव का बढ़ना दर्शाता है कि संवेदनशील अर्थव्यवस्थाओं में जलवायु परिवर्तन का ख़तरा बढ़ रहा है. रिपोर्ट में विश्वव्यापी जलवायु नीति के लिए एक मज़बूत और समन्वित बहुपक्षीय दृष्टिकोण का आह्वान किया गया है जिसमें कार्बन प्राइसिंग या  कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र का उपयोग शामिल है.

कार्बन पर मूल्य निर्धारित करने से उपभोग और उत्पादन की पर्यावरणीय लागतों पर कार्रवाई सुनिश्चित करने में मदद मिल सकेगी. रिपोर्ट में निजी क्षेत्र द्वारा सम्मिलित कार्बन डाइ ऑक्साइड कीमतों के बढ़ते उपयोग को दर्शाया गया है। इससे न केवल उच्च ऊर्जा दक्षता और लागत बचत होती है बल्कि फर्मों को बेहतर नीतिगत बदलावों के लिए तैयार किया जाता है।