जैवविविधता ख़तरे में, 10 लाख प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर

इक्वाडोर का लीफ़ फ़्रॉग.
UNDP Ecuador
इक्वाडोर का लीफ़ फ़्रॉग.

जैवविविधता ख़तरे में, 10 लाख प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर

एसडीजी

मानवीय गतिविधियों से प्रकृति को होने वाली हानि पर अहम जानकारी देती एक नई संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट दर्शाती है कि कुछ ही दशकों में दस लाख से ज़्यादा प्रजातियां विलुप्त होने की आशंका है. संयुक्त राष्ट्र जैवविविधता विशेषज्ञों का कहना है कि तत्काल और प्रभावी कदमों के अभाव में पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रयास विफल होने की आशंका है.

2005 के बाद यह पहली बार है जब ऐसी रिपोर्ट को तैयार किया गया है. पेरिस में ‘ग्लोबल असेसमेंट स्टडी’ को  जारी करते हुए संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की महानिदेशक ऑड्री अज़ोले ने बताया कि इन तथ्यों के सामने आने से दुनिया को एक नोटिस मिल गया है. 

“इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लेने के बाद कोई भी यह दावा नहीं कर पाएगा कि उन्हें जानकारी नहीं थी. हम दुनिया में जीवन की विविधता को नष्ट करना जारी नहीं रख सकते. भावी पीढ़ियों के लिए यह हमारी ज़िम्मेदारी बनती है.”

जैवविविधिता की सार्वभौमिक अहमियत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र में विविधिता का संरक्षण करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबला करना.  

रिपोर्ट को यूनेस्को मुख्यालय में 130 सरकारी प्रतिनिधिमंडलों के सामने उनकी अनुमति के लिए रखा गया है. इस रिपोर्ट में 50 देशों के 400 से ज़्यादा विशेषज्ञों के काम को स्थान मिला है और इसके समन्वयन का दायित्व जर्मनी के बॉन शहर स्थित ‘इटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफ़ॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज़ (IPBES) ने संभाला. 

रिपोर्ट में प्रकृति, पारिस्थितिकी तंत्रों की मौजूदा स्थिति पर जानकारी के अलावा अहम अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों जैसे टिकाऊ विकास लक्ष्यों और पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते पर हुई प्रगति पर जानकारी दी गई है. रिपोर्ट उन कारकों की भी जांच करती है जिनके चलते पिछले 50 सालों में जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्रों में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिला है. इसकी मुख्य वजह भूमि और समुद्र के इस्तेमाल में बदलाव, जीवों के प्रत्यक्ष दोहन, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण को बताया गया है. 

चार में से एक प्रजाति विलुप्ति के कगार पर

जिन वनस्पतियों और जीवों पर ख़तरा मंडरा रहा है उनका ज़िक्र करते हुए रिपोर्ट कहती है कि मानवीय गतिविधियां पहले की तुलना कहीं अधिक प्रजातियों को जोखिम में डाल रही हैं. पौधों और जीव समूहों की करीब 25 फ़ीसदी प्रजातियां विलुप्त के ख़तरे का सामना कर रही हैं – अगर जैवविविधता के गायब होने वाले कारकों से निपटने के लिए प्रयास नहीं हुए तो दस लाख से अधिक प्रजातियां कुछ ही दशकों में विलुप्त हो जाने की आशंका है. 

रिपोर्ट का कहना है कि मूल निवासियों और स्थानीय समुदायों द्वारा कई प्रयास होने के बावजूद 2016 तक, पालतू स्तनधारी पशुओं की 6,190 में से 559 प्रजातियां विलुप्त हो गईं. उनका इस्तेमाल भोजन तैयार करने और कृषि उत्पादन में किया जाता था. एक हज़ार प्रजातियों पर ख़तरा अब भी मंडरा रहा है. 

रिपोर्ट बताती है कि ककई फ़सलें ऐसी हैं जिनकी जंगली प्रजातियों का होना दीर्घकाली खाद्य सुरक्षा के नज़रिए से ज़रूरी है लेकिन उन्हें प्रभावी संरक्षण नहीं मिल पा रहा है. साथ ही पालतू स्तनपायी पशुओं और पक्षियों की जंगली प्रजातियों के लिए भी हालात विकट हो रहे हैं. इसके चलते भविष्य में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ज़रूरी सहनशीलता को झटका लग सकता है. 

रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर स्थानों पर पहले की तुलना में कहीं अधिक भोजन, ऊर्जा और सामग्री को पहुंचाया जा रहा है लेकिन ऐसा प्रकृति की क़ीमत पर हो रहा है और भविष्य में यह योगदान जारी रखने की उसकी क्षमता प्रभावित हो रही है. 

समुद्री प्रदूषण में दस गुना वृद्धि

प्रदूषण के मुद्दे पर मिश्रित वैश्विक रुझान देखने को मिले हैं लेकिन कुछ क्षेत्रों में वायु, जल और भूमि प्रदूषण का बढ़ना अब भी जारी है. “समुद्री जल में प्लास्टिक प्रदूषण में 1980 के बाद से 10 गुना बढ़ोत्तरी देखने को मिली है जिससे कम से कम 267 प्रजातियों के लिए ख़तरा बढ़ गया है. इनमें 86 फ़ीसदी समुद्री कछुए, 44 फ़ीसदी समुद्री पक्षी और 43 प्रतिशत समुद्री स्तनपायी जीव हैं. 

अपनी तरह की यह पहली रिपोर्ट है जिसमें मूल निवासियों और स्थानीय लोगों के ज्ञान, मुद्दों और प्राथमिकताओं को भी शामिल किया गया है. आईपीबीईएस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उसका मिशन जैवविविधता के टिकाऊ इस्तेमाल, दीर्घकालीन मानव कल्याण और टिकाऊ विकास के लिए नीतिनिर्माण की प्रक्रिया को मज़बूत करना है. 

आईपीबीईएस चेयर सर रॉबर्ट वॉटसन ने बताया, “प्रजातियों, पारिस्थितिकी तंत्रों और आनुवांशिकी विविधता के खोने से मानव कल्याण को वैश्विक और पीढीगत ख़तरा पैदा हो रहा है. मानव जीवन में प्रकृति के अमूल्य योगदान की रक्षा करना आने वाले दशकों की एक निर्धारक चुनौती होगी. नीतियां, प्रयास और कार्रवाई – हर स्तर पर – में तभी सफलता मिलेगी जब वे सर्वश्रेष्ठ ज्ञान और तथ्यों पर आधारित होंगें.”