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टिकाऊ विकास लक्ष्य-16: शांति, न्याय और सशक्त संस्थाएं

कज़ाख़्स्तान के अलमाती शहर में 18 वर्ष की एक लड़की जो तस्करी का शिकार बनी
© UNICEF/Pirozzi
कज़ाख़्स्तान के अलमाती शहर में 18 वर्ष की एक लड़की जो तस्करी का शिकार बनी

टिकाऊ विकास लक्ष्य-16: शांति, न्याय और सशक्त संस्थाएं

एसडीजी

विकास, आर्थिक वृद्धि, ख़ुशहाली और अस्तित्व के लिए हिंसा सबसे बड़ी और विनाशकारी चुनौती है.  टिकाऊ विकास एजेंडा के किसी भी पहलू को साकार करना तभी संभव होगा जब आम लोगों को सुरक्षा मिले और उनके मानवाधिकारों को सुनिश्चित किया जाए.  2030 एजेंडा का 16वां लक्ष्य शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों के निर्माण और सभी स्तरों पर जवाबदेह संस्थाओं की स्थापना को समर्पित है.

टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडे से जुड़े 17 लक्ष्यों में से किसी एक लक्ष्य पर हम हर महीने अपना ध्यान केंद्रित करते हैं. इसी श्रृंखला में इस महीने हम टिकाऊ विकास के सोलहवें लक्ष्य पर जानकारी साझा कर रहे हैं जिसका उद्देश्य दुनिया में शांतिपूर्ण एवं समावेशी समाजों को प्रोत्साहन देना, सभी के लिए न्याय सुलभ कराना और असरदार एवं जवाबदेह संस्थाओं का निर्माण करना है. 

विश्व के कुछ हिस्सों में सशस्त्र संघर्षों के कारण हताहतों की संख्या बढ़ रही है, जिसके कारण देशों के भीतर और सीमाओं के पार, बड़े पैमाने पर विस्थापन हो रहा है. इसके परिणामस्वरूप विकट मानवीय संकट पैदा हो रहा है जिसका विपरीत असर विकास प्रयासों के हर पहलू पर पड़ रहा है.

हिंसा के अन्य रूप – अपराध, यौन तथा लैंगिक हिंसा - भी विश्व के लिए चुनौती हैं. युवाओं की स्थिति विशेषकर शोचनीय है. 

दुनिया में होने वाली कुल हत्याओं में से 43% में 10 से 29 वर्ष की आयु के युवा शामिल होते हैं और  मानव तस्करी के 33 फ़ीसदी से ज़्यादा शिकार बच्चे थे. हिंसा और भी घातक रूप ले सकती है. 

ग़ैर-जवाबदेह क़ानूनी और न्यायिक प्रणालियों की संस्थागत हिंसा और लोगों को उनके मानवाधिकारों तथा बुनियादी स्वतंत्रताओं से वंचित करना भी हिंसा और अन्याय के ही रूप हैं. 

भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, चोरी और टैक्स चोरी के कारण विकासशील देशों को प्रति वर्ष 12.6 खरब अमेरीकी डॉलर के लगभग नुक़सान होता है जबकि इस राशि के उपयोग से बहुत बड़ी संख्या में लोगों को कम से कम छह वर्ष तक 1.90 अमेरीकी डॉलर की अंतरराष्ट्रीय ग़रीबी रेखा से ऊपर उठाया जा सकता है.

भारत और एसडीजी लक्ष्य-16

भारत में न्यायपालिका पर विचाराधीन मुकदमों का भारी बोझ है, हालांकि मुकदमों का बोझ हल्का करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं. 2018 में लंबित मुक़दमों की संख्या 3.3 करोड़ थी.

निचली अदालतों में 2.84 करोड़ मामले लंबित हैं, उच्च न्यायालय में 43 लाख जबकि सुप्रीम कोर्ट में अटके मामलों की संख्या करीब 58 हज़ार है. 

भारत सरकार के अनेक प्रयासों के ज़रिए न्यायपालिका को सशक्त बनाने के लिए प्राथमिकता दी जा रही है.  इनमें जनशिकायत समाधान प्रणाली का 'प्रगति प्लेटफॉर्म' और गांवों में 'ग्राम न्यायालयों' सहित न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास जैसे प्रयास शामिल हैं.

एसडीजी-16 के मुख्य उद्देश्य

- सभी स्थानों पर हिंसा के सभी रूपों और संबद्ध मृत्यु दरों में उल्लेखनीय कमी करना

- बच्चों को यातना और उनके साथ हिंसा के सभी रूपों, दुराचार, शोषण, और तस्करी को ख़त्म कराना

- राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर क़ानून के शासन को प्रोत्साहन और सब के लिए न्याय की समान रूप से सुलभता सुनिश्चित करना

- 2030 तक, धन और हथियारों के अवैध प्रवाह में उल्लेखनीय कमी करना, चोरी हुई परिसंपत्तियों को खोज निकालने और लौटाने की व्यवस्था सशक्त करना और हर प्रकार के संगठित अपराधों का सामना करना

- भ्रष्टाचार और रिश्वतख़ोरी के सभी रूपों में उल्लेखनीय कमी करना

- सभी स्तरों पर असरदार, जवाबदेह और पारदर्शी संस्थाओं को विकसित करना

- सभी स्तरों पर मांग के अनुरूप, समावेशी, भागीदार और प्रतिनिधित्वपूर्ण निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित करना

- वैश्विक प्रशासन तंत्र की संस्थाओं में विकासशील देशों की भागीदारी का दायरा बढ़ाना और सशक्त करना

- 2030 तक, जन्म पंजीकरण सहित सबके लिए क़ानूनी पहचान देना

- राष्ट्रीय क़ानूनों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुरूप सूचना की सार्वजनिक सुलभता तथा बुनियादी स्वतंत्रताएं सुनिश्चित करना

- हिंसा रोकने और आतंकवाद तथा अपराध का सामना करने के लिए, अंतरराष्ट्रीय सहयोग के ज़रिए संबद्ध राष्ट्रीय संस्थाओं को सशक्त करना, विशेषकर विकासशील देशों में सभी स्तरों पर क्षमता निर्माण करने के माध्यम से

- टिकाऊ विकास के लिए भेदभाव-विहीन क़ानूनों और नीतियों को लागू और प्रोत्साहित करना

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