टीकाकरण से तैयार हो सकता है - ख़सरा जैसे रोग के प्रकोप से ‘प्रतिरक्षा का कवच’

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ़) ने बुधवार को कहा कि वर्ष 2010 और 2017 के बीच औसतन दो करोड़ 11 लाख करोड़ बच्चों को ख़सरा का पहला टीका नहीं लगा. संगठन ने इस टीके का महत्व बताते हुए कहा कि इससे ख़सरा जैसे रोग से ‘प्रतिरक्षा का कवच’ तैयार हो सकता है.
यूनीसेफ़ के अनुसार, अगर बच्चे इतनी बड़ी संख्या में ख़सरा के टीके से वंचित रह जाएंगे तो ख़सरा के विश्व स्तर पर अधिक तेजी से फैलने की आशंका बढ़ जाएगी.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हेनरिएटा फ़ोर ने कहा, "विश्व स्तर पर ख़सरा के प्रकोप की शुरुआत दस वर्ष पहले ही हो गई थी."
2019 के शुरुआती तीन महीनों के दौरान विश्व स्तर पर ख़सरा के एक लाख 10 हज़ार से अधिक मामले दर्ज किए गए थे.
पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान दर्ज किए गए मामलों की तुलना में यह 300 गुना वृद्धि है. वर्ष 2017 में ख़सरा के कारण एक लाख 10 हज़ार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी जिनमें ज़्यादातर बच्चे थे. ये संख्या उससे पिछले वर्ष की तुलना में 22 प्रतिशत अधिक थी.
यूनीसेफ़ ने कहा कि ख़सरा की रोकथाम के लिए वैसे तो बच्चों को दो टीके ‘अनिवार्य’ रूप से लगाए जाने चाहिए लेकिन सुविधा की कमी, ख़राब स्वास्थ्य प्रणालियों, अशांति और कुछ मामलों में टीके से डर के कारण 2017 में इसके विश्वव्यापी कवरेज में केवल 85 प्रतिशत की गिरावट आई जोकि पिछले दशक में अपेक्षाकृत स्थिर रही थी.
हालाँकि 67 प्रतिशत की दर से, दूसरी ख़ुराक के लिए विश्वव्यापी कवरेज बहुत कम है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने टीकाकरण के कवरेज को 95 प्रतिशत तक करने का सुझाव दिया है.
इस प्रकार ‘हर्ड इम्यूनिटी’ का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है, यानी बड़ी संख्या में लोगों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जा सकती है.
हेनरिएटा फ़ोर ने कहा, "ख़सरा का संक्रमण उन बच्चों की तलाश में रहता है जिन्हें टीके नहीं लगे. लेकिन अगर हम इस ख़तरनाक लेकिन रोकथाम योग्य रोग को फैलने से रोकना चाहते हैं तो हमें ग़रीब और अमीर, सभी देशों में प्रत्येक बच्चे का टीकाकरण करना होगा."
हाल के आंकड़ों के अनुसार उच्च आय वर्ग वाले देशों में लगभग 94 प्रतिशत लोगों ने ख़सरा का पहला टीका लगवाया. लेकिन दूसरा टीका लगवाने वालों की दर 91 प्रतिशत ही है.
अमेरिका उन उच्च आय वर्ग वाले देशों में पहले स्थान पर है जिसमें लोगों ने पहली ख़ुराक ही नहीं ली. वहाँ ऐसे बच्चों की संख्या लगभग 25 लाख थी. इसके बाद फ्रांस में छह लाख और फिर ब्रिटेन में पाँच लाख बच्चों को ख़सरा से बचने के टीके नहीं लगे. ये आंकड़े 2010 और 2017 की उसी अवधि के हैं.
निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में स्थिति चिंताजनक है.
उदाहरण के लिए 2017 में नाइजीरिया में 12 महीने से कम उम्र के 40 लाख बच्चों को ख़सरा से बचने का पहला टीका नहीं लगा.
इस आय समूह के देशों में नाइजीरिया पहला देश था, जहाँ इतनी बड़ी संख्या में बच्चे ख़सरा के टीके से वंचित रह गए. इसके बाद भारत में 29 लाख, पाकिस्तान और इंडोनेशिया में 12-12 लाख और इथियोपिया में 11 लाख बच्चों को ख़सरा का पहला टीका नहीं लगा.
दूसरा टीका लगाए जाने के मामले में तो स्थिति और भी बदतर है. वर्ष 2017 में ख़सरा के टीके से वंचित बच्चों वाले 20 मुख्य देशों में से नौ देशों ने दूसरी ख़ुराक देनी शुरू भी नहीं की है.
उपसहारा अफ्रीका के 20 देशों ने अपने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में दूसरा टीका शामिल नहीं किया है, जिससे हर साल लगभग एक करोड़ 70 लाख शिशुओं के ख़सरा का शिकार होने की उच्च आशंका है.
हेनरिएटा फ़ोर कहती हैं, "खसरा बहुत संक्रामक है."
उनका कहना है, "टीकाकरण का कवरेज बढ़ाना महत्वपूर्ण है लेकिन इसके अतिरिक्त उसके स्तर को सही ख़ुराक पर बरक़रार रखना भी ज़रूरी है. लोगों को ख़सरा से प्रतिरक्षा का कवच इसी तरह से सुनिश्चित किया जा सकता है."
इस मुहिम में मीज़ल्स एंड रूबेला इनीशिएटिव और गावी, द वैक्सीन अलायंस यूऩीसेफ़ के साथ है. इन सहभागियों की मदद से यूनीसेफ़ निम्नलिखित कार्य कर रहा: