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समस्याओं की नब्ज़ पकड़ने में 'सफल रहा है' श्रम संगठन

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की शताब्दी वर्षगांठ.
ILO/Marcel Crozet
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की शताब्दी वर्षगांठ.

समस्याओं की नब्ज़ पकड़ने में 'सफल रहा है' श्रम संगठन

एसडीजी

संघर्ष और शांति काल में, लोकतंत्र और तानाशाही में, विऔपनिवेशीकरण और शीत युद्ध के दौरान, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) सामाजिक प्रगति के लिए हुए प्रयासों में अग्रणी भूमिका निभाता आया है. संगठन की शताब्दी वर्षगांठ के अवसर पर यूएन महासभा को संबोधित करते महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि श्रम संगठन ने लोगों की चिंताओं और समस्याओं की नब्ज़ पकड़ने में निरंतर सफलता पाई है.

यूएन महासचिव ने कहा कि "हम एक गहरी अनिश्चितता, व्यवधान और तकनीकी बदलाव के दौर में रह रहे हैं. कृत्रिम बुद्धिमता (आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस) जैसी अभिनव तकनीकें अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूत बनाएंगी और टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करेंगी. लेकिन श्रम बाज़ार में हमें कई व्यवधानों का भी सामना करना पड़ेगा - बड़ी भारी संख्या में नौकरियां चली जाएंगी और नए अवसर भी पैदा होंगे."

महासचिव गुटेरेश ने आगाह किया कि कामकाज के सिद्धांतों में भी बदलाव आएंगे - काम, आराम और अन्य पेशों के बीच रिश्तों में भी. "अभी हम इसके लिए तैयार नहीं है."

भविष्य में नज़र आ रही इन्हीं चुनौतियों से निपटने की तैयारियों के तहत श्रम संगठन शताब्दी वर्ष के दौरान 'कामकाज के भविष्य' पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.  

यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि भावी मुश्किलों से पार पाने के लिए कई क्षेत्रों में निवेश की आवश्यकता है. "हमें शिक्षा में ज़बरदस्त निवेश की ज़रूरत है. -- एक अलग तरह की शिक्षा व्यवस्था में -- सिर्फ़ चीजों को सीखने में नहीं, बल्कि सीखने की प्रक्रिया के प्रति समझ विकसित करने में. "

उन्होंने कहा कि लोगों को समर्थन और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करनी होगी और सरकारों और साझेदारों को इस तरह से संसाधन जुटाने होंगे जैसा पहले कभी नही हुआ.  

श्रम संगठन द्वारा  कामकाज के भविष्य पर गठित वैश्विक आयोग ने डिजिटल युग में लोगों पर केंद्रित नीतियां अपनाए जाने की अपील की है.

यूएन महासचिव ने इसका स्वागत करते हुए कहा, "डिजिटल अर्थव्यवस्था सीमाओं से परे जाकर संचालित होती है और इसीलिए  कामकाज का भविष्य अपने हिसाब से निर्धारित करने में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को भूमिका निभानी होगी." 

श्रम संगठन के सौ साल

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना 1919 में एक ऐसे समय में हुई जब दुनिया क्रूर युद्ध से उबर रही थी. लाखों की मौत हुई थी; शहर बर्बाद हो चुके थे. ऐसे में नेताओं ने निर्णय लिया कि शांति निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन अहम होगा.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के लंबे सफ़र और अहमियत का ज़िक्र करते हुए महासभा अध्यक्ष मारिया फ़र्नान्डा एस्पिनोसा ने कहा कि संगठन ने कई काम पहली बार हुए.

“यह संयुक्त राष्ट्र की पहली विशेषीकृत (स्पेशिलाइज़्ड) एजेंसी थी. सामाजिक न्याय पर संवाद के लिए यह पहली बार सरकारों, श्रमिकों और नियोक्ताओं को एक साथ लाई. और मेरे विचार में, यह पहला संगठन था जिसने स्पष्टता से स्थायी शांति और समृद्धि में कर्मचारियों के आवश्यक योगदान के अनुरूप निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी हिस्सेदारी की ज़रूरत समझाई.”

मौजूदा चुनौतियों का उल्लेख करते हुए महासभा अध्यक्ष ने ध्यान दिलाया कि 4 करोड़ से ज़्यादा लोग दासता के आधुनिक स्वरूपों से पीड़ित हैं, 19 करोड़ लोग बेरोज़गार हैं जिनमें एक तिहाई युवा हैं. 30 करोड़ ऐसे हैं जो काम होने के बावजूद ग़रीबी में जी रहे हैं. दो अरब लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और उनके पास सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ नहीं है. 

"इस संदर्भ में हमें टिकाऊ विकास का आठवां लक्ष्य हासिल करना होगा. अच्छा और उपयुक्त कार्य, ग़रीबी और असमानता से लड़ने के हमारे प्रयासों के केंद्र में है. यह ज़रूरी है कि कोई भी पीछे न छूटने पाए, महिलाओं, युवाओं, अल्पसंख्यकों, मूलनिवासियों और विकलागों को सशक्त बनाया जाए."

महासभा अध्यक्ष ने कहा कि इन्हीं वजहों से 'अच्छा और उपयुक्त कार्य' इस सत्र के लिए उनकी प्राथमिकताओं में से एक है. यह संयुक्त राष्ट्र को लोगों के लिए और प्रासंगिक बनाने की कुंजी है और यह दिखाने का अवसर भी कि 2030 एजेंडा जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों और श्रम संगठन जैसी बहुपक्षीय संगठन रोज़मर्रा के जीवन पर कैसे असर डालते हैं.