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शरणार्थियों के विरूद्ध 'ज़हरीली भाषा का इस्तेमाल' चिंताजनक

सुरक्षा परिषद को जानकारी देते हुए यूएन शरणार्थी एजेंसी के हाई कमिश्नर फ़िलिपो ग्रान्डी.
UN Photo/Evan Schneider
सुरक्षा परिषद को जानकारी देते हुए यूएन शरणार्थी एजेंसी के हाई कमिश्नर फ़िलिपो ग्रान्डी.

शरणार्थियों के विरूद्ध 'ज़हरीली भाषा का इस्तेमाल' चिंताजनक

प्रवासी और शरणार्थी

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR)  के उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रान्डी ने कहा है कि उनके साढ़े तीन दशक से भी लंबे अनुभव में शरणार्थियों, प्रवासियों और विदेशियों के लिए राजनीति, मीडिया और सोशल मीडिया में इतनी ज़हरीली भाषा का इस्तेमाल पहले कभी नहीं हुआ. सुरक्षा परिषद को जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि शरणार्थी संकट से निपटने के लिए उसके बुनियादी कारणों पर ध्यान केंद्रित करना होगा.

अपने संबोधन में हाई कमिश्नर ग्रान्डी ने चिंता जताई कि शऱणार्थियों और प्रवासियों को अभूतपूर्व ढंग से कलंकित किया जा रहा है. ऐसे में पारपंरिक तरीक़ों से शरणार्थी संकट से निपटने के प्रयास पर्याप्त नहीं है.

‘शरणार्थी संकट’ का ज़िक् करते हुए उच्चायुक्त ग्रान्डी ने सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों से पूछा कि इसकी परिभाषा सही मायनों में किन पर लागू होगी.

“यह संकट है एक मां के लिए जो अपने बच्चों के साथ गैंग के बीच जारी हिंसा से दूर जा रही है; यह संकट है एक किशोर के लिए जो युद्ध, मानवाधिकार उल्लंघनों, और ज़बरदस्ती हथियार थमाए जाने से बचना चाहता है; यह सरकारों के लिए संकट है जिनके पास संसाधन नहीं है और जिन्हें अपनी सीमाएं हज़ारों लोगों के लिए खोलनी पड़ रही हैं. उनके लिए ये एक संकट है.”

उन्होंने कहा कि इस स्थिति को संभाला न जा सकने वाला वैश्विक संकट करार देना ग़लत है: राजनीतिक इच्छाशक्ति और ग्लोबल कॉम्पैक्ट फ़ॉर रिफ्यूजीज़ में निहित सिद्धांतों के अनुरूप बेहतर ढंग से दायित्व निभा कर मुश्किलों से पार पाया जा सकता है.

इस विषय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भूमिका महत्वपूर्ण है, विशेषकर शांति और सुरक्षा से जुड़े संकटो के निपटारे में, शरणार्थियों को शरण देने वाले देशों को समर्थन देने में, और समाधानों के रास्तों में आने वाले अवरोधों को दूर करने में.

मूल समस्याओं को सुलझाना ज़रूरी

हाई कमिश्नर ग्रान्डी ने स्पष्ट किया कि शरणार्थियों की बढ़ती संख्या के मूल में हिंसक संघर्ष हैं. अब तक जो 7 करोड़ लोग विस्थापित हुए हैं उनमें से अधिकांश घातक लड़ाई से बचने के लिए ही घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के नज़रिए से शांति निर्माण की प्रक्रिया अलग-अलग हिस्सों में बंटी है; बुनियादी वजहों के बजाए लक्षणों को ही दूर करने के प्रयास हो रहे हैं.

यूएन शरणार्थी एजेंसी प्रमुख ने लीबिया का उदाहरण दिया जहां अंतरराष्ट्रीय प्रवासन एजेंसी (IOM) और शरणार्थी एजेंसी विस्थापित लीबियाई नागरिकों और अन्य देशों से भाग कर आए लोगों की मदद कर रही हैं. उन्होंने कहा कि वहां सुरक्षा हालात बेहद ख़राब हो चुके हैं.

सैन्य झड़पों से प्रभावित इलाक़ों से 150 शरणार्थियों को निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है. शरणार्थी एजेंसी का मानना है कि ख़राब दौर से गुज़र रहे देशों में हालात बचाए गए शरणार्थियों और प्रवासियों के लिए ठीक नहीं हैं और इसलिए उन्हें वहां वापस नहीं भेजा जाना चाहिए.

मौजूदा टकराव को रोकने के लिए सुरक्षा परिषद से एकजुट होकर निर्णय लेने, शरणार्थियों और प्रवासियों सहित आम नागरिकों को हिंसा का शिकार न बनने देने, और संकट को सुलझाने के लिए ज़रूरी कदम उठाने की अपील की गई है.

उन विकासशील देशों को समर्थन बढ़ाने का भी आग्रह किया गया है जहां दुनिया में कुल शरणार्थियों की संख्या का 85 फ़ीसदी रहते हैं. उन्होंने कहा कि शरणार्थियों के पास लौटने का अधिकार है और सुरक्षा और मदद के अभाव में न लौटने का भी.  "शरणार्थियों के फ़ैसलों का सम्मान होना चाहिए और उनकी वापसी गरिमामय होनी चाहिए."

शरणार्थियों और प्रवासियों के विरूद्ध ज़हरीली भाषा का इस्तेमाल किए जाने के परिणामों का भी यूएन एजेंसी प्रमुख ने ज़िक्र किया. उदाहरण के तौर पर उन्होंने न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च में मस्जिदों में हुई गोलीबारी का नाम लिया जहां 49 लोगों की उस हमले में मौत हुई.

हाई कमिश्नर ग्रान्डी ने कहा कि न्यूज़ीलैंड सरकार ने जिस तरह से अपना दायित्व निभाया वह प्रभावशाली नेतृत्व और नफ़रत से मुक़ाबला करने का एक अच्छा उदाहरण है. हमारे समाज तब तक स्थायी, शांतिपूर्ण और समृद्ध नहीं हो सकते जब तक उसमें सभी के लिए जगह न हो.