वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

ब्रुनेई: नई दंड संहिता से 'क्रूर और अमानवीय' सज़ाओं की आशंका

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशलेट (फ़ाइल).
UN Photo/Manuel Elias
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशलेट (फ़ाइल).

ब्रुनेई: नई दंड संहिता से 'क्रूर और अमानवीय' सज़ाओं की आशंका

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशलेट ने कहा है कि ब्रुनेई की दंड संहिता में इस्लामी क़ानून की सख़्त व्याख्या के अनुसार प्रस्तावित बदलावों पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि इससे मानवाधिकारों का हनन होने और अमानवीय सज़ाएं दिए जाने की आशंका है. नए क़ानून के तहत पत्थर मारकर मौत की सज़ा देने सहित अन्य प्रावधानों को उन्होंने निष्ठुर करार दिया है. 

ब्रुनेई सरकार से अपील करते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त बाशेलट ने कहा है कि बुधवार से अमल में आने वाले इन कड़े संशोधनों को रोका जाना चाहिए. उन्होंने चिंता जताई कि इससे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों का गंभीर उल्लंघन होगा और क्रूर और अमानवीय सज़ाओं का रास्ता खुल जाएगा. 

मिशेल बाशलेट की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, नए प्रस्ताव के तहत अब बलात्कार, व्यभियार, गुदा मैथुन, मुस्लिम नागरिकों के लिए शादी से इतर यौन संबंधों, लूटपाट, और पैगंबर मोहम्मद के अपमान और अपयश जैसे मामलों में अब मौत की सज़ा का प्रावधान है. 

संशोधनों के बाद क़ानून बन जाने के साथ ही चोरी के लिए हाथ काटे जाने और गर्भपात के लिए सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे जाने की भी सज़ा दी जाएगी.  इस्लाम के अलावा बच्चों को अन्य धर्मों और प्रथाओं के बारे में जानकारी दिया जाना भी अपराध की श्रेणी में आ जाएगा. 

यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने इन कड़े प्रस्तावों को मानवाधिकार संरक्षण के नज़रिए से गहरा धक्का बताया है. दक्षिण पूर्व में स्थित तेल संपन्न ब्रुनई पर पिछले 50 साल से सुल्तान हसनअल बोल्किया मुइज़्ज़ाद्दीन वदाउल्लाह राज कर रहे हैं.

वैसे ब्रुनेई के क़ानून में मौत की सज़ा का प्रावधान पहले से ही है लेकिन आख़िरी बार इसका इस्तेमाल 1957 में किया गया था. इसके बावजूद यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा है कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत मौत की सज़ा सिर्फ़ हत्या और जानबूझकर लोगों को मारने के मामलों में दी जा सकती है. और यह भी सही ढंग से अपनाई गई क़ानूनी प्रक्रिया के बाद. 

“मैं ब्रुनई से आग्रह करती हूं कि मौत की सज़ा पर चली आ रही पाबंदी को बरकरार रखा जाए." उन्होंने ध्यान दिलाया कि मानवाधिकार और श्रृद्धाभाव  परस्पर विरोधी ताक़तें नहीं हैं. 

"दुनिया में कोई भी न्यायपालिका दावे से यह नहीं कह सकती कि उससे ग़लती नहीं होगी. तथ्य दिखाते हैं कि मौत की सज़ा आमतौर पर उन्हीं लोगों को ज़्यादा सुनाई जाती है जो पहले से ही निर्बल हैं, और इससे अन्यायपूर्ण फ़ैसले होने का जोखिम बना रहता है."

ब्रुनेई की दंड संहिता पर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों द्वारा अतीत में जताई गई चिंताओं से सहमति प्रकट करते हुए यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने कहा कि इससे महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरूद्ध हिंसा और भेदभाव को प्रोत्साहन मिलने की संभावना है. 

मानवाधिकार उच्चायुक्त बाशलेट ने कहा, "किसी भी धर्म आधारित क़ानून के ज़रिए मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए. इसमें बहुसंख्यकों, अल्पसंख्यकों और धर्म को न मानने वाले सभी लोगों के अधिकार शामिल हैं." उन्होंने कहा है कि ज़रूरत पड़ने पर ब्रुनेई की सरकार की मदद के लिए यूएन मानवाधिकार कार्यालय तैयार है.