टिकाऊ विकास लक्ष्य-8: अच्छा और उपयुक्त कार्य एवं आर्थिक वृद्धि
2030 के लिए टिकाऊ विकास एजेंडा का मूल मंत्र है 'कोई पीछे छूटने न पाए’. एक न्यायोचित और निष्पक्ष दुनिया के निर्माण के लिए आर्थिक वृद्धि का समावेशी होना अनिवार्य है. टिकाऊ विकास एजेंडे के आठवें लक्ष्य के पीछे यही सोच है. इसका उद्देश्य 2030 तक सबसे कम विकसित देशों में निरन्तर 7 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर कायम रखना और 2030 तक हर जगह सभी पुरुषों और महिलाओं के लिए पूर्ण एवं उत्पादक रोज़गार हासिल करना है.
टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडे से जुड़े 17 लक्ष्यों में से किसी एक लक्ष्य पर हम हर महीने अपना ध्यान केंद्रित करते हैं. इसी कड़ी में इस महीने हम टिकाऊ विकास के आठवें लक्ष्य पर जानकारी साझा कर रहे हैं जिसका उद्देश्य दुनिया में रोज़गार के अच्छे अवसर और आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करना है.
दुनिया में चरम ग़रीबी की व्यापक चुनौती अब भी बनी हुई है. साल 2000 में दुनिया में आर्थिक वृद्धि की दर 4.4 फ़ीसदी थी जो 2017 में घटकर 3.2 प्रतिशत रह गई. 2015 में हर दस में से एक व्यक्ति प्रतिदिन 1.90 डॉलर (लगभग 130 रुपये) पर गुज़ारा करने के लिए मजबूर था. बहुत से देशों में रोज़गार का होना ग़रीबी की कुचक्र से बाहर निकलने की गारंटी नहीं है.
आर्थिक विकास की धीमी और असमान गति दर्शाती है कि ग़रीबी उन्मूलन की दिशा में मौजूदा आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर पुनर्विचार करने और उनमें उचित बदलाव करने की आवश्यकता है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार 2018 में वैश्विक बेरोज़गारी की दर 5.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है. तीन साल तक बेरोज़गारी बढ़ने के बाद यह स्थिति में सुधार का संकेत है.
लेकिन रोज़़गार की तलाश में बड़ी संख्या में लोग श्रम बाज़ार में लगातार प्रवेश भी कर रहे हैं और इसके चलते 2018 में कुल बेरोज़गारों की संख्या लगभग उतनी, 19.2 करोड़, रहेगी. वैश्विक स्तर पर 2017 में 42 प्रतिशत श्रमिक (1.4 अरब) ऐसे थे जो मुश्किल परिस्थितियों में काम कर रहे थे लेकिन विकासशील और उभरते देशों में ऐसे श्रमिकों का हिस्सा क्रमश: 76 प्रतिशत और 46 प्रतिशत है.
आर्थिक वृद्धि यानी दुनिया को अधिक संपन्न बनाने वाली वृद्धि का हमारी अन्य सभी प्राथमिकताओं से अटूट संबंध है. अर्थव्यवस्थाओं को सशक्त बनाकर मज़बूत और टिकाऊ दुनिया का निर्माण करने के अधिक अवसर मिलेंगे. गुणवत्तापूर्ण रोज़गार के सृजन और आर्थिक वृद्धि को समावेशी बनाने के लिए उनमें सबसे लाचार वर्गों की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाना अनिवार्य है.
भारत और एसडीजी लक्ष्य-8
भारत में आधे से ज़्यादा श्रम बल अब भी कृषि पर निर्भर है. उत्पादकता कम होने के कारण कृषि में लाभकारी रोज़गार को बढ़ावा देना आसान नहीं है.
सार्वजनिक निवेश और नई तकनीक के ज़रिए कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देना प्राथमिकता होनी चाहिए. साथ ही आर्थिक विकास के रास्ते पर तेज़ गति से आगे बढ़ने के लिए भारत विनिर्माण और सेवा क्षेत्र का सहारा ले सकता है जिससे रोज़गार के अवसरों को उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी. इस लक्ष्य को पाने में मुख्य चुनौती ग़ैर-कृषि क्षेत्र में अच्छे वेतन वाली और उत्पादक नौकरियों का सृजन करना है जिसके ज़रिए अकुशल श्रमिकों को भी रोज़गार दिया जा सके.
अभी तक श्रम-सघन (लेबर इंटेंसिव) विनिर्माण के ज़रिए उत्पादकता और रोज़गार के अवसरों में बढ़ोत्तरी को हासिल नहीं किया जा सका है. जिन क्षेत्रों में उत्पादकता को बढ़ा पाना संभव हुआ है वे कौशल-सघन (स्किल इंटेंसिव) थे.
मैकिंज़ी ग्लोबल इंस्टीट्यूट के शोध के अनुसार अगर 2025 तक श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में दस फ़ीसदी की वृद्धि होती है, तो मौजूदा स्थिति के जारी रहने की तुलना में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 16 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है. हरित अर्थव्यवस्था, इंजीनियरिंग सेवाओं, अनुसंधान एवं विकास, चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकॉनमी) के क्षेत्र में संभावनाओं के नए द्वार खुल सकते हैं लेकिन उसका लाभ उठाने के लिए कौशल विकास योजनाओं की अहम भूमिका होगी.
राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन, दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना, राष्ट्रीय सेवा योजना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसे भारत सरकार के कुछ प्रमुख कार्यक्रमों का उद्देश्य सबके लिए अच्छा कार्य जुटाना है.
एसडीजी-8 के मुख्य उद्देश्य
- प्रतिवर्ष आर्थिक वृद्धि को राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुसार जारी रखना, विशेषकर सबसे कम विकसित देशों में हर साल कम से कम 7 फ़ीसदी सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि (जीडीपी) हासिल करना
- विविधीकरण, उन्नत तकनीक और नवप्रवर्तन (इनोवेशन) के ज़रिए आर्थिक उत्पादकता के उच्चतर स्तरों को हासिल करना. इसके लिए उच्च मूल्य संवर्धित (हाई वैल्यू एडेड) तथा श्रम सघन (लेबर इंटेंसिव) क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित करना
- ऐसी विकासपरक नीतियों को बढ़ावा देना जो उत्पादक गतिविधियों, अच्छे रोज़गार के अवसरों, उद्यमिता, सृजनशीलता और नवाचार को सहारा दें तथा वित्तीय सेवाओं की सुलभता सहित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों की स्थापना और वृद्धि को प्रोत्साहन दें
- 2030 तक खपत और उत्पादन में वैश्विक संसाधन दक्षता को धीरे-धीरे सुधारना तथा आर्थिक वृद्धि को पर्यावरण क्षरण से अलग करने के प्रयास करना. यह कार्य विकसित देशों के नेतृत्व में टिकाऊ खपत और उत्पादन संबंधी कार्यक्रमों की 10 वर्षीय रुपरेखा के अनुसार करना
- 2030 तक युवाओं और विकलांगों सहित सभी महिलाओं और पुरुषों के लिए पूर्ण एवं उत्पादक रोज़गार तथा अच्छा कार्य हासिल करना. समान मूल्य के काम के लिए समान वेतन प्रदान करना
- 2020 तक रोज़गार, शिक्षा या प्रशिक्षण से बाहर रह गए युवाओं का अनुपात ठोस ढंग से कम करना
- जबरन मज़दूरी उन्मूलन, आधुनिक दासता एवं मानव तस्करी समाप्त करने की दिशा में तत्काल असरदार उपाय अपनाना और बाल मज़दूरी के सबसे विकृत रूपों का निषेध और उन्मूलन करना, जिसमें बाल सैनिकों की भर्ती और इस्तेमाल शामिल है. 2025 तक सभी रूपों में बाल मज़दूरी को समाप्त कराना
- श्रमिक अधिकारों को संरक्षण देना, प्रवासी श्रमिकों विशेषकर महिला प्रवासियों और ख़तरनाक रोज़गार में लगे श्रमिकों सहित सभी श्रमिकों के लिए सुरक्षित एवं संरक्षित कार्य माहौल को प्रोत्साहित करना
- 2030 तक रोज़गार पैदा करने वाले टिकाऊ पर्यटन को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां बनाना और अपनाना तथा स्थानीय संस्कृति और उत्पादों का प्रचार-प्रसार करना।
- घरेलू वित्तीय संस्थाओं की क्षमता मजबूत करना जिससे बैंकिंग, बीमा और वित्तीय सेवाओं को प्रोत्साहन मिले और वे सबके लिए सुलभ हों
- विकासशील देशों, विशेषकर सबसे कम विकसित देशों, के लिए व्यापार समर्थन में सहायता बढ़ाना. इसके लिए सबसे कम विकसित देशों के लिए व्यापार संबद्ध तकनीकी सहायता के उन्नत समेकित फ़्रेमवर्क का सहारा लेना
- 2020 तक युवा रोज़गार के लिए वैश्विक रणनीति को विकसित और लागू करना और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के वैश्विक रोज़गार समझौते को लागू करना
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