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कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य: हिंसा की नई लहर उठने की आशंका

युम्बी शहर में चुनाव आयोग की क्षतिग्रस्त इमारत.
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युम्बी शहर में चुनाव आयोग की क्षतिग्रस्त इमारत.

कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य: हिंसा की नई लहर उठने की आशंका

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने चेतावनी भरे अंदाज़ में कहा है कि कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के पश्चिमी हिस्से में हिंसा की नई लहर कभी भी उठ सकती है. साथ ही सरकार से अनुरोध किया गया है कि हिंसा प्रभावित क्षेत्र में दो समुदायों के बीच तनाव और द्वेष को कम करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए.

पिछले साल दिसंबर महीने में यूम्बी क्षेत्र के माई-न्दोम्बे प्रांत में कई दिनों तक सुनियोजित ढंग से लोगों की हत्याएं की गई.  16 से 18 दिसंबर के दौरान हुई इन घटनाओं में तीन दिनों तक मुख्य रूप से चार स्थानों पर हमले किए गए और सैकड़ों महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को निशाना  बना गया. यूएन की जांच में पाया गया है कि इस हिंसा को मानवता के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है. 

शुरुआती जांच के अनुसार बनुनु और बातेन्दे समुदायों के बीच झड़पों में 890 लोगों के मारे जाने और हज़ारों लोगोें के विस्थापित होने की बात सामने आई थी. यूएन मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने जिनिवा में पत्रकराों को बताया कि, "अब तक हम युम्बी शहर, बोनगेन्दे गांव और न्कोलो गांव में 535 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के मारे जाने और 111 के घायल होने की पुष्टि कर चुके हैं."

लेकिन उन्होंने कहा है कि ये आंकड़े बढ़ सकते हैं क्योंकि आशंका जताई गई है कि हिंसा का शिकार कई लोगों के शवों को कांगो नदी में फेंक दिया गया. 

यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों समुदायों में तनाव अब भी बना हुआ है जिसके चलते बदले की भावना से प्रेरित होकर हिंसा फिर भड़क सकती है. 

कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र स्थिरता मिशन (MONUSCO) की प्रमुख लैला ज़ेरोगी ने सरकार से तत्काल कदम उठाने और युम्बी क्षेत्र में राज्य सत्ता कायम करने की अपील की है. उन्होंने कहा है कि विस्थापितों की सुरक्षित और स्वैच्छिक ढंग से वापसी के लिए सही माहौल बनाया जाना चाहिए.

"पुलिस सहित राज्यसत्ता की संस्थाओं की निष्पक्ष मौजूदगी, क़ानून के राज को फिर से कायम करने और हिंसा को न भड़कने देने के लिए अहम है."

हज़ारों अब भी विस्थापित

मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता ने बताया कि अभी लापता लोगों की सही संख्या की पुष्टि कर पाना संभव नहीं है. अनुमान है कि 19 हज़ार से ज़्यादा लोग हिंसा से विस्थापित हुए हैं और उनमें से 16 हज़ार लोगों ने कांगो नदी पार कर पड़ोसी देश कांगो गणराज्य में शरण ले ली. 

जांचकर्ताओं के अनुसार बातेन्दे समुदाय की भूमि पर बनुनु समुदाय के प्रमुख को दफ़नाए जाने के मुद्दे पर हिंसा भड़क उठी थी. हमले जिस तेज़ी और हिंसक ढंग से किए गए उनमें समानता देखी गई और लोगों के पास बच कर भाग जाने का समय नहीं था. "बातेन्दे समुदाय के गांवों में लोगों के पास बंदूकें, धारदार हथियार, धनुष-बाण और ईंधन था."

लोगों की गवाहियों में पता चला है कि हमला करने से पहले गांववासियों से पूछा गया कि क्या वे बनुनु समुदाय से हैं या नहीं, और उसके बाद उन्हें मारा गया. 

रिपोर्ट के अनुसार हिंसा 'भयावह' ढंग से की गई - एक दो साल के बच्चे को सेप्टिक टैंक में फेंक दिया गया और एक महिला के पति और बच्ची की हत्या करने के बाद उसके साथ बलात्कार किया गया. 

इन साक्ष्यों के सामने आने के बाद मानवाधिकार कार्यालय ने कहा है कि हत्या, प्रताड़ना, बलात्कार और अन्य प्रकार की यौन हिंसा के मामलों को को मानवता के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है. 

लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि इस हिंसा का दिसंबर में होने वाले चुनावों से संबंध होने का सबूत नहीं मिला है. हिंसा के बाद इस क्षेत्र में होने वाले चुनावों को इस साल मार्च के अंत तक स्थगित कर दिया गया था. 

"इस क्षेत्र में चुनाव 31 मार्च को होंगे. लेकिन जो लोग विस्थापित हुए हैं और जिन्होंने नदी पार कर कांगो गणराज्य में शरण ली है वे अपने मताधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे क्योंकि हिंसा का डर अब भी बना हुआ है और ऐसे में उनका घर लौट पाना संभव नहीं है."

जांच में यह भी पता चला कि तनाव बढ़ने के सीधे संकेत मिल रहे थे और पुलिस की तैनाती भी की गई थी लेकिन हमले होने से पहले पुलिस वहां से हट गई.