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वायु प्रदूषण बन गया है 'ख़ामोश हत्यारा'

मंगोलिया में प्रदूषण का स्तर बहुत ज़्यादा है. स्कूल बस का इंतज़ार करता एक बच्चा.
UNICEF/Mungunkhishig Batbaatar
मंगोलिया में प्रदूषण का स्तर बहुत ज़्यादा है. स्कूल बस का इंतज़ार करता एक बच्चा.

वायु प्रदूषण बन गया है 'ख़ामोश हत्यारा'

स्वास्थ्य

संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त एक स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग ने  कहा है कि दुनिया में छह अरब लोग नियमित रूप से प्रदूषित हवा में साँस लेने को मजबूर हैं जिससे उनके जीवन, स्वास्थ्य और कल्याण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. नवीनीकृत ऊर्जा का इस्तेमाल इस सदी के अन्त तक 15 करोड़ लोगों की जिन्दगियाँ बचाने में सहायक साबित हो सकता है.

जिनिवा में चल रहे मानवाधिकार परिषद के सत्र में पर्यावरण और मानवाधिकारों के मामलों के लिए विशेष रूप से नियुक्त दूत डेविड बॉयड ने ज़ोर देकर कहा कि वायु एक ख़ामोश और अदृश्य क़ातिल है. प्रदूषित वायु से पुरुषों की तुलना में महिलाओं और लड़कियों पर अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है. 

डेविड बॉयड ने कहा कि 155 देशों ने स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को क़ानूनी मंज़ूरी दे दी है इसके बावजूद लोग प्रदूषित हवा झेलने को मजबूर हैं. "हवा को प्रदूषित बनाने वाले कण हर जगह हैं. अधिकांश मामलों में जीवाश्म ईंधन को बिजली, परिवहन और तापमान नियंत्रण के लिए जलाने की वजह से प्रदूषण होता है. साथ ही औद्योगिक गतिविधियों, ख़राब कचरा प्रबंधन और कृषि तकनीक का इस्तेमाल भी इसके लिए ज़िम्मेदार है."

स्वतंत्र आयोग की रिपोर्ट बताती है कि वायु प्रदूषण घर के अंदर और बाहर मौजूद है और हर साल 70 लाख लोगों की समय से पहले मौत का कारण बनता है. इनमें छह लाख से ज़्यादा बच्चे हैं. 

"हर घंटे, 800 लोग मर रहे हैं जिनमें से कई लोग सालों से कैंसर, सांस लेने की बीमारी या दिल की बीमारी से पीड़ित थे जो प्रदूषित हवा में सांस लेने से होती हैं." बॉयड का कहना है कि इन मौतों को रोका जा सकता था. 

घरेलू प्रदूषण में कमी के रास्ते

भारत और इंडोनेशिया सहित कुछ अन्य देशों ने घरों में खाना बनाने के दौरान होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. खाना पकाने के लिए ग़रीब लोगों को स्वच्छ ईंधन और तकनीक उपलब्ध कराई जा रही है. भारत में सरकार के एक कार्यक्रम के तहत महिलाओं को प्राकृतिक गैस स्टोव ख़रीदने में मदद मिल रही है.

रवांडा में खाना पकाने के लिए गैस का सहारा लेते बुरुंडी के शरणार्थी.
UNHCR/Anthony Karumba
रवांडा में खाना पकाने के लिए गैस का सहारा लेते बुरुंडी के शरणार्थी.

अमेरिका और चीन में साफ़ हवा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनी कठोर नीतियां और क़ानून, वायु प्रदूषण कम करने में कारगर साबित हो रहे हैं. अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया प्रांत में बच्चों में फेफडों के संक्रमण के मामलों में कमी देखने को मिली है वहीं चीन के शेनज़ेन में वायु में कणिका तत्वों (पीएम) के स्तर में पिछले पांच सालों में 33 प्रतिशत की गिरावट आई है.  

लातिन अमेरिका और एशिया के कई हिस्सों में अब प्रदूषण पैदा करने वाले ईंधन के इस्तेमाल में कमी आ रही है. रिपोर्ट में जीवाश्म ईंधन से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों पर पाबंदी लगाने और पुराने संयंत्रों को 2030 तक बदल देने की अनुशंसा की गई है. इसके साथ ही नवीनीकृत ऊर्जा की खपत बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया गया है. 

प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास तेज़

इस बीच संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य से दुनिया भर में उठाए जा रहे त्वरित कदमों का स्वागत किया है.

एक बार इस्तेमाल होने वाली पॉलिथीन पर 2022 तक चरणबद्ध ढंग से रोक लगाने की भारत के संकल्प की अहमियत को भी रेखांकित किया गया है. 2018 में विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रमुख रूप से प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था. उसी मुहिम के तहत भारत ने यह कदम उठाया था.

अब तक 127 देश प्लास्टिक के थैलों के इस्तेमाल को नियमों के दायरे में लाने के लिए क़ानूनी कदम उठा चुके हैं. 27 देशों में इस संबंध में टैक्स भी वसूला जा रहा है. रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में हो रहे प्रयासों को मिल रही सफलता का भी ज़िक्र किया गया है.

इनमें तापमान को कम करने वाले उद्योगों को जलवायु के अनुकूल बनाना, बदलती जलवायु में संसाधनों के लिए दार्फ़ूर में हो रहे संघर्ष से पीड़ित समुदायों की मदद करना और पर्यावरण क़ानूनों के प्रभावी अमलीकरण के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना है.