टिकाऊ विकास लक्ष्य-5: लैंगिक समानता

लैंगिक असमानता, मानव इतिहास में अन्याय का एक सबसे निरन्तर और व्यापक रूप है. महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, कामकाज और राजनीतिक और आर्थिक प्रक्रिया में समान प्रतिनिधित्व दुनिया में बड़ा बदलाव लाने में अहम भूमिका निभा सकता है. 2030 टिकाऊ विकास एजेंडे का पांचवा लक्ष्य महिलाओं के प्रति हर तरह के भेदभाव और हिंसा का अंत करने तथा उन्हें आर्थिक संसाधनों पर समान अधिकार सुनिश्चित करने पर केंद्रित है.
दुनिया के हर हिस्से में महिलाएं और लड़कियां आज भी भेदभाव और हिंसा झेल रही हैं. हर क्षेत्र में लैंगिक समानता के मामले में कमियां मौजूद हैं. दक्षिण एशिया में 1990 में प्राथमिक स्कूलों में हर 100 लड़कों पर सिर्फ 74 लड़कियां भर्ती होती थीं, लेकिन 2012 तक भी भर्ती का अनुपात वही था. 155 देशों में कम से कम एक कानून ऐसा मौजूद हैं जो महिलाओं के लिए आर्थिक अवसरों में बाधक है.
सभी देशों की संसदों में सिर्फ़ 22 फ़ीसदी महिला सांसद हैं. हर तीन में से एक महिला अपने जीवन काल में किसी न किसी प्रकार की शारीरिक अथवा यौन हिंसा की शिकार होती है।
लैंगिक समानता न सिर्फ एक बुनियादी मानव अधिकार है, बल्कि एक शांतिपूर्ण और टिकाऊ विश्व के लिए आवश्यक बुनियाद भी है. महिलाओं को मुख्यधारा से बाहर रखने का मतलब दुनिया की आधी आबादी को संपन्न समाज और अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण में भागीदारी के अवसर से वंचित रखना है.
शिक्षा की समान सुलभता, लाभकारी काम और राजनीतिक तथा आर्थिक निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी न सिर्फ महिलाओं के लिए आवश्यक अधिकार हैं, बल्कि इनसे कुल मिलाकर मानवता लाभान्वित होती है. महिलाओं के सशक्तिकरण में निवेश कर दुनिया न सिर्फ टिकाऊ विकास के पांचवे लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ेगी, बल्कि इससे ग़रीबी कम करने में भी लाभ होगा और टिकाऊ आर्थिक वृद्धि को गति मिलेगी.
वैसे तो भारत ने प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर लैंगिक समानता हासिल कर ली है और शिक्षा के सभी स्तरों में समानता हासिल करने के लिए सही दिशा में बढ़ रहा है, फिर भी जनवरी, 2018 तक लोकसभा में महिलाओं को मिली सीटों का अनुपात सिर्फ 5 प्रतिशत और राज्यसभा में लगभग 10 फ़ीसदी है.
भारत महिलाओं के प्रति हिंसा की चुनौती का सामना भी कर रहा है. उदाहरण के तौर पर एक बुनियादी अध्ययन से पता चला है कि नई दिल्ली में 92 प्रतिशत महिलाओं ने अपने जीवन काल में सार्वजनिक स्थलों पर किसी न किसी रूप में यौन हिंसा का अनुभव किया है.
भारत सरकार ने महिलाओं के प्रति हिंसा समाप्त करने को एक प्रमुख राष्ट्रीय प्राथमिकता माना है, जो लैंगिक समानता के बारे में संयुक्त राष्ट्र के टिकाऊ विकास लक्ष्यों का अंग है. प्रधानमंत्री की ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ पहल का उद्देश्य भारत में लड़कियों को समान अवसर और शिक्षा देना है.
इसके अलावा, महिलाओं के रोजगार के बारे में विशेष प्रयास, बालिकाओं के सशक्तिकरण के कार्यक्रम, बालिका की संपन्नता के लिए सुकन्या समृद्धि योजना और माताओं के लिए जननी सुरक्षा योजना जैसे उपाय लैंगिक समानता के उद्देश्यों के प्रति भारत के संकल्प को आगे बढ़ाते हैं.
- सभी महिलाओं और लड़कियों के साथ हर जगह हर प्रकार का भेदभाव मिटाना
- सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में सभी महिलाओं और लड़कियों के प्रति सभी प्रकार की हिंसा समाप्त करना जिसमें तस्करी और यौन व अन्य प्रकार के शोषण को समाप्त करना शामिल है
- बाल विवाह, कम उम्र में और जबरन विवाह तथा महिला जननांग विकृति जैसी सभी हानिकारक प्रथाओं का उन्मूलन करना
- जन सेवाओं, बुनियादी सुविधाओं और सामाजिक संरक्षण नीतियों के माध्यम से नि:शुल्क सेवा और घरेलू काम को मान्यता और महत्व देना तथा राष्ट्रीय स्तर पर उपयुक्तता के आधार पर घर और परिवार के भीतर साझी जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करना
- राजनीतिक, आर्थिक और सार्वजनिक जीवन में निर्णय प्रक्रिया के सभी स्तरों पर महिलाओं की पूर्ण और कारगर भागीदारी तथा नेतृत्व के समान अवसर सुनिश्चित करना
- अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या और विकास सम्मेलन के कार्रवाई कार्यक्रम और बीजिंग प्लेटफार्म फॉर एक्शन तथा उनके समीक्षा सम्मेलनों के निष्कर्ष दस्तावेजों के अनुरूप हुई सहमति के अनुसार यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य एवं प्रजनन अधिकारों की सबके लिए सुलभता सुनिश्चित करना
- महिलाओं को आर्थिक संसाधनों पर समान अधिकार तथा जमीन और अन्य प्रकार की संपत्ति, वित्तीय सेवाओं, उत्तराधिकार और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण और स्वामित्व को राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार सुलभ कराने के लिए सुधारों को अपनाना
- महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करने के लिए विशेषकर सूचना और संचार तकनीक सहित सामर्थ्यकारी तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाना
- सभी स्तरों पर, सभी महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के संवर्द्धन हेतु ठोस नीतियां एवं लागू करने योग्य कानून अपनाना और उन्हें मजबूत करना
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