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बारूदी सुरंग प्रतिबंध संधि के 20 साल पूरे, लेकिन ख़तरा बरक़रार

दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र बारूदी सुरंग के ख़िलाफ़ कार्रवाईकरने वाली टीम के सदस्य.
UNMISS/JC McIlwaine
दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र बारूदी सुरंग के ख़िलाफ़ कार्रवाईकरने वाली टीम के सदस्य.

बारूदी सुरंग प्रतिबंध संधि के 20 साल पूरे, लेकिन ख़तरा बरक़रार

शान्ति और सुरक्षा

बारूदी सुरंगों पर प्रतिबंध लगाने वाली संधि के दो दशक पूरे होने के बावजूद पुराने रणक्षेत्रों में बिछी सुरंगें अब भी लोगों को अपना निवाला बना लेती हैं. अपने संदेश में यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि इस ख़तरे को धरती से मिटा देने के लिए त्वरित प्रयासों की ज़रूरत है. 

महासचिव ने अपने वक्तव्य में कहा है कि इस संधि से अनगिनत जानों को बचाने, घायलों के अंगों को क्षत-विक्षत होने से रोकने और पीड़ितों के लिए आजीविका के साधन फिर जुटाने में मदद मिली है लेकिन जिन देशों ने अभी तक इस संधि को नहीं अपनाया है उन्हें जल्द से जल्द ऐसा करने की ज़रूरत है.  

बारूदी सुरंग का इस्तेमाल युद्ध के औज़ार के रूप में अब भी हो रहा है और पीड़ितों ख़ासकर पीड़ित बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है. बारूदी सुरंग पीड़ितों की संख्या बढ़ने की वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इसकी रोकथाम का दायरा बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है. 

यूएन महासचिव ने कहा कि वह उन सदस्य देशों की प्रतिबद्धता की प्रशंसा करते हैं जो दुनिया से एक ऐसे हथियार से छुटकारा पाने में लगे हैं जो बिना किसी भेद विचार के लोगों को मारता है, पंगु बनाता है और शांति और विकास के रास्ते में अवरोध पैदा करता है. 

महासचिव गुटेरेश ने उन 31 सदस्य देशों को बधाई दी है जिन्होंने अपनी ज़मीन को बारूदी सुरंग से मुक्त करने की घोषणा की है. जिन देशों ने अभी तक यह नहीं किया है उनसे यह कार्य जल्द पूरा करने की अपील की गई है. 

महासचिव के प्रवक्ता ने बताया कि "महासचिव ने त्वरित प्रयासों पर बल दिया है ताकि लोगों को मारने के मक़सद से बिछाई गई बारूदी सुरंगों को अतीत के अवशेष  के रूप में ही रखा जा सके. उन्होंने सदस्य देशों से भी अनुरोध किया है कि बारूदी सुरंग के हज़ारों पीड़ितों को लंबे समय तक सेवा और मदद की ज़रूरत है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए."

सितंबर 1997 में नॉर्व की राजधानी ओस्लो में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान इस संधि पर सहमति बनी थी. इसके तहत बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल करने, उनका भंडार बना कर रखने और उत्पादन करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. साथ ही ऐसी सामग्री को पूरी तरह नष्ट करने का आग्रह भी किया गया था.  

इसे ओटावा संधि भी कहा जाता है क्योंकि संधि पर हस्ताक्षर की प्रक्रिया के लिए कनाडा के ओटावा शहर को चुना गया था. दिसंबर 1997 तक 122 सरकारों ने संधि पर हस्ताक्षर कर लिए थे. समझौते पर मुहर लगाने वाला बरकीना फ़ासो 40वां देश बना और 1999 में यह लागू हो गया.