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लंबे कूटनीतिक प्रयासों के बाद बनी उत्तर मैसेडोनिया गणराज्य नाम पर सहमति

यूएन न्यूज़ के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए महासचिव के निजी दूत मैथ्यू निमेत्ज़.
UN News/Video screen grab
यूएन न्यूज़ के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए महासचिव के निजी दूत मैथ्यू निमेत्ज़.

लंबे कूटनीतिक प्रयासों के बाद बनी उत्तर मैसेडोनिया गणराज्य नाम पर सहमति

शान्ति और सुरक्षा

पिछले साल जून महीने में एक ऐतिहासिक समझौते के साथ ही दो देशों, पूर्व यूगोस्लाविया के मैसेडोनिया गणराज्य और ग्रीस, में 27 साल से चले आ रहे विवाद का निपटारा हो गया. इस मुद्दे पर चली वार्ताओं में संयुक्त राष्ट्र की ओर से मैथ्यू निमेत्ज़ ने अहम भूमिका निभाई और दो दशकों से ज़्यादा समय तक वार्ताओं का नेतृत्व किया.

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संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता के बाद एथेंस और स्कोप्ये के बीच “प्रेस्पा समझौते” पर दोनों देशों की संसद ने मुहर लगाई और फिर 12 फ़रवरी को यह लागू हो गया. पूर्व यूगोस्लाविया के मैसेडोनिया गणराज्य का नया नाम अब उत्तर मैसेडोनिया गणराज्य है.

1999 से यूएन महासचिव के निजी दूत की ज़िम्म्दारी संभाल रहे मैथ्यू निमेत्ज़ ने प्रतिवर्ष एक डॉलर के सांकेतिक वेतन पर काम किया. इतने सालों तक चली वार्ता में कई उतार-चढ़ाव आए, कई नामों का प्रस्ताव दिया गया और बहुत कुछ दांव पर लगा था. इन्हीं मुद्दों पर और जानकारी के लिए जब यूएन समाचार ने मैथ्यू निमेत्ज़ के साथ बात की तो उन्होंने बताया कि सकारात्मक नतीजे पाने में उनका विश्वास हमेशा बना रहा.

यूएन न्यूज़: आपकी ज़िम्मेदारी पूरी हो गई है और दोनों सरकारों में सहमति बन गई हैं. आपको कैसा लगता है? इत्मीनान, रोमांच या खालीपन का एहसास?

मैथ्यू निमेत्ज़: हां, बहुत कुछ ऐसाा ही लगता है. मुझे बहुत ख़ुशी है क्योंकि मैंने कई साल तक इस प्रोजेक्ट पर काम किया और हमें बहुत उतार-चढ़ाव भी देखने को मिले. हमें ये देखना था कि गंभीर विवाद को दो देश आपस में सुलझा लें. मुझे आशा है कि इस मामले में भविष्य अतीत से बेहतर होगा और यह सोचकर मुझे अच्छा महसूस होता है.

यूएन न्यूज़: आप कह चुके हैं कि आपका काम बोरियत भरा नहीं रहा और आपको कई किरदारों से मिलने और उनके साथ काम करने का अवसर मिला. दांव पर क्या लगा था?

मैथ्यू निमेत्ज़: बहुत से लोगों को लगता है कि कितनी बोरियत भरी बात है कि इतने साल तक हम एक शब्द, एक नाम पर भी उलझे रहे. लोग एक नाम को क्यों नहीं सुलझा सकते. इसमें तो 5 मिनट, 10 मिनट, 15 मिनट लेना चाहिए लेकिन सतह के नीचे कई मुद्दे थे. सिर्फ़ नाम से जुड़ी बात नहीं थी.

नाम तो एक बड़ी हिमशिला का बस एक सिरा था. यह दोनों देशों में पहचान की भावना से भी जुड़ा था जिसे हमें समझना था. यूगोस्लाविया के विघटन के बाद पूर्व यूगोस्लाविया का मैसेडोनिया गणराज्य बाल्कन क्षेत्र में अपनी जगह बना रहा था. लेकिन अपने पड़ोसी देशों से यह कैसे संबंध रखेगा. ग्रीस के साथ साथ अन्य पड़ेसी देशों से भी मुद्दे थे.

इसलिए इस मुद्दे की ऐतिहासिक और भावनात्मक पृष्ठभूमि रही है जो अब भी है.

यूएन न्यूज़: उस लम्हे के बारे में बताइए जब दोनों पक्ष आपके ख़िलाफ़ हो गए थे और सिकंदर महान की प्रतिमाएं दोनों देशों में स्थापित होनी शुरू हो गईं.

मैथ्यू निमेत्ज़:  यह मुद्दा ऐतिहासिक विरासत से जुड़ा था. और यह साझा विरासत थी और मानवीय भी. स्कोपये में एलेक्जेंडर द ग्रेट, सिकंदर महान की प्रतिमाएं हैं और ग्रीस में यह एक मुद्दा है. और यह एक अजीब मुद्दा है और मैं कई बार महात्मा गांधी के न्यूयॉर्क में प्रतिमा का उदाहरण देता हूं. यह एक अच्छा भाव प्रदर्शन है लेकिन अगर हम सोचने लगें कि गांधी एक अमेरिकी हस्ती थे तो भारतीयों को यह बड़ा अजीब लगेगा.

तो एक बार मैंने सिकंदर महान को थोड़ा अपमानित कर देने वाली गलत बात कह दी. मैंने कहा कि हर कोई सिकंदर महान पर ही ध्यान लगाए बैठा है और हो सके तो इस बात को छोड़ देना चाहिए. लेकिन दोनों पक्ष मुझसे नाराज़ हो गए और फिर मुझे माफ़ी मांग कर अपना बयान वापस लेना पड़ा.

मैंने सिकंदर की महानता और प्रभाव को माना और स्वीकार किया कि ग्रीस से अफ़ग़ानिस्तान और भारत तक उन्होंने पूरे क्षेत्र को बदल दिया. मैं बहुत संभलकर रहता हूं और महान हस्तियों के बारे में कोई ग़लत बात नहीं कहता.

यूएन न्यूज़: इतने लंबे अंतराल में नेता बदलते रहे और कईं नए किरदार आए. क्या आप को फिर नए सिरे से प्रयास करने पड़े?

मैथ्यू निमेत्ज़: नेता बदलते हैं. और मैं मानता हूं कि इतिहास पर नेता अपनी बड़ी छाप छोड़ते हैं. इतिहास अपने हालत बनाता है लेकिन नेता प्राथमिकताएं तय करते हैं, जोखिम लेते हैं. दोनों देशों में इस मुद्दे पर नेताओं का रवैया अलग था. और ऐसे भी क्षण आए जब किसी एक देश के नेता ने इस मुद्दे को अपनी प्राथमिकता सूची में नीचे रख दिया. नेता कई बार हर मुद्दे पर ध्यान नहीं लगा सकते इसलिए उन्हें मुद्दों को चुनना पड़ता है. मैं कई नेताओं की प्रशंसा करता हूं लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो जोखिम लेने को तैयार नहीं थे.

मैं सकारात्मक पक्ष पर ध्यान ज़्यादा देता हूं और मेरा मानना है कि यह समझौता इसलिए हुआ क्योंकि दोनों नेता – ग्रीस के प्रधानमंत्री त्सिप्रास और उत्तर मैसेडोनिया गणराज्य के प्रधानमंत्री ज़ाएव ने वाक़ई इस मुद्दे को हल करने का ठान लिया था और फिर पूरी राजनीतिक ऊर्जा झोंक दी. उन्होंने माना कि कुछ जोखिम होंगे और कुछ समझौते भी करने पड़ेंगे लेकिन वे लगे रहे और आपसी रिश्ते भी दोनों में विकसित हुए जिससे चीज़ों को होने में आसानी हुई.

यूएन न्यूज़: और कौन-कौन से नाम सुझाए गए?

मैथ्यू निमेत्ज़इतने सालों तक मैंने नामों के कई प्रस्ताव दिए जो सिर्फ़ मेरी ओर से नहीं बल्कि अन्य की तरफ़ से भी आए. मैं पांच सुझाव बताना चाहूंगा – उत्तर मैसेडोनिया गणराज्य जिस पर आख़िर में सहमति बनी. ऊपरी मैसेडोनिया गणराज्य, नया मैसेडोनिया गणराज्य, वार्दर मैसेडोनिया गणराज्य और मैसेडोनिया गणराज्य – स्कोपये....

बात यह है कि मैसेडोनिया एक बड़ा क्षेत्र है जो देश है वो उस क्षेत्र में स्थित है लेकिन देश ही पूरा क्षेत्र नहीं है. ग्रीस का कहना है कि अगर आप ख़ुद को मैसेडोनिया गणराज्य कहें तो ऐसा लगेगा कि पूरा क्षेत्र ही आपका है. इस बारे में बहस हो सकती है लेकिन ग्रीस ने यही पक्ष रखा और सुरक्षा परिषद ने भी इसे मुख्य मुद्दा माना.

यूएन न्यूज़: क्या कभी ऐसा भी लगा कि इस मुद्दे को सुलझा पाना संभाव नहीं है?

मैथ्यू निमेत्ज़: मैं कभी हिम्मत नहीं हारता. पहले तो यह बहुत दिलचस्प प्रोजेक्ट था और दोनों पक्ष मुझे हटाना नहीं चाहते थे. मैं उनसे पूछता था कि अगर उन्हें लगता है कि कोई दूसरा इस काम को बेहतर कर पाएगा तो बताइए. लेकिन मुझे गर्व है कि दोनों पक्षों के साथ मेरा आपसी विश्वास मज़बूत हुआ और उन्हें कभी नहीं लगा कि मैं किसी एक की वकालत कर रहा हूं, कभी कभी ऐसा हो सकता है कि मैंने किसी एक पक्ष की ओर से ज़्यादा कह दिया हो लेकिन 24 साल तक मेरे दोनों पक्षों से अच्छे रिश्ते रहे और यह सोचकर मुझे अच्छा महसूस होता है.