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तेज़ आवाज़ में संगीत सुनना नुक़सानदेह, कुछ नए नुस्ख़े

स्मार्टफ़ोन होने से अब कहीं भी संगीत सुना जा सकता है.
UNICEF/UN0264259/Haro
स्मार्टफ़ोन होने से अब कहीं भी संगीत सुना जा सकता है.

तेज़ आवाज़ में संगीत सुनना नुक़सानदेह, कुछ नए नुस्ख़े

स्वास्थ्य

स्मार्टफ़ोन पर तेज़ आवाज़ में गाने सुनने की आदत बड़ी मुश्किलें पैदा कर सकती है. संयुक्त राष्ट्र के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि दुनिया में 12 से 35 साल की उम्र के, एक अरब से ज़्यादा लोगों को, सुनने की शक्ति कम होने या उसे पूरी तरह खोने के जोखिम का सामना करना पड़ सकता है. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)  में तकनीकी अधिकारी डॉक्टर शैली चढ्ढा ने, इस समस्या से बचाव के लिए नए दिशानिर्देश जारी करते हुए बताया है, "एक अरब से ज़्यादा युवाओं के सामने बहरेपन का ख़तरा उस आदत से है जिससे  उन्हें आनन्द मिलता है - अपने फ़ोन या अन्य उपकरणों से संगीत सुनना."

"इस समय हमारे पास कोई ठोस सबूत तो नहीं है लेकिन सहज ढंग से सोचने पर लगता है: क्या हम यह सही कर रहे हैं या फिर अगले कुछ सालों में इससे श्रवण शक्ति कम होती जाएगी?"

"इसे इस तरह सोचिए - जैसेकि आप हाईवे पर गाड़ी चला रहे हैं लेकिन आपके पास गति के बारे में जानकारी देने वाला उपकरण नहीं है या आपको मालूम ही नहीं है कि गति सीमा क्या है. हमारा प्रस्ताव है कि स्मार्टफ़ोन में स्पीडोमीटर जैसा कुछ होना चाहिए. एक ऐसा सिस्टम जो ये बताए कि आप कितनी ज़ोर से संगीत सुन रहे हैं और कब आप सीमा से बाहर जा रहे हैं."

आंकड़े दिखाते हैं कि 50 फ़ीसदी से ज़्यादा युवा, अपने फ़ोन या अन्य ऑडियो उपकरणों पर सामान्य स्तर से कहीं ज़्यादा तेज़ आवाज़ में संगीत सुनते हैं. श्रवण शक्ति में कमी से पनपती चुनौती से अगर नहीं निपटा गया तो  वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग 75 करोड़ डॉलर का नुक़सान होने का अनुमान है. 

स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU), एक संयुक्त पहल के ज़रिए, शोर और उससे होने वाले नुक़सान के बारे में जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं. स्मार्टफ़ोन या अन्य ऑडियो उपकरणों को आमतौर पर कितने स्तर पर सुना जाना चाहिए, इस संबंध में लोगों को ज़्यादा जानकारी नहीं है. 

कुछ सिफ़ारिशें

संयुक्त राष्ट्र की ओर से उद्योग जगत को जो अनुशंसाएं जारी की गई हैं उनमें आवाज नियंत्रित करने वाला विकल्प भी है जिसे अभिभावक अपने बच्चों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. 

दो साल तक चले विचार विमर्श में सरकार, उपभोक्ता संस्थाओं और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों की भी राय ली गई.

दिशानिर्देश कहते हैं कि लोग कितनी ज़ोर में ऑडियो सुनते हैं, उसकी तकनीक द्वारा  निगरानी होनी चाहिए और वैयक्तिक प्रोफ़ाइल तैयार होना चाहिए, ताकि लोगों को ये बताया जा सके कि उनकीआवाज़ का स्तर सुरक्षित मानकों में आता है या नहीं.  

"हम कुछ ऐसे फ़ीचर की भी बात कर रहे हैं जिससे आवाज़ अपने आप ही कम हो  जाए या अभिभावक आवाज़ को नियंत्रित कर सकें. इसलिए जब कोई अपनी सीमा से बाहर जाएगा तो उनके उपकरण में शोर का स्तर अपने आप नीचे आ जाएगा और उन्हें नुक़सान नहीं होगा. "

स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ हर 20 में से एक व्यक्ति - 43 करोड़ से ज़्यादा वयस्क और 3 करोड़ से अधिक बच्चे - सुनने की शक्ति में कमी से जूझ रहे हैं, जिससे उनके जीवन पर भी असर पड़ता है. इस समस्या से पीड़ित अधिकतर मरीज़ ग़रीब और मध्य-आय वाले देशों में रहते हैं.  

यूएन एजेंसी का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक, 90 करोड़ से अधिक लोग श्रवण शक्ति में ह्रास से पीड़ित होंगे. 

लेकिन इस समस्या से सार्वजनिक स्वास्थ्य की बेहतरी के प्रयासों के ज़रिए निपटा जा सकता है. इसी उद्देश्य से 3 मार्च को विश्व श्रवण दिवस से पहले ये गाइडलाइन जारी की गई हैं. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है, "श्रवण शक्ति में कमी से निपटने के लिए हमारे पास तकनीकी साधन मौजूद हैं. इसलिए इतनी बड़ी संख्या में युवाओं को संगीत सुनते समय अपने कानों को नुक़सान नहीं पहुंचाने देना चाहिए. उन्हें समझना चाहिए कि एक बार अगर सुनने की शक्ति चली गई तो फिर ये वापस नहीं आएगी."