वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

टीबी के ख़िलाफ़ लड़ाई में ठोस प्रगति

टीबी के ख़िलाफ़ मुख्य रूप से उपयोग में लाया जाने वाला बीसीजी टीका.
UNICEF/Ilvy Njiokiktjien
टीबी के ख़िलाफ़ मुख्य रूप से उपयोग में लाया जाने वाला बीसीजी टीका.

टीबी के ख़िलाफ़ लड़ाई में ठोस प्रगति

स्वास्थ्य

टीबी से पीड़ित लेकिन अपनी बीमारी से अनजान 15 लाख मरीज़ों का इस साल के आख़िर तक पता लगाने और उनका इलाज करने की एक संयुक्त पहल के ठोस परिणाम सामने आए हैं. तपेदिक की बीमारी का बोझ झेल रहे भारत सहित छह एशियाई देशों ने सिर्फ़ पिछले साल टीबी के साढ़े चार लाख नए मामलों का पता लगाया है.  

इस पहल को एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए वैश्विक कोष (Global Fund), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), और स्टॉप टीबी पार्टनरशिप से समर्थन प्राप्त है. 

इसके तहत 2018 में टीबी के जितने नए मामलों का पता चला उनमें आधे से अधिक सिर्फ़ भारत में थे. भारत में तपेदिक का प्रकोप दुनिया में सबसे ज़्यादा है. इसी पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार ने 2025 तक टीबी की बीमारी समाप्त करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है जो 2030 के टिकाऊ विकास एजेंडे से भी पांच साल पहले होगा. 

एशिया में जो देश तपेदिक की चुनौती झेल रहे हैं उनमें बांग्लादेश, म्यांमार, फ़िलीपींस, इंडोनेशिया और पाकिस्तान शामिल हैं. अगर वर्तमान रूझान जारी रहते हैं तो एशियाई देशों को इस साल पांच लाख से ज़्यादा और मरीज़ों का पता लगाने और उनका इलाज करने में सफलता मिल सकती है. इसके बाद उपचार का लाभ उठाने वाले मरीज़ों की कुल संख्या 45 लाख हो जाएगी. 

वैश्विक कोष के कार्यकारी निदेशक पीटर सैन्ड्स ने कहा, "ये परिणाम बताते हैं अगर हम टीबी के ख़िलाफ़ लड़ाई में अतिरिक्त संसाधन झोंक दें तो क्या हासिल किया जा सकता है. एशिया में देशों ने टीबी को प्राथमिकता बना लिया हैऔर नए मामलों का पता लगाने और उनका इलाज करने में भारत अग्रणी भूमिका निभा रहा है. अगर टीबी के ख़िलाफ़ इस लड़ाई में हमें जीत हासिल करनी है तो यह लड़ाई एशिया में जीतनी होगी."

टीबी के विरुद्ध लड़ाई में सबसे बड़ी चुनौती 36 लाख ऐसे लोगों को ढूंढना है जिन्हें टीबी की बीमारी है लेकिन उन्हें उसकी जानकारी ही नहीं है. ऐसी स्थिति में न तो बीमारी का पता चल पाता है और न ही सही इलाज हो पाता है जिससे यह संक्रमण फैलता रहता है. अगर सही ढंग से इलाज न हो तो टीबी का मरीज लगभग 15 अन्य लोगों तक इस बीमारी को फैला सकता है.

2017 में, वैश्विक कोष ने 12 करोड़ ड़ालर से ज़्यादा की अतिरिक्त धनराशि का निवेश किया जिसका लक्ष्य 2019 के अंत तक 15 लाख नए मामलों का पता लगाना था. इसमें उन 13 देशों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है जहां टीबी की बीमारी से बेख़बर कुल मरीजों की संख्या का 75 फ़ीसदी लोग रहते हैं. परिणाम और विश्लेषण साल के आख़िर में उपलब्ध होगा लेकिन शुरुआती परिणामों से उत्साहजनक संकेत मिल रहे हैं.

बड़ी बीमारियों पर क़ाबू पाने के अपने प्रयासों के लिए धन एकत्र करने के इरादे से वैश्विक कोष की भारत में 8 फ़रवरी को एक बैठक हो रही है. वैश्विक कोष का लक्ष्य अगले तीन साल के लिए 14 अरब डॉलर जुटाना है ताकि डेढ़ करोड़ से ज़्यादा जानों को बचाया जा सके, एचआईवी, टीबी और मलेरिया से मृत्यु दर को आधा किया सके और 2023 तक मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली का निर्माण हो सके.