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'सैन्य काल जैसी दमनकारी नीतियां अपना रही है म्यांमार सरकार'

म्यांमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर यूएन विशेषज्ञ यैंगही ली पत्रकार वार्ता में.
UNIC Dhaka/Mohammad Moniruzzaman
म्यांमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर यूएन विशेषज्ञ यैंगही ली पत्रकार वार्ता में.

'सैन्य काल जैसी दमनकारी नीतियां अपना रही है म्यांमार सरकार'

प्रवासी और शरणार्थी

म्यांमार में मानवाधिकारों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही हैै और निकट भविष्य में रोहिंज्या शरणार्थियों का वापस लौटना मुश्किल है. संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार विशेषज्ञ यैंगही ली ने थाईलैंड और बांग्लादेश के 11 दिनों के दौरे से लौटने के बाद बताया कि सरकार वहां लोकतांत्रिक सुधारों को लाने में विफल रही है.

यूएन विशेषज्ञ का मानना है कि जिस ढंग से दमनकारी नीतियां सैन्य सरकार के दौरान अपनाई जा रही थीं वैसा ही अब हो रहा है. ली के मुताबिक़ म्यांमार में लोकतंत्र नाज़ुक स्थिति में है, धार्मिक और जातीय मतभेद देश भर में व्याप्त हैं और अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव हो रहा है. 

ढाका में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, "मैं बहुत चिंतित हूं कि दमन भरे माहौल में लोग अन्याय और मानवाधिकार हनन के बारे में खुल कर नहीं बोल पा रहे हैं. असहमतियां, आलोचनाएं और बहस किसी भी लोकतंत्र के लिए ज़रूरी हैं. पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अभिव्यक्ति की आज़ादी का इस्तेमाल करने के लिए निशाना बनाया जा रहा है. मैं प्रशासन से अनुरोध करूंगी कि इस बुरे बर्ताव को रोका जाए और अन्यायपूर्ण ढंग से पकड़े सभी लोगों को रिहा किया जाए."

ली ने बताया कि म्यांमार के कई हिस्सों में लड़ाई चल रही है जिसके चलते मानवाधिकारों की स्थिति जटिल हो गई है. ऐसी स्थिति में डेढ़ लाख से ज़्यादा आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की घर वापसी मुश्किल साबित हो रही है. 

म्यांमार सरकार ऐसे विस्थापितों के लिए बनाए गए शिविरों को बंद करना चाहती है और उन्हें ऐसी जगह बसाना चाहती है जो उनके मूल स्थानों से दूर है और जहां रोज़गार के अवसर या मानवीय राहत उपलब्ध नहीं है. 

रोहिंज्या शरणार्थियों की वापसी की संभावना पर ली ने बताया कि म्यांमार में उनकी वापसी के लिए हालात नहीं बनाए जा रहे हैं. इसके बजाए डर, शोषण और लगातार हिंसा का माहौल बनाया जा रहा है. वहां के हालात देखते हुए स्पष्ट है कि रोहिंग्या शरणार्थी निकट भविष्य में म्यांमार वापस नहीं लौट सकते. इस संदर्भ में उन्होंने बांग्लादेश सरकार से अपील की है कि रोहिंज्या संकट से निपटने के लिए उसे दीर्घकालीन रणनीति पर काम करना चाहिए.

ली अपनी यात्रा के दौरान बंगाल की खाड़ी में स्थित उस टापू पर भी गईं जहां बांग्लादेश बड़ी संख्या में रोहिंज्या शरणार्थियों को बसाने पर विचार कर रहा है. वहां जारी निर्माण कार्य पर उन्होंने संतोष जताया लेकिन ध्यान दिलाया कि जब तक सुरक्षा संबंधी समीक्षा नहीं हो जाती तब तक वहां लोगों को नहीं बसाया जाना चाहिए.  

ऐसी आशंका जताई गई है कि ऐसे स्थान पर शिविर बार बार चक्रवाती तूफ़ान की चपेट में आ सकता है.