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घर से भागी सऊदी युवती को कनाडा ने शरण दी

18 वर्षीय रहाफ़ मोहम्मद अल क़ुनुन टोरंटो में पीयरसन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर कनाडा की विदेश मंत्री क्रिस्टिया फ़्रीलैंड के साथ.
UNHCR/Annie Sakkab
18 वर्षीय रहाफ़ मोहम्मद अल क़ुनुन टोरंटो में पीयरसन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर कनाडा की विदेश मंत्री क्रिस्टिया फ़्रीलैंड के साथ.

घर से भागी सऊदी युवती को कनाडा ने शरण दी

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने कहा है कि सऊदी युवती रहाफ़ मोहम्मद अल क़ुनुन को कनाडा सरकार शरणार्थी का दर्जा दिए जाने के लिए राज़ी हो गई है. थाईलैंड में बैंकॉक हवाई अड्डे पर रोकी गई रहाफ़ ने दावा किया था कि उनका परिवार उन्हें जान से मार देने की धमकियां दे रहा है. 

थाईलैंड में प्रवेश से मनाही के चलते रहाफ़ ने ट्विटर पर सुरक्षा और सलामाती की गुहार लगाई थी.  जिसके बाद उन्हें पहले एक सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया और फिर यूएन एजेंसी ने उनके दावों को परखा और उन्हें सही पाया . रहाफ़ को वापस कुवैत भेजे जाने के सऊदी अरब के अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया गया. 

शरणार्थी एजेंसी ने रहाफ़ को शरण, संरक्षण और नया घर देने के कनाडा सरकार के निर्णय का स्वागत किया है.  एजेंसी के प्रमुख फ़िलिप ग्रान्डी ने अपने बयान में कहा कि शरणार्थियों का संरक्षण सुनिश्चित करना कईं बार चुनौतीपूर्ण हो जाता है और हमेशा शरण दी भी नहीं जा सकती लेकिन इस मामले में अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी क़ानून और मानवीयता के मूल्यों की जीत हुई है.  

हाल के सालों में कुछ देशों में जनमानस और राजनीतिक दलों का रवैया शरणार्थियों के प्रति कठोर हुआ है. ऐसे में जिन परिस्थितियों में कनाडा ने अल क़ुनुन को शरण दी है वैसी सुनवाई दुनिया भर में ढाई करोड़ से ज़्यादा शरणार्थियों में से बेहद कम को ही उपलब्ध है. आम तौर पर शरण के लिए  प्राथमिकता उन्हें दी जाती है जिन्हें जान का ख़तरा हो. 

रहाफ़ ने घर वापस भेजे जाने की स्थिति में जान से मार दिए जाने का ख़तरा जताया था. ऐसे में  मामले की गंभीरता को मानकर आपात स्थिति में उनकी आवेदन पर त्वरित रूप से कार्रवाई हुई.

यूएन एजेंसी ने कहा था कि शरण की गुहार लगाने वाले लोगों को जबरन उन देशों में वापस नहीं भेजा जाना चाहिए जहां उनकी जान या आज़ादी को ख़तरा हो. यह सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय क़ानून का अहम हिस्सा है और थाईलैंड भी इस दायित्व से बंधा है. 

हालांकि थाईलैंड 1951 में हुई संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधि और 1967 में जारी किए गए प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं है जिसके तहत किसी व्यक्ति को शरणार्थी का दर्जा देने की शर्तों की जाँच-परख की जाती है.