रोहिंज्या शरणार्थियों को जबरन वापस न भेजने के बांग्लादेश के वक्तव्य का स्वागत

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, यूनिसेफ ने बांग्लादेश सरकार की तरफ़ से इस पुष्टि का स्वागत किया कि रोहिंग्या शरणार्थियों को उनकी इच्छा के बिना म्यांमार वापस नहीं भेजा जाएगा जहां से उनके अधिकारों का उल्लंघन जारी रहने की खबरें आ रही हैं.
अगस्त 2017 से म्यांमार से सुरक्षा की तलाश में भागकर आए बांग्लादेश पहुँचे लाखों रोहिंज्या मुसलमान कॉक्सेस बाज़ार शिविरों में रह रहे हैं. म्यांमार में उनके ख़िलाफ़ लगातार बड़े पैमाने पर हिंसा की जा रही है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा कराई गई जांच से पता चला कि हिंसा करने के लिए मुख्य रूप से देश के सुरक्षा बल, विशेषकर सेना ज़िम्मेदार है और अधिकारों के उल्लंघन की अधिकतर घटनाएं अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के अंतर्गत सबसे भीषण अपराधों की श्रेणी में आती हैं.
यूनिसेफ के प्रवक्ता क्रिस्टोफे बॉलिएराक ने जिनीवा में पत्रकारों से कहा, ''हमने ऐसी बहुत सी रिपोर्ट देखीं कि बांग्लादेश से रोहिंज्या शरणार्थियों को जबरन म्यांमार वापस भेजा जाएगा. इन ख़बरों से यूनिसेफ बहुत चिंतित है. शिविर के अधिकारियों ने फिर संदेश दिया है कि वे स्वेच्छा से लौटने के इच्छुक शरणार्थियों को वापस भेजने के लिए तैयार हैं किन्तु किसी भी रोहिंज्या शरणार्थी को उसकी इच्छा के विरुद्ध वापस जाने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा.''
यूनीसेफ़ प्रवक्ता ने कहा कि बांग्लादेश की टिप्पणी से उसकी यह राय झलकती है कि कॉक्सेस बाज़ार में मौजूद रोहिंज्या शरणार्थियों के लिए वहां के हालात म्यांमार लौटने से जुड़े ख़तरों से कहीं बेहतर हैं.
उन्होंने बताया, ''यूनिसेफ के हमारे सहयोगियों ने जो भी अनौपचारिक सर्वेक्षण किए हैं उन सबका एक ही नतीजा है कि बड़ी संख्या में शरणार्थी तब तक वापस जाने के इच्छुक नहीं हैं, जब तक उनकी सुरक्षा की गारंटी न दी जा सके.''
प्रेस को नियमित जानकारी के दौरान क्रिस्टोफ़े बॉलिएराक ने ज़ोर देकर कहा कि म्यांमार के भीतर मौजूद रोहिंज्या समुदाय अब भी बेहद बेबसी औरक लाचारी के हालात में हैं. उन्होंने अपील की कि इन लोगों तक बिना किसी रोक-टोक के सरलता के साथ मानवीय संपर्क की अनुमति दी जाए.
उन्होंने कहा, ''रखाइन प्रान्त में बचे हुए रोहिंज्या बच्चों और परिवारों को निरन्तर कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. उनकी आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों और स्वास्थ्य तथा शिक्षा जैसी आवश्यक सुविधाओं तक पहुंच सीमित होने के कारण उन्हें मानवीय सहायता की आवश्यकता है.''
युनिसेफ की टिप्पणी के बाद संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर), फिलिप्पो ग्रैंडी ने अपील की कि रोहिंज्या शरणार्थियों की वापसी तभी होनी चाहिए, जब वे बिना किसी ज़बरदस्ती के वापस लौटने के इच्छुक हों.
यूएनएचसीआर के प्रवक्ता आंदरेज माहेसिच ने इसी तरह की भावना व्यक्त करते हुए को कहा कि ''दुनिया भर में कहीं भी शरणार्थियों की वापसी बिना किसी ज़बरदस्ती के और पूरी जानकारी के आधार पर उनकी मर्ज़ी के अनुसार होनी चाहिए जिन्हें वापस लौटना है.''
माहेसिच ने पत्रकारों से कहा, ''हमने हमेशा यही सैद्धांतिक रुख़ अपनाया है कि शरणार्थियों की वापसी के अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन किया जाएगा. यही स्थिति बांग्लादेश और म्यांमार के बीच द्विपक्षीय समझौते सहित सभी दस्तावेज़ों में शामिल है.”
“म्यांमार के भीतर 'अविश्वसनीय रूप से चिंताजनक' स्थिति होने के साथ-साथ यूनिसेफ बांग्लादेश के भीतर शरणार्थी बच्चों की स्थिति को लेकर भी गंभीर रूप से चिंतित है. उसने एक पूरी पीढ़ी को गंवा दिए जाने की आशंका व्यक्त की है.”
कॉक्सेस बाज़ार में बच्चों की मदद के प्रयास में यूनिसेफ सभी आयु के बच्चों को शिक्षा देते रहने के लिए कई तरह की पहल कर रहा है जिसमें सीखने के केन्द्रों का नेटवर्क और बच्चों के लिए उपयुक्त स्थल (चाइल्ड फ्रेंडली स्पेसेज़) मुहैया कराना शामिल है.
बॉलिएराक ने बताया कि युनिसेफ और उसके सहयोगी इन शिविरों में अब 1100 से अधिक सीखने के केन्द्र चला रहे हैं जिनमें एक लाख 24 हज़ार बच्चों शिक्षा दी जा रही है.