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ख़त्म हो रहा है एंटीबॉयोटिक्स दवाओं का असर

कोलंबिया के सैन निकोलस इलाक़े में एक महिला अपने एक चिकन फॉर्म की देखभाल करते हुए
© World Bank/Charlotte Kesl
कोलंबिया के सैन निकोलस इलाक़े में एक महिला अपने एक चिकन फॉर्म की देखभाल करते हुए

ख़त्म हो रहा है एंटीबॉयोटिक्स दवाओं का असर

स्वास्थ्य

अगर इंसानों की आदतों और तथ्यों पर ग़ौर करें तो ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी. 21वीं सदी के आधा पूरा होने तक एशिया में ऐसे हालात पैदा हो सकते हैं कि हर साल क़रीब पचास लाख लोगों की मौत एंटीबॉयोटिक्स दवाओं के बेअसर होने की वजह से होने लगेगी.

संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों का कहना है कि एशियाई देशों में हालात बेहद चिन्ताजनक हैं क्योंकि इंसानों और Livestock यानी मवेशियों में एंटीबॉयोटिक्स दवाओं का असर कम हो रहा है. 

इसकी वजह ये है कि एंटीबॉयोटिक्स दवाएँ विभिन्न तरह के संक्रमणों का इलाज करने में बेअसर साबित हो रही हैं क्योंकि उन संक्रमणों के बैक्टीरिया ने एंटीबॉयोटिक्स दवाओं के लिए प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर ली है. 

इस स्थिति को Antimicrobial Resistance यानी AMR भी कहा जाता है. 
स्थिति इतनी गम्भीर हो गई है कि AMR से होने वाली मौतों की संख्या कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या को भी पार सर सकती है. 

अगर ऐसी स्थिति आई तो इसे ही संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक स्वास्थ्य आपदा क़रार दिया है. 

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों – खाद्य और कृषि संगठन (FAO), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने इंसानों, मवेशियों और खेतीबाड़ी सभी में ही एंटीबॉयोटिक्स दवाओं के इस्तेमाल में और ज़्यादा सावधानी और ज़िम्मेदारी बरतने की पुकार लगाई है.

एजेंसियों ने एशिया और प्रशान्त क्षेत्र में सोमवार 12 नवंबर को विश्व एंटीबॉयोटिक्स जागरूकता सप्ताह की शुरूआत करते हुए ये आहवान किया.

इस वर्ष इस विश्व जागरूकता सप्ताह का मुख्य सन्देश है – Handle Antibiotics with Care यानी एंटीबॉयोटिक्स के साथ सावधानी बरतें.

इस जागरूकता अभियान के दौरान मवेशियों, समुद्री जीवों और फ़सल उत्पादन में संक्रमण रोकने के असरदार तरीक़ों पर भी ध्यान दिया जाएगा. साथ ही खाद्य सुरक्षा और खेतीबाड़ी के स्वस्थ और सुरक्षित तरीक़ों को भी बढ़ावा दिया जाएगा.

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने एंटीमाइक्रोबायल्स को ऐसी दवाइयाँ परिभाषित किया है जिनका इस्तेमाल हानिकारक कीड़ों को मारने, बैक्टीरिया, वायरस और फंगल संक्रमण को रोकने के लिए किया जाना चाहिए.

मगर चिकित्सा कर्मियों यानी डॉक्टरों द्वारा मरीज़ों को एंटीबॉयोटिक्स दवाओं का ग़ैर-ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल करवाने और खेतीबाड़ी में भी हानिकारक कीड़ों-मकौड़ों को मारने के लिए एंटीबॉयोटिक्स पदार्थों के बेतहाशा इस्तेमाल से इनका असर कम हो रहा है.

इसका नतीजा ये हो रहा है कि अब बहुत सी एंटीबॉयोटिक्स दवाएँ कई तरह के संक्रमण को रोकने में बेअसर साबित हो रही हैं. 

एशिया प्रशान्त के लिए FAO की क्षेत्रीय प्रतिनिधि और सहायक निदेशक कुंधवी कैडिरेसन ने ध्यान दिलाया कि एंटीबॉयोटिक्स दवाओं के इस तरह ग़ैरज़िम्मेदारी के साथ इस्तेमाल करने से वो मिट्टी, पानी और व्यापक रूप में पूरे वातावरण में फैल जाते हैं.

इससे माक्रोब्स यानी बैक्टीरिया और वायरसों को प्रतिरोधी क्षमता हासिल करने का मौक़ा मिल जाता है.

संयुक्त राष्ट्र AMR को एक अहम स्वास्थ्य मुद्दा मानता है और इसीलिए इसे भी इबोला और एच आई वी की ही तरह तात्कालिकता के आधार पर चिकित्सीय प्राथमिकता दिए जाने की हिमायत करता है. 

संयुक्त राष्ट्र की तीन एजेंसियों ने इस चुनौती का सामना करने के लिए पशु स्वास्थ्य के लिए विश्व संगठन (OIE) से हाथ मिलाया है.

साथ ही खाद्य और कृषि संगठन ने AMR का सामना करने के लिए कुछ नई सामग्रियाँ भी प्रकाशित की हैं.