अरबों लोग अब भी टॉयलेट से वंचित
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतॉनियो गुटेरेश ने कहा है कि दुनिया भर में अब भी क़रीब दो अरब 30 करोड़ लोगों को बुनियादी स्वच्छता सुविधाएं सुलभ नहीं हैं और स्वच्छता को एजेंडा 2030 के तहत प्राथमिकता बनाया जाना ज़रूरी है.
भारत की राजधानी दिल्ली में मंगलवार, दो अक्तूबर को महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि भारत में हालाँकि स्वच्छता के मामले में आँकड़े तेज़ी से बदल रहे हैं मगर अब भी क़रीब एक अरब लोग खुले स्थानों पर शौच करते हैं.
महासचिव ने हालाँकि ये भी कहा कि स्वच्छ भारत मिशन मानवीय गरिमा के प्रति महात्मा गांधी की प्रतिभा एवं आजीवन संघर्ष पर आधारित है और भारत सरकार टिकाऊ विकास लक्ष्यो ंको हासिल करने में सही रफ़्तार से सही दिशा में काम कर रही है.
इस क्षेत्र में दुनिया भर में न सिर्फ अब तक का सबसे बड़ा निवेश है बल्कि लोगों को एकजुट करने का सबसे बडा अभियान भी है और इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अतरराष्ट्रीय समुदाय को एकत्र होते देखना प्रेरणा देता है.
ग़ौरतलब है कि दो अक्तूबर को महात्मा गांधी का जन्म दिन होता है और इसी याद में अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस भी मनाया जाता है.
महासचिव ने कहा कि महात्मा गांधी ने भी स्वच्छता को अपने जीवन दर्शन में बहुत अहमियत दी थी.
महात्मा गांधी जन्मदिन पर इस महत्वपूर्ण विषय के बारे में लंबे समय तक जारी उनकी हिमायत और कार्रवाई का सम्मान करना उस विलक्षण मानव के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि और हम सबके लिए एक उदाहरण हैं.
“महात्मा गांधी अन्य अनेक क्षेत्रों की तरह, सुरक्षित और साफ-स्वच्छ सुविधाओं के मामले में अपने समय से बहुत आगे थे. उनकी मांग थी कि हर व्यक्ति के लिए स्वच्छता का अधिकार हो और वे उस अधिकार के लिए हर व्यक्ति से सम्मान दिखाने की मांग करते थे.”
उन्होंने कहा कि यह ज़रूरी है कि हम सबसे संवेदनशील मुद्दों पर भी पुरानी धारणाओं को तोड़ने और उन पर आज़ादी के साथ बोलने के लिए तैयार हों, जब लोगों के जीवन का प्रश्न हो.
महासचिव ने कहा कि सभी लोगों को सुरक्षित जल और स्वच्छता की सुविधा पाने का अधिकार है.
“यदि हमें स्वच्छ पृथ्वी पर सबल समाजों की रचना करनी है और टिकाऊ विकास के लिए 2030 एजेंडा की अपार आकांक्षा को पूरा करना है तो हमें इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देना होगा, जैसा भारत में हो रहा है.”
कोई पीछे ना छूटे
उन्होंने टिकाऊ विकास लक्ष्यों के बारे में याद दिलाते हुए कहा कि सभी देशों द्वारा स्वीकृत 2030 एजेंडा जनता, पृथ्वी और संपन्नता के लिए हितकारी योजना है और इन तीनों में स्वच्छता की भूमिका है. कोई भी देश सभी के लिए स्वच्छता से कम में संतोष नहीं कर सकता. यह टिकाऊ विकास की बुनियाद है और इसमें भारत की मिसाल बहुत स्वागत योग्य है.
उन्होंने कहा कि स्वच्छता में कमी बीमारी, बौनेपन, असुविधा और अमर्यादा को जन्म देती है. इसके कारण पुरुषों और महिलाओं, अमीरों और गरीबों, शहरों और गांवों के बीच असमानताएं बढ़ जाती हैं और मानव अधिकारों तथा मानवीय गरिमा पर गहरा असर पड़ता है.
“स्वच्छता में कमी परिवारों और समुदायों तक सीमित नहीं, बल्कि इसके लिए समग्र सोच आवश्यक है, जिनमें स्कूल, अस्पताल, परिवहन और पर्यटन सुविधाएं भी शामिल हैं.”
उन्होंने ध्यान दिलाया कि स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं में स्वच्छता में कमी और भी गंभीर जोखिम पैदा करती हैं: अधिक संक्रमण, लंबे समय तक अस्पताल में रहना, ऊंची मृत्यु दर.
“इस पृष्ठभमि में मैंने मार्च में विश्व स्तर पर कार्रवाई का आह्वान किया था कि 2030 तक सभी स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं में जल, स्वच्छता और व्यक्तिगत साफ़-सफ़ाई की व्यवस्था की जाए.”
“2030 एजेंडा में हमारी यह वैश्विक आकांक्षा झलकती है कि सभी लोगों को उनके लिए ज़रूरी स्वच्छता सुविधाएं सुलभ हों और भारत 2030 से बहुत पहले ये लक्ष्य हासिल कर लेगा. इनमें महिलाएं, बच्चे, युवा, दिव्यांग, वृद्धजन, मूलनिवासी, बेघर लोग, क़ैदी, शरणार्थी और प्रवासी सभी शामिल हैं.”
एंतॉनियो गुटेरेश ने कहा कि इनमें से कुछ समूहों तक पहुँचना विशेषरूप से कठिन हो सकता है. किंतु अगर हमें किसी को पीछे न छूटने देने का अपना संकल्प पूरा करना है तो उन्हें हमारे तात्कालिक प्रयासों के केन्द्र में रहना चाहिए. इसके लिए नई सोच, साहस, संकल्प और नेतृत्व की आवश्यकता है.
खुले में शौच
उन्होंने कहा कि खुले में शौच से मुक्ति – स्वच्छता में सुधार के प्रयासों का केन्द्रीय अंग होना चाहिए. खुले में शौच बच्चों के लिए गंभीर रूप से खतरनाक है. इसके कारण दस्तरोग, कुपोषण और बौनापन हो सकता है, जिसका असर जीवन भर रहता है.
उन्होंने कहा, “मैं भारत की सराहना करता हूं कि उसने खुले में शौच से मुक्ति को उच्चतम स्तर पर और समूची सरकार में प्राथमिकता दी है और मैं उन सभी सरकारों को बधाई देता हूं जिन्होंने खुले में शौच से मुक्ति के लिए योजनाएं बनाने और बजट आबंटित करने पर सहमति दी है.
महासचिव के अनुसार स्वच्छता की स्थिति में सुधार करना न सिर्फ सही दिशा में क़दम है, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी समझदारी वाला क़दम है.
“विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि स्वच्छता पर खर्च होने वाले हर डॉलर पर पांच डॉलर और 16 डॉलर के बीच बचत होती है. यह अनुमान स्वास्थ्य सेवा की कम लागत, कर्मियों की बेहतर उत्पादकता और पहले से कम समय पूर्व मौतों पर आधारित है.”
उन्होंने आँकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि स्वच्छता में कमी और खुले में शौच का महिलाओं और लड़कियों पर बेहिसाब असर पड़ता है.
“उनके लिए उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का ख़तरा बढ़ सकता है, व्यक्तिगत आवाजाही की उनकी आज़ादी पर पाबंदियां बढ़ सकती हैं और स्वच्छता सुविधाएं तथा मासिक धर्म के दौरान आवश्यक सामग्री सुलभ न होने से स्वास्थ्य के लिए जोखिम बढ़ सकते हैं.
“लड़कियां अब अपने स्कूलों में सुरक्षित, स्वच्छ और अलग शौचालयों के लिए और महिलाओं को सार्वजनिक स्थलों एवं कार्य स्थलों पर स्वच्छता सुविधाओं के लिए प्रतीक्षा करने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए.”
उन्होंने बताया कि टिकाऊ विकास लक्ष्य 6 में सबके लिए स्वच्छता का उद्देश्य रखा गया है, किन्तु यह विषय सभी सतत् विकास लक्ष्यों, विशेषकर स्वास्थ्य, पोषण, संवहनीय शहरों और लैंगिक समानता से जुड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक है.