क़ुदरती हादसों से खरबों का नुक़सान

इंडोनेशिया में सितम्बर 2018 में आए भूकम्प और सूनामी में भीषण तबाही का एक दृश्य
UNICEF/Arimacs Wilander
इंडोनेशिया में सितम्बर 2018 में आए भूकम्प और सूनामी में भीषण तबाही का एक दृश्य

क़ुदरती हादसों से खरबों का नुक़सान

आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले क़रीब 20 वर्षों के दौरान भूकम्प और सूनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से क़रीब 13 लाख लोगों की जान जा चुकी है.

साथ ही क़रीब चार अरब 40 करोड़ लोग इन प्राकृतिक आपदाओं की वजह से या तो ज़ख़्मी हुए हैं, या बेघर या फिर उन्हें आपात सहायता की ज़रूरत पड़ी है.


जहाँ तक इन प्राकृतिक आपदाओं से आर्थिक नुक़सान का सवाल है तो 1998 से 2017 के दौरान प्रभावित देशों को क़रीब 2.9 ट्रिलियन डॉलर का सीधा नुक़सान हुआ.

ये नुक़सान उससे पहले के दो दशकों के दौरान प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुक़सान का दो गुना है.

इन वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया भर में जितना भी आर्थिक नुक़सान होता है, उसमें से क़रीब 77 फ़ीसदी जलवायु परिवर्तन और ख़तरनाक मौसम के प्रभावों की वजह से होता है.

ये आँकड़ा 1978 से लेकर 1997 के दो दशकों के दौरान हुए नुक़सान के मुक़ाबले ये 151 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी है.

प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुक़सान को कम करने के लिए काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय UNISDR एक वरिष्ठ अधिकारी रिकार्डो मेना का कहना था, "ये रिपोर्ट दिखाती है कि विकसित देशों की तुलना में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से लोगों की मौत हो जाने की ज़्यादा सम्भावना होती है."

"इन आँकड़ों के मद्देनज़र जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी ख़तरों को रोकना और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर क़ाबू पाना अब और भी ज़्यादा ज़रूरी हो गया है. साथ ही प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले ख़तरों को कम करने के तरीक़ें में और ज़्यादा धन निवेश करने की भी ज़्यादा ज़रूरत है जिससे तमाम देशों के लिए कोई नए ख़तरे पैदा ना हों.

रिकार्डो मेना का कहना था, "हमें ज़ोर देकर कहना है कि मौजूदा ख़तरों को कम करके लोगों और देशों की क्षमता को मज़बूत करना है अन्यथा टिकाऊ विकास लक्ष्य हासिल करना बहुत मुश्किल हो जाएगा."