वैश्विक नेताओं को, संकटों के बीच साहसिक क़दम उठाने होंगे – एंतोनियो गुटेरेश
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने, महासभा के 80वें उच्च-स्तरीय सप्ताह से पहले, देशों से आहवान किया कि वे अन्तरराष्ट्रीय सहयोग मज़बूत करें, जलवायु व वित्तीय सुधारों पर ठोस निर्णय लें और बहुपक्षवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराएँ.
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने महासभा के 80वें उच्च-स्तरीय सप्ताह से पहले, वैश्विक संचार प्रमुख मेलिसा फ़्लेमिंग के साथ यूएन न्यूज़ को दिए एक विशेष इंटरव्यू में, दुनिया के मौजूदा हालात और चुनौतियों पर अपने विचार साझा किए.
उन्होंने बढ़ते युद्धों, आर्थिक असमानता, जलवायु संकट और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी नई चुनौतियों के बीच वैश्विक सहयोग, शान्ति स्थापना एवं सतत विकास की अहमियत पर ज़ोर दिया.
(इंटरव्यू को स्पष्टता व संक्षिप्तता के लिए सम्पादित किया गया है)
मेलिसा फ़्लेमिंग - कुछ ही दिनों में दुनिया के नेता इस सभा कक्ष में जुटने वाले हैं. आप उस वैश्विक परिदृश्य का किस तरह वर्णन करेंगे, जो इस महासभा की पृष्ठभूमि बनेगा?
एंतोनियो गुटेरेश - हम एक वैश्विक संकट का सामना कर रहे हैं. ऐसी परिस्थितियों में टकराव बढ़ रहे हैं, जहाँ भू-राजनैतिक विभाजन, उन टकरावों को प्रभावी ढंग से हल नहीं करने दे रहे हैं.
हम चाहते हैं कि नेता यहाँ आकर हालात बदलने में मदद करें. उन्हें समझना होगा कि ऐसे समय में अन्तरराष्ट्रीय सहयोग ही सबसे अहम रास्ता है.
विश्व में दंडमुक्ति की भावना हावी है - हर देश सोचता है कि वह जो चाहे कर सकता है. दूसरी ओर, हम देखते हैं कि विकासशील देश भारी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. उनमें से बहुत से देशों को, अपनी अर्थव्यवस्थाओं को सुधारने के लिए आवश्यक रियायती धन उपलब्ध नहीं है जिसके बिना वो देश, क़र्ज़ में डूब रहे हैं. असमानता बढ़ रही है.
जलवायु परिवर्तन अब भी नियंत्रण से बाहर है. और लगातार मिल रहे संकेत बताते हैं कि हमारा मुख्य लक्ष्य, यानि वैश्विक तापमान को 1.5° सेल्सियस से नीचे बनाए रखना, शायद बहुत मुश्किल होगा.
तकनीकी विकास, बिना नियमों और निगरानी के, तेज़ी के साथ आगे बढ़ रहा है, जिससे समाजों में ध्रुवीकरण और घृणा फैलाने वाले भाषण बढ़ रहे हैं.
ऐसे माहौल में नेताओं को आगे आना होगा. उन्हें उत्सर्जन घटाने, अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय ढाँचे में सुधार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर शासन व्यवस्था और बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता दोहराने जैसे ठोस क़दम उठाने होंगे.
यही मेरी उम्मीद है. हम इस शिखर सम्मेलन की सफलता के लिए हर सम्भव प्रयास करेंगे और विश्व नेताओं से आग्रह करेंगे कि वे इस वैश्विक संकट के समय अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी तरह निभाएँ.
मेलिसा फ़्लेमिंग – महासभा के दौरान शान्ति और सुरक्षा से जुड़े कई शिखर सम्मेलन होंगे. इनमें दो-राष्ट्र समाधान पर एक सम्मेलन और दुनिया भर में जारी युद्धों को समाप्त करने के लिए कई अहम बैठकें शामिल होंगी. आपको इन बैठकों से क्या ठोस नतीजे निकलने की उम्मीद है?
दुनिया के अधिकतर देश फ़लस्तीनी जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार और एक स्वतंत्र फ़लस्तीनी देश की आवश्यकता को स्वीकार करते हैं. सोमवार की बैठक में यह समर्थन और भी स्पष्ट होगा.
साथ ही, एक मज़बूत सन्देश जाएगा कि ग़ाज़ा में जनसंहार तत्काल रोका जाए, युद्धविराम और सभी बंधकों की रिहाई हो, और प्रभावी मानवीय सहायता पहुँचाई जाए.
यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि दो-राष्ट्र समाधान की टिकाऊ समाधान है और इसका कोई विकल्प नहीं है. एक-राष्ट्र समाधान, जिसमें फ़लस्तीनियों के अधिकार छीने जाएँ, 21वीं सदी में अस्वीकार्य है.
भविष्य की शान्ति और उग्रवाद से लड़ने का एकमात्र रास्ता दो-राष्ट्र समाधान को वास्तविकता बनाना है तथा ऐसी परिस्थितियाँ बनाना हैं जहाँ यहूदी व फ़लस्तीनी लोग, साथ मिलकर शान्ति एवं सुरक्षा के साथ रह सकें.
मेलिसा फ़्लेमिंग – महासभा कई अन्य टकरावों और युद्धों पर ध्यान केन्द्रित करने का अवसर होगी, जिनमें से कुछ को “भुला दिए गए युद्ध” कहा जाता है, जैसेकि सूडान में जारी युद्ध. आपकी क्या उम्मीद है कि अगले सप्ताह जब विश्व नेता एक साथ आएँगे और इन “भुला दिए गए” संघर्षों पर चर्चा करेंगे, तो क्या ठोस परिणाम सामने आ सकते हैं?
एंतोनियो गुटेरेश - सूडान में कई पक्ष दख़ल दे रहे हैं. यह समय है कि बड़ी शक्तियाँ आगे बढ़ें. मुझे विश्वास है कि सभी बड़ी शक्तियाँ मानती हैं कि सूडान का संघर्ष अब ख़त्म होना चाहिए. सूडानी जनता की पीड़ा असहनीय है. इसलिए सुरक्षा परिषद को प्रमुख शक्तियों की सहमति से सख़्त क़दम उठाने होंगे, ताकि वहाँ के गुट समझ सकें कि वे अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ अपराध कर रहे हैं.
मेलिसा फ़्लेमिंग – युद्ध आम तौर पर लोगों पर क्या असर डालता है और उससे पूरी दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ता है?
एंतोनियो गुटेरेश - दरअसल, जब दुनिया पहले से ही गहरे विभाजनों में उलझी हो और जवाबदेही तय करने के ठोस साधन नहीं हों - यानि जब हम दंडमुक्ति वाली दुनिया में जी रहे हों, तो देशों के लिए युद्ध छेड़ना आसान हो जाता है. बड़ी शक्तियाँ जब युद्ध करती हैं, जैसाकि यूक्रेन के मामले में हुआ, तो यह और देशों के लिए भी एक ख़तरनाक उदाहरण बन जाता है.
इससे मध्यम आकार के देश भी अपनी महत्वाकांक्षाएँ या समस्याएँ बातचीत और समझौते के बजाय युद्ध के सहारे सुलझाने की कोशिश करने लगते हैं. यह एक ख़तरनाक प्रवृत्ति बनती जा रही है, जिसका अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को पूरी मज़बूती से विरोध करना होगा.
इसके लिए एक अधिक एकजुट और प्रभावी सुरक्षा परिषद आवश्यक है. यही कारण है कि सुरक्षा परिषद में सुधार बेहद अहम हो जाता है.
मेलिसा फ़्लेमिंग – आपने युद्धों के असर को बहुत नज़दीक से देखा है. आप शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त भी रहे हैं और युद्ध प्रभावित इलाक़ों व शरणार्थी शिविरों का दौरा कर चुके हैं. आपने समझा है कि युद्ध से भागने के लिए मजबूर होना क्या मायने रखता है. आज दुनिया में 12 करोड़ 20 लाख लोग जबरन विस्थापित हैं. इन हालात को समाप्त करने का रास्ता क्या हो सकता है? और आपका सन्देश उन सभी लोगों के लिए क्या है?
मेरा सन्देश शरणार्थियों के लिए एकजुटता का है, और देशों के लिए यह कि उनके दरवाज़े खुले रखें, शरणार्थियों के अधिकारों का सम्मान हो और उनके अपने देशों में शान्ति बहाल की जाए ताकि वे सुरक्षित घर लौट सकें.
जब दरवाज़े बन्द हो जाते हैं और संघर्ष जारी रहते हैं, तो शरणार्थी जन, अपने अधिकारों से वंचित होकर दुखद स्थिति में फँस जाते हैं. हालात और बिगड़ जाते हैं क्योंकि यूएनएचसीआर (UNHCR) जैसी एजेंसी भी गम्भीर वित्तीय संकट से जूझ रही है.
यह एक त्रासदी है, जिसके लिए व्यापक समाधान ज़रूरी है ताकि शरणार्थियों के अधिकार सुरक्षित रहें और उन्हें सम्मानजनक जीवन के लिए पर्याप्त समर्थन मिल सके.
मेलिसा फ़्लेमिंग – महासभा में आप जलवायु समाधान शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता भी करेंगे. आपने सदस्य देशों से इसमें क्या लेकर आने की अपेक्षा की है?
एंतोनियो गुटेरेश - यही समय है जब हर सदस्य देश को अपनी नई जलवायु योजना पेश करनी होगी. ज़रूरी है कि ये योजनाएँ 1.5 डिग्री सैल्सियस लक्ष्य के अनुरूप हों और उत्सर्जन में बड़ी कटौती सुनिश्चित करें.
इन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) में पूरी अर्थव्यवस्था और सभी ग्रीनहाउस गैसें शामिल हों, ताकि 1.5 डिग्री लक्ष्य बचा रहे. वरना हम ऐसी स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ से वापसी नामुमकिन होगी और वैश्विक तापमान को उस स्तर पर रोक पाना असम्भव हो जाएगा.
यह छोटे द्वीपीय देशों, अफ़्रीका और आपदा-प्रवण इलाक़ों जैसे दुनिया के सबसे असुरक्षित क्षेत्रों के लिए विनाशकारी साबित होगा.
इसीलिए अब आवश्यक है कि उत्सर्जन घटाने के लिए साहसिक और कठोर फ़ैसले लिए जाएँ, और सरकारें अपनी योजनाएँ उसी लक्ष्य के अनुरूप पेश करें.
मेलिसा फ़्लेमिंग – महासचिव बनने के बाद से यह आपकी शीर्ष प्राथमिकताओं में रहा है. आपने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों की यात्रा की है और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे असर अपनी आँखों से देखे हैं. क्या यह आपके लिए व्यक्तिगत स्तर पर भी मायने रखता है?
एंतोनियो गुटेरेश – यह हमारे समय का सबसे बड़ा ख़तरा है. इसलिए यह केवल मेरा नहीं, बल्कि हम सबका व्यक्तिगत मुद्दा है. मेरे लिए यह बिल्कुल स्पष्ट है कि यह हमारी सबसे बड़ी परीक्षा है — क्या दुनिया एकजुट होकर मानवता और धरती के इस दुश्मन को हरा सकती है या नहीं.
मेलिसा फ़्लेमिंग – कुछ लोग मानते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) भी हमारी सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियों में से है. महासभा में AI शासन पर एक वैश्विक संवाद होने वाला है. आपके अनुसार संयुक्त राष्ट्र में ऐसा संवाद क्यों ज़रूरी है, और आप इससे किस तरह के परिणाम की उम्मीद रखते हैं?
एंतोनियो गुटेरेश – हमें सुनिश्चित करना होगा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर मानव का नियंत्रण बना रहे, ताकि यह सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) और वैश्विक समानता में मदद करे, न कि अमीर और ग़रीब देशों की खाई को और गहरा करे.
एआई का इस्तेमाल हथियार के रूप में नहीं होना चाहिए. मैं लगातार माँग करता रहा हूँ कि स्वायत्त हथियारों पर रोक लगे, जिनमें बिना मानवीय नियंत्रण की मशीनें और ऐल्गोरिदम शामिल हैं, जो लोगों की जान ले सकती हैं.
साथ ही, एआई नफ़रत फैलाने वाले भाषण और समाज में ध्रुवीकरण नहीं बढ़ाए, इसके लिए भविष्य के लिए समझौते में स्पष्ट नियम प्रस्तावित किए गए हैं, ताकि यह तकनीक लोकतंत्र और शान्ति को मज़बूत करे, न कि कमज़ोर.
मेलिसा फ़्लेमिंग – सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के समर्थन में विकास के लिए वित्त जुटाना. आपकी प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक रही है. इस बार महासभा में एक अनोखा शिखर सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है, जिसमें अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के प्रमुख और राष्ट्राध्यक्ष एक साथ आएँगे. यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
एंतोनियो गुटेरेश – हमें अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में सुधार की ज़रूरत है, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनी थी और आज की दुनिया का प्रतिनिधित्व नहीं करती. विकासशील देशों और अफ़्रीका-लैटिन अमेरिका जैसे महाद्वीपों को वैश्विक संस्थाओं में उचित भागेदारी मिलनी चाहिए.
साथ ही, संसाधनों को कई गुना बढ़ाने के उपाय ज़रूरी हैं. आधिकारिक विकास सहायता घट रही है, लेकिन बहुपक्षीय विकास बैंकों की पूँजी में निवेश करके सीमित धन को कई गुना किया जा सकता है. इससे प्रणाली न्यायपूर्ण बनेगी और देशों को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसे बुनियादी क्षेत्रों में सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने में मदद मिलेगी.
मेलिसा फ़्लेमिंग – हम बीजिंग सम्मेलन की 30वीं वर्षगाँठ ऐसे समय में मना रहे हैं जब महिलाओं के अधिकारों में गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है. इस अवसर पर आपका सन्देश क्या होगा?
एंतोनियो गुटेरेश – लैंगिक समानता, बल्कि लैंगिक संतुलन, संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों के केन्द्र में है. अगर इसका विरोध होता है तो हमें उसका डटकर सामना करना होगा. यह दोहराना ज़रूरी है कि दुनिया तभी न्यायसंगत हो सकती है जब आधी आबादी समान स्तर पर खड़ी हो और सबके हित में मिलकर काम करे.
मेलिसा फ़्लेमिंग – व्यक्तिगत स्तर पर क्या आपको कभी निराशा महसूस होती है?
एंतोनियो गुटेरेश – कभी नहीं. मैं अक्सर ज्यों मोने का यह वाक्य दोहराता हूँ: “मैं न आशावादी हूँ, न निराशावादी, मैं दृढ़ संकल्पित हूँ.” मेरा मानना है कि आज का समय संकल्प का है. हालात चाहे कितने भी निराशाजनक क्यों न लगें, हमें उम्मीद ख़ुद बनानी होगी, हार नहीं माननी होगी और अपने लक्ष्यों को पाने तक लगातार संघर्ष करना होगा.
मेलिसा फ़्लेमिंग – संयुक्त राष्ट्र कई वर्षों से वित्तीय संकट का सामना कर रहा है, जो अब और गहरा हो गया है. हाल ही में बड़े पैमाने पर कटौतियाँ करनी पड़ी हैं. कुछ प्रस्ताव सचिवालय में रखे गए, लेकिन सबसे ज़्यादा असर मानवीय एजेंसियों पर पड़ा है, जिनके बजट घटा दिए गए हैं. इसका सीधा असर उन लोगों पर पड़ रहा है, जिनकी सेवा संयुक्त राष्ट्र करता है. ऐसे में, आप अगले सप्ताह सदस्य देशों से क्या कहेंगे कि संयुक्त राष्ट्र को उनके समर्थन की ज़रूरत क्यों है?
एंतोनियो गुटेरेश – सबसे पहले सदस्य देशों को अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभानी होंगी. हाल के वर्षों में रक्षा ख़र्च के बजट बढ़ाए जाने से स्वैच्छिक योगदान घटे हैं, इसलिए उन्हें बनाए रखना ज़रूरी है.
लेकिन अनिवार्य आकलित योगदान, जैसेकि शान्तिरक्षा अभियानों के लिए, और भी अहम हैं. अगर ये पूरे नहीं हुए, तो भारी कटौतियाँ करनी पड़ेंगी जिनका लोगों की ज़िन्दगी पर विनाशकारी असर होगा.
इसलिए देशों को कठिन हालात में भी एसडीजी, विकास सहयोग और मानवीय सहायता के लिए संसाधन जुटाने होंगे और अपनी अनिवार्य ज़िम्मेदारियाँ पूरी करनी होंगी.
मेलिसा फ़्लेमिंग – मार्च में आपने संगठन को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए यूएन80 पहल शुरू की थी. आपने कहा था कि यह एक ऐसा संयुक्त राष्ट्र होगा जो और अधिक फ़ुर्तीला, जवाबदेह और सहनशील हो, तथा ज़रूरतमन्द लोगों की बेहतर सेवा कर सके. यह किसी 80 साल पुराने संगठन जैसा नहीं लगता, बल्कि नएपन और बदलाव की ओर बढ़ते संगठन जैसा दिखता है. वह नया संयुक्त राष्ट्र कैसा होगा?
एंतोनियो गुटेरेश – आज संयुक्त राष्ट्र कई एजेंसियों का एक जटिल समूह है. अगर हम इसे आज से शुरू से बनाते, तो इसकी संरचना बिल्कुल अलग होती. मौजूदा प्रणाली में कई जगह काम की पुनरावृत्ति होती है, समन्वय की कमी है और सहयोग की बजाय प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है.
नया संयुक्त राष्ट्र ऐसा होना चाहिए जहाँ संसाधनों की बर्बादी नहीं हो, संगठन अधिक सरल और प्रभावी बने और पूरी ऊर्जा लोगों की सेवा पर केन्द्रित हो.
जैसेकि WFP, यूनीसेफ़ और यूएनएचसीआर जैसी मानवीय एजेंसियाँ जैसे अपने मूल काम जारी रखते हुए आपूर्ति श्रृंखला व अन्य ढाँचागत सुविधाएँ साझा कर सकती हैं, जिससे बड़ी बचत हो सकती है.
सच तो यह है कि नौकरशाही हमेशा बदलाव का विरोध करती है. इसके बावजूद हमने मुख्यालय और एजेंसियों को कड़े सुधार अपनाने के लिए कहा है, ताकि ध्यान ढाँचे पर नहीं बल्कि लोगों की सेवा पर रहे.
मेलिसा फ़्लेमिंग – आपने हमेशा युवाओं की आवाज़ बुलन्द की है और उन्हें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया है, यहाँ तक कि महासभा में भी. अगले सप्ताह बड़ी संख्या में युवा यहाँ मौजूद होंगे. आप उन्हें क्या सन्देश देना चाहेंगे कि वे दुनिया को बदलने में कैसे सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं?
एंतोनियो गुटेरेश - मेरा सन्देश है कि युवा हर स्तर पर सक्रिय रहें. योगदान देने के कई रास्ते हैं - सोशल मीडिया के माध्यम से, समाज में अहम मुद्दों पर काम करने वाले संगठनों से जुड़कर, मानवीय सहायता कार्यों में भाग लेकर, और अपने देशों के राजनैतिक जीवन में सक्रिय रहकर.
उन्हें समझना होगा कि यह दुनिया उनकी है - भविष्य की नहीं, बल्कि आज की. अपनी नागरिकता को अपनाकर वे इसे बदलाव की ताक़त बना सकते हैं. तभी न्याय और समानता पर आधारित दुनिया का निर्माण सम्भव होगा.
मेलिसा फ़्लेमिंग – और आख़िर में, दुनिया में बहुत उदासीनता है. ख़बरों और सोशल मीडिया पर छाई निराशा और डर इसकी एक बड़ी वजह है. ऐसे में लोग क्यों परवाह करें कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में क्या हो रहा है?
क्योंकि आज दुनिया एक-दूसरे से जुड़ी है. कहीं भी होने वाली घटना हमारी ज़िन्दगी को प्रभावित करती है. जनसंख्या के रुझान और लोगों की आवाजाही ही देख लीजिए - यह सचमुच एक ही दुनिया है. हमारा घर, यही संसार है, और किसी भी हिस्से की समस्या, दरअसल हमारी अपनी समस्या है.