इंटरव्यू: टकराव सम्बन्धी यौन हिंसा ‘इतिहास की सबसे बड़ी चुप्पियों में से एक'
हिंसक टकराव व संघर्ष से सम्बन्धित यौन हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि प्रमिला पैटन के अनुसार, इन सन्दर्भों में यौन हिंसा को लेकर इतिहास में हमेशा से चुप्पी रखी गई है और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी लगातार वैश्विक संघर्षों के बावजूद, इसके मामले दर्ज नहीं हो पा रहे हैं.
प्रमिला पैटन ने यौन हिंसा और संघर्ष उन्मूलन के लिए अन्तरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर यूएन न्यूज़ के साथ से बात की, जो हर साल 19 जून को मनाया जाता है.
प्रमिला पैटन: संघर्ष-सम्बन्धी यौन हिंसा का उद्देश्य न केवल भुक्तभोगी को, बल्कि परिवार, समुदाय, समाज को भी नुक़सान पहुँचाना होता है और इस हिंसा को भय पैदा करने, अपमानित करने, विस्थापित करने के लिए अंजाम दिया जाता है.
संघर्ष से सम्बन्धित यौन हिंसा से सम्बन्धित मामले कम दर्ज होने का मुख्य कारण कलंक की मानसिकता है. अक्सर आप देखते हैं कि यौन हिंसा के भुक्तभोगी बलात्कार और समाज में अस्वीकृति की दोहरी त्रासदी से पीड़ित होते हैं. यह एकमात्र ऐसा अपराध है जिसके लिए समाज, वास्तविक अपराधियों की तुलना में पीड़ितों को अधिक दोषी ठहराता है.
इसका एक कारण बदले की कार्रवाई का डर भी है. संघर्ष से जुड़ी यौन हिंसा, देशों व ग़ैर-सरकारी तत्वों द्वारा की जाती है. जब देशों की व्यवस्थाओं से जुड़े लोग ही अपराधी हों, तब आप उसकी रिपोर्टिंग कैसे की जा सकती है?
कई सन्दर्भों में न्याय प्रणाली में विश्वास की कमी होना भी एक तथ्य है. जब न्याय मिलना दर्लभ है और दंड मुक्ति एक सामान्य स्थिति है तो कार्रवाई क्यों होगी?
यूएन न्यूज़: संघर्ष-सम्बन्धी यौन हिंसा कितनी प्रचलित है?
प्रमिला पैटन : संघर्ष-सम्बन्धी यौन हिंसा की वास्तविक व्यापकता के बारे में बात करना बहुत कठिन है.
एक उदाहरण के तौर पर बताएँ कि साल 2023 में, महासचिव को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में, हमने वर्ष 2022 के लिए काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) में 1,000 से भी कम मामलों पर प्रकाश डाला था.
जब मैंने यूनीसेफ़ के आंकड़े देखे, तो उनमें 32 हज़ार मामले बताए गए थे और संयुक्त राष्ट्र की यौन व प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी - UNFPA के आंकड़ों में उसी वर्ष 38 हज़ार मामले बताए गए थे. इसे देखकर मैं सचमुच घबरा गई थी.
इसलिए, मुझे अपने डेटा को अपडेट करने और इन मामलों का आलेखन करने में आने वाली सुरक्षा और पहुँच सम्बन्धी चुनौतियों के सन्दर्भ को समझाने के लिए काँगो जाना पड़ा.
यूएन न्यूज़: इस वर्ष आपके शासनादेश की 15वीं वर्षगाँठ है. क्या आप बता सकती हैं कि यह क्या है और यह कैसे विकसित हुआ है?
प्रमिला पैटन : 2009 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने यौन हिंसा को उन महिलाओं और लड़कियों की नज़र से देखा, जिनके शरीर, युद्ध के इतिहास से ही, युद्ध के मैदान का हिस्सा रहे हैं.
प्रस्ताव 1888 में मेरे शासनादेश को स्थापित किया गया. उस प्रस्ताव के साथ यौन हिंसा के बारे में एक आदर्श बदलाव आया कि यह युद्ध का नतीजा या युद्ध से सम्बन्धित हानि नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा अपराध है जिसे रोका जा सकता है.
पहली बार, न्याय और सुरक्षा प्रतिक्रिया की ज़रूरत को समझा गया. इसलिए, मैं संघर्ष-सम्बन्धी यौन हिंसा की रोकथाम और प्रतिक्रिया दोनों पर रणनैतिक और सुसंगत मार्गदर्शन मुहैया कराती हूँ.
प्रस्ताव 1888 के बाद, शासनादेश वास्तव में विकसित हो गया है.
सुरक्षा परिषद ने संघर्ष-सम्बन्धी यौन हिंसा से सम्बन्धित कम से कम पाँच प्रस्ताव पारित किए हैं. इन प्रस्तावों में निगरानी, विश्लेषण और रिपोर्टिंग व्यवस्था (MARA) की स्थापना, यह मान्यता कि पुरुष और लड़के भी यौन हिंसा के शिकार होते हैं, और संघर्ष-सम्बन्धी यौन हिंसा की रोकथाम व प्रतिक्रिया दोनों में भुक्तभोगी पर केन्द्रित दृष्टिकोण का विकास शामिल है.
इसलिए, शासनादेश वास्तव में बहुत अच्छी तरह से विकसित हुआ है. हमारे पास एक मजबूत ढाँचा है. हमें और अधिक प्रस्तावों की आवश्यकता नहीं है.
आज हमें वास्तव में इन प्रस्तावों को ज़मीनी स्तर पर उपाय में बदलने तथा इन पर बेहतर अमल सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, ताकि ये प्रस्ताव, प्रतिबद्धताओं से परिणाम में परिवर्तित हो सकें, क्योंकि ज़मीनी स्तर पर वास्तविकता बहुत अलग है.
यूएन न्यूज़: क्या प्रगति हुई है?
प्रमिला पैटन: यौन हिंसा का इस्तेमाल युद्ध, आतंकवाद, और राजनैतिक दमन की रणनीति के रूप में किया जाता है. हम प्रत्येक नए संघर्ष के साथ, यौन हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी देखते हैं.
लिंग आधारित यौन हिंसा का मुक़ाबला करने के लिए, धन उपलब्धता लगातार कम होती जा रही है, जिससे पीड़ितों को वे सेवाएँ नहीं मिल पातीं जिनकी उन्हें आवश्यकता है. हम इन सभी पीड़ितों को निराश कर रहे हैं.
इतना कहने के बाद, मैं यह कहना चाहूंगी कि वास्तव में इस शासनादेश के कारण ही आज हम उन हज़ारों भुक्तभोगियों तक पहुँचने में सक्षम हैं जो कभी अदृश्य थे.
15 साल बाद, मैं प्रगति देख रही हूँ. मैं देख रही हूँ कि भुक्तभोगी, किस तरह आगे आने के लिए ज़्यादा राज़ी हैं.
अब भी काम किया जाना बाक़ी है, लेकिन आज वे आगे आकर अपनी बात कहने में अधिक सक्षम हैं.
और मेरे लिए यही, इस कार्यालय के काम का परिणाम है.
लेकिन मेरे लिए सबसे अच्छा संरक्षण, निवारण है. और हम एक ऐसे अपराध के बारे में बात कर रहे हैं जिसे यौन हिंसा के मूल कारणों के समाधान निकालकर रोका जा सकता है. जिनमें शान्ति के समय में लैंगिक असमानता, भेदभाव, लोगों को हाशिए पर धकेल दिया जाना, और ग़रीबी जैसे अदृश्य कारक शामिल हैं.
यूएन न्यूज़: आपकी भूमिका का सबसे कठिन हिस्सा क्या है?
प्रमिला पैटन: मुझे अब भी नाइजीरिया के उत्तर-पूर्वी भाग में मैदुगुरी के एक शिविर में अपना पहला मिशन याद है, जहाँ मैंने बोको हराम की क़ैद से छूटी हुई छोटी लड़कियों और उनके बच्चों से मुलाक़ात की थी.
कमरे में 12 से 14 साल की 200 लड़कियाँ थीं. मैंने अपने कर्मचारियों से छोटे बच्चों की संख्या गिनने को कहा. वहाँ 166 छोटे बच्चे थे.
वे लड़कियाँ मुझे बता रही थीं कि बोको हराम से आज़ाद होने के बाद भी उनका दुख ख़त्म नहीं हुआ था. शिविर के अन्दर भी उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता था. उनके पास पर्याप्त भोजन नहीं था. बच्चों के पास भोजन नहीं था. उन्हें बोको हराम की पत्नियाँ कहा जाता था और शिविर के अन्दर उनका यौन शोषण किया जाता था. उनके बच्चों को बोको हराम के साँप कहा जाता था.
मुझे इराक़ में एक यज़ीदी लड़की से मिलना याद है जो मेरे सामने एक जीवित लाश की तरह बैठी थी. मुझे बताया गया कि जब उसे रिहा किया गया, तब वह आधी बेहोश अवस्था में थी, और मुझे उसकी चुप्पी तोड़ने में घंटों लग गए थे.
मैं 2017 से तीन बार बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार इलाक़े में गई और वहाँ महिलाओं और लड़कियों ने मुझे बताया कि किस तरह उन्हें चट्टानों और पेड़ों से बान्धकर उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था.
ये आपबीतियाँ सुनना मुश्किल है और आप असहाय महसूस करते हैं. साथ ही, वहाँ जाकर आप उम्मीदें भी जोड़ते हैं. जब मैं वहाँ से वापिस आती हूँ, तो मैं उनके लिए धन जुटाती हूँ, क्योंकि मैं उनकी ज़रूरतों को जानती हूँ और उनके अनुभव को बेहतर ढंग से समझती हूँ.
यूएन न्यूज़: क्या आप यूएन उन्मूलन दिवस के अवसर पर भुक्तभोगियों को कोई संदेश देना चाहेंगी.
प्रमिला पैटन: मेरा सन्देश सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण रूप से भुक्तभोगियों, महिलाओं और लड़कियों के लिए है, जो दुर्भाग्य से इस अपराध से बहुत अधिक पीड़ित हैं, लेकिन मैं इस शासनादेश को केवल महिलाओं तक सीमित नहीं रखना चाहती, क्योंकि पुरुषों और लड़कों को भी चुप्पी तोड़नी होगी. उनकी चुप्पी, अपराधियों को इस अपराध को जारी रखने का साहस देगी.
मैं चाहती हूँ कि यौन हिंसा के भुक्तभोगी ये जानें कि मैं उनकी दुर्दशा को दूर करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हूँ और उनके लिए काम करुँगी, लेकिन मेरे पास अपराधियों के लिए भी एक सन्देश है. मेरा कार्यालय, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और क़ानून के सिद्धान्त पर चलने वाली, विशेषज्ञों की मेरी टीम, न्याय और जवाबदेही पर काम कर रही है, और इसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी. न्याय की गति धीमी हो सकती है, लेकिन हम यह सुनिश्चित करेंगे कि इन सभी भुक्तभोगियों को न्याय मिले.
इस इंटरव्यू को स्पष्टता व लम्बाई की ख़ातिर सम्पादित किया गया है.