
इथियोपिया, लम्बे समय से अनेक जलवायु-जनित व हिंसक संघर्ष-सम्बन्धी आपात स्थितियों से ग्रस्त है, जिनसे बच्चों की शिक्षा तक पहुँच प्रभावित होती है. यह अफ़्रीका में शरणार्थियों के लिये दूसरा सबसे बड़ा मेज़बान देश है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय आबादी के साथ-साथ, अतिरिक्त छात्रों के कारण शैक्षिक आवश्यकताऐं और बढ़ गई है.
पारम्परिक लैंगिक मानदण्डों और लम्बी दूरी पर स्थित स्कूलों के कारण, कुछ बच्चों के लिया शिक्षा सुलभता बाधित होती है. इसलिये यह अनिवार्य है कि आरम्भिक शिक्षा और स्कूल की तैयारी सुनिश्चित की जाए, बेहतर जीवन कौशल पर केन्द्रित शिक्षा को लागू किया जाए और लड़कियों की शिक्षा का समर्थन करने के लिये समुदायों को शामिल किया जाए.

मध्य अफ़्रीकी गणराज्य के बांगी में ज्याँ व्कोलमॉम्ब स्कूल में कुछ छात्र.
यहाँ अनेक स्कूलों पर सशस्त्र बलों का क़ब्ज़ा है या फिर वे हिंसक संघर्ष, विस्थापन और अस्थिरता के कारण दुर्गम हो गए हैं. इस वजह से, मध्य अफ्रीकी गणराज्य बच्चों के लिये पृथ्वी पर सबसे कठिन स्थानों में से एक बन गया है.
बच्चों को गुणवत्तापरक शिक्षा और पढ़ने-लिखने के लिये सुरक्षित स्थलों को सुलभ बनाये जाने की आवश्यकता है, जिसे ध्यान में रखते हुए, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) बच्चों पर केन्द्रित उपायों को प्राथमिकता दे रहा है.
इससे छात्रों के लिये सुरक्षित ढँग से स्कूल लौट पाना सम्भव होगा और अभावग्रस्त इलाक़ों में सतत जल आपूर्ति, स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई के बुनियादी ढांचे का विकास भी सम्भव हो सकेगा.

निजेर और नज़दीकी सहेल क्षेत्र में जारी हिंसक संघर्ष व असुरक्षा, और कोविड-19 महामारी के कारण स्कूलों में तालाबन्दी के परिणामस्वरूप, अनेक छात्र कक्षाओं में भाग लेने में असमर्थ रहे हैं. बच्चों को स्कूल में उपस्थित होने के बजाय शोषण और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है.
यूनीसेफ, सभी बच्चों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने पर केन्द्रित उपायों की पैरवी करता है. इनमें बेहतर शैक्षिक सुलभता; व्यावहारिक व सामाजिक परिवर्तन; और शिक्षा के लिये बेहतर सरकारी बजट आवण्टन समेत अन्य हस्तक्षेप हैं.

लेबनान में शरणार्थियों की बड़ी संख्या और कोविड-19 के कारण गहराए आर्थिक संकट की वजह से स्कूलों को एक गम्भीर झटका लगा है. सरकारी तंत्र अस्थिरता के दौर से गुज़र रहा है, मगर स्कूलों से बाहर बच्चों की संख्या बढ़ रही है, जिससे सार्वजनिक शिक्षा मुहैया कराने की मांग बढ़ रही जबकि संसाधन सीमित हैं.
शिक्षा मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों समेत शिक्षा क्षेत्र के साथ साझीदारी में पाँच साल के लिये शिक्षा रणनीति तैयार की है, जोकि शैक्षिक सुलभता और शैक्षिक सेवाओं व प्रणालियों की गुणवत्ता में सुधार लाने पर केन्द्रित है.

पिछले वर्ष अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालेबान का वर्चस्व स्थापित होने के बाद से देश के लिये विदेशी सहायता रोक लग गई. मगर उससे पहले भी अफ़ग़ानिस्तान, दशकों के संघर्ष, निर्धनता से पीड़ित रहा है.
लम्बी अवधि के सूखे ने आधी आबादी के समक्ष भरपेट भोजन उपलब्ध ना होने पाने का संकट है. लगभग एक करोड़ लड़कियाँ और लड़के जीवित रहने के लिये मानवीय सहायता पर निर्भर हैं.
यूनीसेफ़ के अनुसार, देश में अनुमानित 37 लाख बच्चे स्कूल से बाहर हैं और उनमें से 60 प्रतिशत लड़कियाँ हैं. यूएन एजेंसी नैतिक अनिवार्यता और आर्थिक आवश्यकता, दोनों के रूप में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये प्रयासरत है.

राष्ट्रीय आँकड़ों के अनुसार, क्यूबा में 11 हज़ार 842 विकलांग बच्चे एक समावेशी शिक्षा प्रक्रिया के हिस्से के रूप में नियमित स्कूलों में हिस्सा लेते हैं.
आम शिक्षा प्रणाली के भीतर, समावेशी शिक्षा सभी छात्रों के लिये महत्वपूर्ण शिक्षा प्रदान करती है. और आवश्यकतानुसार व्यक्तिगत सहायता के साथ-साथ सभी विद्यार्थियों को समान रूप से, आयु-उपयुक्त कक्षाओं में भाग लेने में मदद करती है.

शिक्षा में रूपान्तरकारी बदलाव लाने पर केन्द्रित, यूएन की शिखर बैठक 16 से 19 सितम्बर तक न्यूयॉर्क मुख्यालय में आयोजित की जाएगी. विश्व भर में बच्चे और युवजन, आम तौर पर नज़र ना आने वाले जिस संकट का सामना कर रहे हैं, इस बैठक में उससे निपटने पर चर्चा होगी: शिक्षा में समता, समावेशन, गुणवत्ता और प्रासंगिकता.
यह शिखर बैठक वैश्विक राजनैतिक एजेण्डा में शिक्षा को ऊपर उठाने और महामारी के कारण हुई शिक्षा हानि से उबरने के लिये लामबन्दी का अवसर है. साथ ही, तेज़ी से बदलती दुनिया में शिक्षा की कायापलट कर देने वाले बदलावों को स्फूर्ति देने का भी अवसर होगा.