
महाराष्ट्र: प्लास्टिक से उत्पाद, आजीविका की शुरुआत
पुणे में टाइड टर्नर प्लास्टिक चुनौती के तहत, 20 युवतियों को 45 दिन का प्रशिक्षण दिया गया, जिनमें से आधी संख्या में महिलाएँ कूड़ा बीनने वाले कमज़ोर वर्ग से थीं. इस प्रशिक्षण के ज़रिए उन्हें एक अनूठे चरखे से एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को बुनकर, बस्ते और चटाई जैसे टिकाऊ उत्पाद बनाना सिखाया गया. अब ये महिलाएँ, हर सप्ताह लगभग 200 किलोग्राम प्लास्टिक, कूड़ा स्थल से हटाकर, पर्यावरण के संरक्षण के साथ-साथ, आत्मनिर्भरता हासिल करने में सफल हुई हैं.

राजस्थान: 4 युवा, 20 गाँव, 2,000 छात्र – एक शिक्षित बदलाव
हर्मारा, पलहोड़ी, बीकानेर और धौलिया में युवाओं ने 25 स्कूलों में नाटक, पोस्टर और अभियान के ज़रिए प्लास्टिक मुक्त ग्राम पंचायतों की शुरुआत की. उनके प्रयासों ने छात्रों को कूड़ेदान की माँग करने और ख़पत के सतत तौर-तरीक़ों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया, जिससे अन्तत: पंचायत समर्थित प्लास्टिक कचरा प्रबन्धन प्रणाली स्थापित हुई है.

युवा नेतृत्व में प्लास्टिक-मुक्त मिशन
स्काउट नेता राम प्रसाद ने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए, युवाओं को जागरूकता अभियानों, स्वच्छता अभियानों और प्लास्टिक संग्रह प्रतियोगिताओं के माध्यम से संगठित किया. स्काउट्स ने स्कूलों और समुदायों तक पहुँचकर प्लास्टिक का उपयोग घटाने का सन्देश फैलाया, जिससे प्लास्टिक के इस्तेमाल में भारी गिरावट देखी गई.
स्कूलों से शुरू हुई इस पहल ने समाज में स्थाई बदलाव की नींव रखी और पुन: उपयोग को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों एवं नगरपालिका के जुड़ने से इस आन्दोलन का प्रभाव सुनिश्चित हुआ.

नदियों को स्वच्छ रखने का संकल्प
राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) के 528 कैडेट्स, गणतंत्र दिवस शिविर 2025 से पहले, गंगा और हुगली नदियों के 1,200 किमी लम्बे तट के विशेष नौकायन अभियान पर निकले हैं. रास्ते में, कैडेट्स ने टाइड टर्नर प्लास्टिक चुनौती में शामिल होकर नदी तटों पर सफ़ाई की, नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से जागरूकता बढ़ाई और स्वच्छ भारत मिशन के तहत नदियों में फैले प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने का संकल्प लिया.

परिवर्तन का दृष्टिकोण
दृष्टिबाधित अज़लान अहमद स्कूल में टाइड टर्नर प्लास्टिक चुनौती से जुड़े और अब विश्वविद्यालय में आने के बाद 100 से अधिक छात्रों का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने कक्षाओं में कूड़ेदान लगाए, प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध की पैरोकारी की और अपने साथियों को उपभोग के लिए सतत तौर-तरीक़े अपनाने के लिए प्रेरित किया.

प्लास्टिक कचरे से नवाचारी जीवन रक्षक जैकेट
आगरा व उसके आसपास के गाँवों की महिलाओं व स्कूली छात्रों ने री-सायकिल की गई सामग्रियों से जीवन रक्षक जैकेट बनाने की एक नवाचारी परियोजना पर काम किया. उन्होंने प्लास्टिक की बोतलों, थर्मोकोल और कृषि अपशिष्ट को फिर से उपयोग करके, एक कम लागत वाला, सतत विकल्प डिज़ाइन किया है, जो कचरा कम करने और तटीय इलाक़ों के समुदायों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करता है.

‘वसुधा मातृ समूह’ – कपड़े से थैला, थैले से बदलाव
पनवारी गाँव में, महिलाओं के एक समूह ने वसुधा मातृ समूह का गठन किया, जो दान में दिए गए पुराने कपड़ों को पुन: उपयोग में लाने योग्य थैलों में बदलने के लिए काम करता है. इससे न केवल प्लास्टिक कचरा कम हुआ, बल्कि महिलाओं को नई आजीविकाएँ भी प्राप्त हुई हैं. अब गाँव के हर घर तक उनके थैले पहुँच चुके हैं.

वडोदरा और अहमदाबाद के छात्रों की परिवर्तन लहर
वडोदरा के MES हाई स्कूल और अहमदाबाद के लक्ष्य इन्टरनेशनल के छात्रों ने टाइड चर्नर चुनौती के तहत, प्लास्टिक के स्थान पर वैकल्पिक साधन अपनाए. इन स्कूलों में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाया गया और नाटकों व अभियानों से सामुदायिक चेतना फैलाई गई.

तमिलनाडु: नारियल पत्तियों से हर सप्ताह 40 हज़ार बायोडिग्रेडेबल स्ट्रॉ
तमिलनाडु में, Sunbird Straws की मदद से 22 ग्रामीण युवतियों ने नारियल कचरे से बायोडिग्रेडेबल स्ट्रॉ बनाने सीखे. ये महिलाएँ अब एक स्थानीय इकाई में हर सप्ताह 40 हज़ार इको-स्ट्रॉ का उत्पादन करती हैं. ये बायोडिग्रेडेबल स्ट्रॉ, हर वर्ष दो लाख प्लास्टिक स्ट्रॉ की जगह ले रहे हैं, और आजीविका व पर्यावरण, दोनों को संवारने में योगदान दे रहे हैं.

तमिलनाडु: कक्षाओं से समुदायों तक युवा शक्ति की धूम
सालेम की Green Fellow अनिषा ने प्लास्टिक के विरुद्ध मुहिम में 1,200 से अधिक सरकारी कर्मचारियों और छात्रों को जोड़ा, तो तेनकासी के ग्नाना श्री भावानी ने 150+ स्कूलों और 2,000 छात्रों को संगठित किया. दोनों ने ग्राम सभाओं और स्व-सहायता समूहों को साथ लेकर पूरे ज़िले में प्लास्टिक-मुक्त क्षेत्र बनाए और स्वच्छता एवं जागरूकता अभियान चलाए.

पंजाब: प्लास्टिक जागरूकता से कार्रवाई तक
पंजाब के दसग्रेन में सरकारी हाई स्कूल के लगभग 200 छात्रों ने एक आन्दोलन को जन्म दिया. नुक्कड़ नाटक और चर्चा के ज़रिए जागरूकता फैलाई गई तथा स्कूल में कचरा वर्गीकरण एवं प्लास्टिक संग्रह अभियान शुरू किए गए, जिससे यह शीघ्र ही प्लास्टिक-मुक्त क्षेत्र बन गया. इससे प्रेरित होकर पूरे समुदाय ने इसे अपनाने की कोशिश की है.