
रवांडा में, 1994 में तीन महीने से भी कम समय में तुत्सी समुदाय के लगगभग 10 लाख लोगों का जनसंहार, मानव इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक है. इस जनसंहार के पीछे कई वर्षों तक चले नफ़रत भरे भाषण और ग़लत सूचनाओं का लम्बा सिलसिला था, जिससे जातीय तनाव की आग फैली.

नई दिल्ली में आयोजित स्मृति समारोह में भारत में रवांडा की उच्चायुक्त, जैकलीन मुकनगिरा ने राजनयिकों, सरकारी अधिकारियों और नागरिक समाज के लोगों से कहा, "हमे सब याद है."
ख़ुद जनसंहार के पीड़ितों में से एक रहीं, उच्चायुक्त जैकलीन मुकनगिरा ने, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से "पर्याप्त साहस जुटाकर, सच्चाई के लिए खड़े होने, अन्याय से लड़ने तथा संघर्षों के समाधान में निष्पक्ष भूमिका निभाने" का आग्रह किया.

वहीं भारत में संयुक्त राष्ट्र के रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर, शॉम्बी शार्प ने कहा, "हम हर प्रकार की नफ़रत के ख़िलाफ़ एकजुट होकर खड़े हैं.”
उन्होंने सर्वजन के लिए न्याय व सम्मानपूर्ण विश्व का निर्माण करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र महासचिव, एंतोनियो गुटेरेश का एकजुटता से काम करने का आहवान दोहराया.

कार्यक्रम के दौरान, रवांडा में तुत्सियों के ख़िलाफ़ जनसंहार पर अन्तरराष्ट्रीय चिन्तन दिवस के लिए यूएन महासचिव का सन्देश भी सुनाया गया.
महासचिव ने कहा, “इस समय हर तरफ़ विभाजन देखने को मिल रहे हैं. दुनिया भर में ‘वे’ बनाम ‘हम’ की सोच की वजह से समाजों का तेज़ी से ध्रुवीकरण हो रहा है. डिजिटल टैक्नॉलॉजी को हथियार बनाकर नफ़रत को भड़काया जा रहा है, दरारों को गहरा किया जा रहा है और झूठ फैलाए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि हमें इतिहास से सबक़ लेकर, नफ़रत फ़ैलाने वाले भाषणों और विभाजन व असन्तोष को हिंसा में बदलने से रोकना होगा.