
अफ्रीका के लेक चाड क्षेत्र में हथियारबंद उपद्रवी गुटों द्वारा पैदा किए गए असुरक्षा की वजह से लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है. बहुत से ऐसे लोग जिन्हें उपद्रवियों द्वारा अगवा होकर प्रताड़ना जेलनी पड़ी, उनमें से कुछ लोग अब कैमरून में विस्थापितों के लिए बनाए गए शरणार्थी शिविरों और बस्तियों में रह रहे हैं.
वाला मतारी कैमरून की मूल निवासी हैं. वो भी हथियारबंद उपद्रवियों के हमलों के बाद लेक चाड क्षेत्र में अपने घरों से जान बचाने के लिए भाग कर कैमरून पहुँचने वाले लाखों लोगों में शामिल थीं. “वो आधी रात में आए थे जब मैं अपने बच्चों के साथ नींद में थी.”
UN Photo/Eskinder Debebe

वाला मतारी को अगवा करके सीमा पार नाईजीरिया ले जाया गया जहाँ उन्होंने दो साल झाड़ियों में गुज़ारे. “कुछ लोगों ने वहाँ से भाग निकलने की कोशिश की लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया, बाद में उनके ज़ख़्मों की वजह से उनकी मौत हो गई. उपद्रवी लोग अगवा किए गए लोगों के कान, छाती या अन्य अंग काट देते थे और उन्हें झाड़ियों में मरने के लिए छोड़ दिया जाता था.”
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वाला मतारी को कुछ वर्दीधारी लोगों ने बचाया और वो अब कैमरून के ज़माई शिविर में रह रही हैं. इस शिविर में बहुत सारे वो लोग भी रह रहे हैं जिन्हें आतंकवादियों की गतिविधियों की वजह से विस्थापित होना पड़ा. “मैं अपनी तकलीफ़ों और कड़वी यादों को भुलाने के लिए चर्च में जाती हूँ. ईश्वर की प्रार्थना करने के बाद हमें कुछ बेहतर नींद आती है. चर्च की मौजूदगी से मैं अपने जीवित होने पर ख़ुश हूँ.”

मोहम्मद लवान गोनी ज़माई से क़रीब 8 किलोमीटर मीनावाओ में रहते हैं. यहाँ नाईजीरिया से जान बचाकर कैमरून पहुँचने वाले लोगों के लिए शरणार्थी शिविर बनाया गया है. मोहम्मद लवान गोनी नाईजीरिया के एक पूर्व टैक्स अधिकारी हैं और उनके गृह क़स्बे बानकी में आतंकवादियों के हमले के बाद वो नाईजीरिया से भाग निकले थे.
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मुझे किशोर उम्र के दो लड़कों ने हमारे क़स्बे से ही अगवा कर लिया था. मैं उनके परिवारों को भी जानता था और अब वो मेरा गला काट देना चाहते थे. दो पूर्व लड़ाकों ने बीच-बचाव किया तो मेरी जान बच सकी. “अगर वो माफ़ी माँगें तो मैं उन्हें माफ़ कर दूँगा, लेकिन अंततः अल्लाह की सही फ़ैसला करने वाला है.”
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मोहम्मद लवान गोनी मीनावाओं में अपनी माँ, दो पत्नियों और 10 बच्चों के साथ लगभग पाँच वर्ष से रहते हैं. “सबसे पहले तो हमें शांति की ज़रूरत है, तभी हम वापिस जाकर अपने घरों की हालत देख सकते हैं. हमारे खेतों और फ़सलों की हालत भी, जिन्हें जलाकर राख कर दिया गया था. अगर कोई हमें बताए कि नाईजीरिया में शांति क़ायम हो गई है तो हम वहाँ को वापिस लौटना चाहेंगे. अगर ऐसा नहीं है तो हम अपनी पूरी ज़िदगी यहीं रहना चाहेंगे.”
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नाईजीरिया की फ़ाटी याहया भी मीनावाओ शिविर में रहती हैं. उन्हें नाईजीरिया के उत्तरी हिस्से में आतंकवादियों के चंगुल में तीन वर्ष गुज़ारने पड़े. “अगर मैं उनका कहना नहीं मानती थी तो मुझे कई बार पीटा गया, मसलन अगर मैंने पुरुषों की आँख से आँख मिलाकर देखने से मना कर दिया तो. कुछ लोगों को तो
इतना पीटा गया कि उनकी मौत हो गई. कुछ अन्य लोग खाना-पानी नहीं मिलने की वजह से मौत के मुँह में चले गए.”
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आज, मैं और मेरे बच्चे इस शिविर में सुरक्षित हैं, लेकिन कभी-कभी मुझे ऐसे बुरे सपने आते हैं जैसे कि वो लोग अब भी मेरी तलाश में यहाँ पहुँच गए हों, इससे मुझे बहुत डर लगता है. कभी-कभी मेरे बच्चे पूछते हैं, “वो लोग कहाँ हैं जिन्होंने हमें पीटा था और प्रताड़ित किया था.”
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