एसडीजी: ग़रीब शहरी प्रवासियों की समस्याओं को समझना होगा
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक़ भारत में 31 फ़ीसदी यानी लगभग 40 करोड़ लोग शहरों में रहते हैं. ये आबादी 2030 तक बढ़कर 41 फ़ीसदी होने का अनुमान है. शहरों को ‘इंजन ऑफ़ ग्रोथ’ या आर्थिक विकास का इंजन भी कहा जाता है.
गॉंवों से लोग रोज़गार व बेहतर जीवन की तलाश में शहरों का रुख़ करते हैं और पिछले कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन भी पलायन की वजह बनकर उभरा है.
लेकिन ग़रीबी दूर करने की तलाश में आए लोग शहरों के अविकसित बाहरी इलाक़ों या झुग्गी-झोपड़ियों में बिना सुविधाओं के संवेदनशील हालात में रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
शहरी प्रवासियों की मुश्किलों व ज़रूरतों को समझने के लिए, और टिकाऊ विकास लक्ष्य हासिल करने में उनकी अहमियत के मद्देनज़र, दिल्ली में हाल ही में एक विचार गोष्ठि आयोजित की गई जिसमें ग़रीव व वंचित समूहों की आवाज़ों को भी शामिल किया गया.
यूएन न्यूज़ हिन्दी की अंशु शर्मा ने दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष कार्यालय में राष्ट्रीय कार्यक्रम अधिकारी देवेन्दर सिंह से इस सिलसिले में एक ख़ास बातचीत की और सबसे पहले पूछा कि भारत में शहरी ग़रीबी कितना बड़ा मुद्दा है...