खुले में शौच पर पूर्ण विराम लगाने के प्रयासों में प्रगति
हर साल 19 नवंबर को 'विश्व शौचालय दिवस' मनाया जाता है. खुले में शौच का अर्थ है जब लोग शौचालय का उपयोग करने की बजाए खुले स्थानों में, यानी खेतों, जंगलों, झाड़ियों और नदियों में शौच करते हैं.
खुले में शौच का चलन लगातार कम हो रहा है लेकिन टिकाऊ विकास लक्ष्यों के तहत विशेष रूप से मध्य और दक्षिण एशिया, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया और सब-सहारा अफ्रीका में वर्ष 2030 तक इसके उन्मूलन के लिए शौचालय का इस्तेमाल बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है.
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 67 करोड़ 30 लाख लोग खुले स्थानों पर शौच करते हैं जिनमें से 91 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं.
दक्षिण एशिया में, विशेषकर भारत में, खुले में शौच का चलन एक बड़ी समस्या रही है लेकिन हाल ही में इसे ख़त्म करने की दिशा में काफी प्रगति हुई है.
इस दिशा में किए गए प्रयासों के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए हमारी सहयोगी अंशु शर्मा ने यूनीसेफ के भारत कार्यालय में जल और स्वच्छता मामलों के विशेषज्ञ मनीष वसुजा से बात की.