वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

सेहत के लिए घातक है तम्बाकू सेवन

सेहत के लिए घातक है तम्बाकू सेवन

तम्बाकू सेवन से होती हैं जानलेवा बीमारियाँ

अक्सर देखा गया है कि बहुत से माता-पिता अपने छोटे बच्चों के सामने ही तम्बाकू सेवन और धूम्रपान करने में शान समझते हैं.

लेकिन वो ये नहीं जानते कि इस छोटी सी भूल से उनके बच्चों के स्वास्थ्य और ज़िन्दगी की राह बिल्कुल बदल सकती है और जिसकी मंज़िल मौत के रूप में भी हो सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब भी कुछ ऐसे देश हैं जहाँ हर 10 में से 7 यानी क़रीब 70 फ़ीसदी लोगों को अभी ये नहीं मालूम की धूम्रपान से जानलेवा बीमारियाँ भी होती हैं.

संगठन ने गुरूवार, 31 मई को No Tobacco Day यानी विश्व तम्बाकू निषिद्ध दिवस के मौक़े पर ये ताज़ा रिपोर्ट जारी की है.

संयुक्त राष्ट्र की इस स्वास्थ्य एजेंसी ने दुनिया भर में धूम्रपान करने वाले लोगों को आगाह करते हुए कहा है कि धूम्रपान की लत की वजह से हर साल क़रीब 30 लाख लोगों की मौत जाती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक पदाधिकारी डॉक्टर कर्स्टीन स्शाट ने संयुक्त राष्ट्र रेडियो के साथ ख़ास बातचीत में कहा...

"ये इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है कि कुछ लोग तो जानते हैं कि धूम्रपान से कैंसर होता है, मगर बहुत से लोग अब भी ये नहीं जानते कि तम्पाकू सेवन से जानलेवा बीमारियाँ होती हैं जिनमें दिल की बीमारियाँ भी शामिल हैं. मिलाल के तौर पर अगर में आप पूछें तो क़रीब 73 फ़ीसदी आबादी को ये नहीं मालूम की तम्बाकू के सेवन से स्ट्रोक भी हो सकता है. वहीं इंडोनेशिया में इस तरह की जानकारी नहीं रखने वालों की संख्या क़रीब 55 फ़ीसदी है. सीधे तौर पर तम्बाकू का सेवन करने और धूम्रपान से परोक्ष रूप से प्रभावित होने वाले लोगों को होने वाली बीमारियों से एक साल में क़रीब 30 लाख लोगों की मौतें हो जाती है. लोगों को तम्बाकू के सेवन से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए उन्हें जागरूक बनाने की मुहिम के तहत व्यापक अभियान चलाया गया है. साथ ही डॉक्टरों से भी कहा जा रहा है कि वो लोगों को तम्बाकू के सेवन के नुक़सानों के बारे में भरपूर जानकारी मुहैया कराएँ."

डॉक्टर कर्स्टीन स्शॉट का कहना था कि जो लोग धूम्रपान की लत को छोड़ना चाहते हैं, उनके लिए हर तरह की सहायता और समर्थन उपलब्ध हैं.
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अफ़ग़ानिस्तान में अदालती प्रक्रिया की अनदेखी से महिलाओं को नहीं मिल पाता न्याय

अफ़ग़ानिस्तान में परिवारों के झगड़ों में अदालती प्रक्रिया का सहारा लेने के बजाय समुदायों या ख़ानदानों के ज़रिए सुलह-सफ़ाई कराने की परम्परा रही है.

इसका नतीजा ये देखा गया है कि अक्सर महिलाओं पर ज़ुल्म करने वाले लोग अदालती प्रक्रिया का सामना करने से बच जाते हैं और ज़ुल्म की शिकार महिलाओं को न्याय नहीं मिल पाता है.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि इस वजह से महिलाओं पर ज़ुल्म रुकने के बजाय फिर से होने की बहुत सम्भावनाएँ होती हैं क्योंकि महिलाओं पर ज़ुल्म करने वालों में अदालती प्रक्रिया और दंड भुगतने का कोई डर नहीं होता है.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय – OHCHR ने एक ताज़ा रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि ज़ुल्म की शिकार महिलाओं पर समुदायों, परिवारों और ख़ानदानों की तरफ़ से सुलह-सफ़ाई का फ़ैसला स्वीकार करने का दबाव डाला जाता है.

इससे महिलाओं पर अत्याचार करने वाले पुरुषों या महिलाओं को न्याय के कटघरे में नहीं लाया जाता है और ज़ुल्म की शिकार महिलाओं को पूरी तरह न्याय नहीं मिल पाता है. 

रिपोर्ट कहती है कि इसलिए महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा और ज़ुल्मों को अंजाम देने वालों को अक्सर सज़ाएँ नहीं मिल पाती हैं.

इनमें ख़ानदान की इज़्ज़त यानी Honour Killings के नाम पर होने वाली हत्याओं के मामले भी शामिल होते हैं.

रिपोर्ट में पेश किए गए आँकड़ों से पता चलता है कि साल 2016 और 2017 के दौरान ख़ानदानों की इज़्ज़त के नाम पर 280 हत्याएँ हुई थीं.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त ज़ायद राआद अल हुसैन का कहना है कि इस तरह की सुलह-सफ़ाई का सहारा लेने और अदालती प्रक्रिया को नज़रअन्दाज़ करने के नतीजे ये निकलते हैं कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा और ज़ुल्म फिर होने की बहुत सम्भावनाएँ होती हैं.

ऐसा माहौल होने से देश की क़ानूनी व्यवस्था में महिलाओं का भरोसा टूट जाता है और इस तरह पूरी आबादी को भी अदालतों पर कोई भरोसा नहीं रहता है.

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अफ्रीकी देश माली में बढ़ते चरमपंथ से अस्थिरता, लाखों बच्चे मौत के कगार पर

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़ ने कहा है कि माली में लगातार ख़राब होते सुरक्षा हालात की वजह से लाखों बच्चों का जीवन ख़तरे में पड़ गया है.

माली के उत्तरी हिस्से में साल 2012 तक इस्लामी चरमपंथियों का दबदबा था जिन्हें फ्रांसीसी सेना ने बेदख़ल किया था. तभी से वहाँ अस्थिरता और असुरक्षा के हालात हैं.

संयुक्त राष्ट्र के शान्ति सैनिक माली में शान्ति बहाल करने के प्रयासों में लगे हैं लेकिन उन पर इस्लामी चरमपंथियों के हमले होते रहते हैं. कहा ये जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र शान्ति सैनिकों का ये बेहद ख़तरनाक़ मिशनों में से एक है.

माली में असुरक्षा के हालात की वजह से पाँच साल से कम उम्र के क़रीब साढ़े आठ लाख बच्चे Acute Malnutrition यानी गम्भीर कुपोषण का शिकार हो गए हैं.

यूनीसेफ़ प्रवक्ता क्र्सिटोफ़े बुलिएरैक ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि इनमें से क़रीब ढाई लाख का स्वास्थ्य समुचित खाना-पानी नहीं मिलने की वजह से इतना बिगड़ गया है कि उनकी मौत हो जाने का ख़तरा पैदा हो गया है...

"इन बच्चों के हालात की तरफ़ दुनिया का कोई ध्यान नहीं है और ये लगातार हिंसा का शिकार होते रहते हैं. इन हालात में भूखे पेट रहने वाले और कुपोषण का शिकार होने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

इस वजह से ये बच्चे शिक्षा हासिल करने से भी वंचित हैं और बहुत से बच्चे तो जीवन के शुरूआती दिनों में ही मौत के मुँह में जा रहे हैं."

यूनीसेफ़ का कहना है कि ख़ासतौर से माली के उत्तरी इलाक़ों में खाने-पीने के सामान की भारी कमी है. इनमें टिम्बकटू का इलाक़ा शामिल है जहाँ Sever Acute Malnutrition यानी बेहद गम्भीर कुपोषण की तादाद 15 फ़ीसदी हो गई है.

यूनीसेफ़ के अनुसार माली के उत्तरी और कुछ केन्द्रीय इलाक़ों में 750 स्कूल बन्द पड़े हैं और 20 लाख से ज़्यादा बच्चों को तालीम हासिल करने के मौक़े और सुविधाएँ नहीं मिल पा रहे हैं.

इस बीच संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटॉनियो गुटेरेस ने बुधवार को माली का दौरा किया और अफ्रीका के सहेल क्षेत्र में आतंकवादी ख़तरों को दूर करने के लिए प्रयासरत क्षेत्रीय सेना के लिए वित्तीय संसाधन मुहैया कराने का आहवान किया.

महासचिव ने मोप्ती पहुँचने के बाद जी5 सहेल फ़ोर्स बेस का दौरा किया और उन तमाम लोगों का हौसला बढ़ाया जिन्होंने इस क्षेत्रीय शान्ति बल में शामिल होकर अमन और स्थिरता क़ायम करने का बीड़ा उठाया. ये फ़ोर्स पूरे सहेल क्षेत्र में बढ़ते चरमपंथ के मद्देनज़र शान्ति और स्थिरता बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध है. 

जी5 फ़ोर्स के गठन में बुर्किना फासो, चैड, माली, मौरीतानिया और नाइजेर नामक पाँच देशों ने संसाधन मुहैया कराए हैं.

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सऊदी अरब में गिरफ़्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अधिकार सुनिश्चित करने की पुकार

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय OHCHR ने सऊदी अरब में अनेक मानवाधिकार और सिविल लिबर्टीज़ कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी की आलोचना की है.

सऊदी अरब सरकार से इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को बन्दी बनाकर रखे गए स्थानों के बारे में जानकारी देने का भी अनुरोध किया गया है.

साथ ही अगर उन पर कोई आरोप हैं तो उन्हें निष्पक्ष न्यायिक और अदालती प्रक्रिया की सुविधा मिलनी चाहिए. ग़ौरतलब है कि गिरफ़्तार किए गए कम से कम 13 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में अनेक महिलाएं भी हैं.

इन्हें 15 मई को गिरफ़्तार किया गया था. मानवाधिकार कार्यालय का कहना है कि बाद में ऐसी ख़बरें आईं कि चार महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया गया था.

मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता एलिज़ाबेथ थ्रॉसेल ने जिनेवा में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अब भी छह महिलाएँ और तीन पुरुष सऊदी अधिकारियों की हिरासत में हैं.

इनमें से एक महिला को तो इस तरह हिरासत में रखा गया है कि उसका कोई अता-पता नहीं है और ना ही किसी भी तरीक़े से उससे सम्पर्क किया जा सकता है.

मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता एलिज़ाबेथ थ्रॉसेल ने सऊदी सरकार से आग्रह करते हुए कहा...


"हम सऊदी अरब सरकार के अधिकारियों से आग्रह करते हैं कि गिरफ़्तार की गई महिलाओं का पता-ठिकाना सार्वजनिक किया जाए. साथ ही ये भी सुनिश्चित किया जाए कि इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के नागरिक अधिकारों की गारंटी रहे जिनमें उन्हें न्यायिक और अदालती प्रक्रिया की सुविधा मिले. उन्हें ये जानने का भी हक़ दिया जाए कि उन्हें किन कारणों से गिरफ़्तार किया गया है, उनके ख़िलाफ़ क्या आरोप लगाए गए हैं. साथ ही उन्हें अपनी पसन्द के वकील के ज़रिए अपनी बात अदालत में रखने की भी इजाज़त मिले. इसके अलावा इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अपने परिवारों से भी मिलने का मौक़ा दिया जाए. इसके साथ ही इन्हें अपनी गिरफ़्तारियों को क़ानून द्वारा स्थापित सक्षम, स्वतंत्र और निष्पक्ष अदालत या ट्राइब्यूनल में चुनौती देने का भी अधिकार दिया जाए. और अगर उन पर किन्हीं आरोपों के तहत मुक़दमा भी चलाया जाता है तो उस मुक़दमे को कम से कम सम्भव समय में निबटाया जाए."


मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता एलिज़ाबेथ थ्रॉसेल ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारियों को भ्रम पैदा करने वाला घटनाक्रम बताया. उनका कहना है कि एक तरफ़ तो सऊदी सरकार सामाजिक सुधारों के ज़रिए अनेक पाबन्दियों को हटाने के संकेत दे रही है वहीं दूसरी तरफ़ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इस तरह गिरफ़्तार करना कैसे सही ठहराया जा सकता है.

ग़ौरतलब है कि नए सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने हाल के महीनों में कुछ सामाजिक सुधार करने के संकेत दिए हैं.

इन सुधारों में महिलाओं को अब कार चलाने यानी ड्राइविंग की इजाज़त दिए जाने की बात की जा रही है. साथ ही लोगों के मनोरंजन के लिए सिनेमाघर खोले जाएंगे.

साथ ही विज़न 2030 नामक पहल के तहत अनेक आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाने का लक्ष्य भी रखा गया है. 

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हिंदी समाचार - 1 जून 2018
ऑडियो
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World Bank/Aisha Faquir