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शान्ति और सुरक्षा
बलात्कार, हत्या, भूख से जूझ रहे लोग. सड़कों पर बिखरी हुई लाशों के बीच से गुज़रना दूभर. ठीक एक वर्ष पहले, 15 अप्रैल को सूडान एक ऐसे युद्ध के गर्त में धँस गया था, जो अब भी जारी है, और जिसमें अब तक क़रीब 15 हज़ार लोग अपनी जान गँवा चुके हैं. 80 लाख लोग विस्थापित हुए हैं, दो करोड़ 50 लाख लोगों को तात्कालिक सहायता की आवश्यकता है. वहीं, यूएन मानवतावादियों द्वारा अकाल की आशंका जताई जा रही है, राहत प्रयासों के मार्ग में बाधाएँ बरक़रार हैं और दोनों पक्षों द्वारा अंजाम दिए गए अत्याचार मामलों की सूची बढ़ती जा रही है.
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ग़ाज़ा: अकाल के कगार पर लाखों लोग
ग़ाज़ा में इसराइल के पूर्ण स्तर पर किए गए आक्रमण के पाँच महीने बाद, अब तक 30 हज़ार फ़लस्तीनियों की जान गई है, बड़ी संख्या में बच्चों की भूख की वजह से मौत हुई है और पाँच लाख से अधिक लोगों पर भुखमरी का जोखिम है.
इसराइल की भीषण बमबारी और जीवनरक्षक सामान की आपूर्ति पर सख़्तियों के बीच, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ ज़रूरतमन्द आबादी तक राहत पहुँचाने के लिए निरन्तर प्रयासरत हैं.
ये भी ख़बरों में
मानवाधिकार
ब्रिटेन की संसद में रवांडा की सुरक्षा-यूके नामक विधेयक, मंगलवार को पारित होने के बाद, संयुक्त राष्ट्र के दो वरिष्ठ पदाधिकारियों ने, वैश्विक स्तर पर साझेदारी की ज़िम्मेदारी, मानवाधिकारों और शरणार्थियों के संरक्षण पर, इस विधेयक के हानिकारक प्रभावों व नतीजों के बारे में फिर आगाह किया है.
महिलाएँ
संयुक्त राष्ट्र की प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी - UNFPA के भारत में सक्रिय युवा सलाहकार समूह (YAG) की सदस्य प्रिया राठौड़, राजस्थान के सीकर ज़िले की निवासी हैं. यूएनएफ़पीए में सलाहकार की अपनी भूमिका में वो यह सुनिश्चित करती है कि किशोरों व युवाओं, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा अधिकारों और लैंगिक मुद्दों पर चल रहे यूएनएफ़पीए कार्यक्रम, युवजन व उनके समुदायों की ज़रूरतों एवं चुनौतियों के प्रति उत्तरदायी और समावेशी हों. प्रिया राठौड़, एक युवा महिला परिवर्तक के नज़रिए से यूएनएफ़पीए के मिशन में किस प्रकार का योगदान कर रही हैं, इस पर प्रिया राठौर के साथ एक ख़ास बातचीत के कुछ अंश, इस वीडियो में...