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यौन, लिंग और लैंगिक पहचान पर, भय रहित अभिव्यक्ति की आज़ादी की पुकार

 स्पेन के मैड्रिड में एक प्रदर्शन में महिला कार्यकर्ता
© Unsplash/Mari Vlassi
स्पेन के मैड्रिड में एक प्रदर्शन में महिला कार्यकर्ता

यौन, लिंग और लैंगिक पहचान पर, भय रहित अभिव्यक्ति की आज़ादी की पुकार

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ रीम अलसालेम ने यौन सम्बन्धों एवं यौन रुझान पर अपने विचार व्यक्त करने वाली महिलाओं को, डराने-धमकाने की घटनाओं पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की है.

 

महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टेयर रीम अलसालेम ने ‘वैश्विक उत्तर’ के बहुत से देशों की महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और ट्रांसजैंडरों के बीच उभरे मतभेदों के मद्दनेज़र, विभिन्न दृष्टिकोण व्यक्त करने पर, महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा और लोगों को डराने-धमकाने की कड़ियों के ख़िलाफ़ आगाह भी किया है.

मानवाधिकारों का उल्लंघन

संयुक्त राष्ट्र के मानधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) द्वारा शुक्रवार को जारी एक प्रैस विज्ञप्ति में बताया गया है कि लैंगिक एवं  यौन रुझानों पर आधारित भेदभाव, अन्तरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मानवाधिकार क़ानून के अन्तर्गत निषिद्ध है.

विशेष रैपोर्टेयर रीम अलसालेम ने, वैश्विक उत्तर के अनेक देशों में महिलाओं, नारीवादी संगठनों और उनके सहयोगियों द्वारा, उनकी लैंगिक एवं यौन रुझान सम्बन्धित ज़रूरतों के लिए सम्मान की मांग करने या शान्तिपूर्ण ढंग से इकट्ठा होकर अपना पक्ष रखने के लिए, घटते आवश्यक स्थान पर चिन्ता जताई.

क़ानून प्रवर्तन का महत्व

महिलाओं की वैध सभाओं की सुरक्षा के लिए, और किसी भी दवाब, डर, ज़ोर-ज़बरदस्ती के बिना और ख़ामोश रहने को विवश किए बिना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए, क़ानून प्रवर्तन की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है.

यह स्पष्ट है कि क़ानून प्रवर्तन, जहाँ आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहा है, वहाँ मौखिक एवं शारीरिक दुर्व्यवहार और डराने-धमकाने के बहुत से मामले सामने आए हैं. इनका उद्देश्य ऐसे कार्यक्रमों को होने से रोकना, या उन महिलाओं को ख़ामोश करना है, जो इन मंचों पर अपनी बात कहना चाहती हैं.

विशेष रैपोर्टेयर ने यौन और समलैंगिक सम्बन्धों पर आधारित ग़ैर-भेदभाव पर, महिलाओं, लड़कियों और उनके सहयोगियों के विश्वासों के लिए, उनके ख़िलाफ़ कीचड़ उछालने वाले अभियानों के लगातार जारी रहने पर चिन्ता व्यक्त की है.

महिलाओं को अक्सर अनेक मुद्दों पर, परम्पराओं और सामाजिक स्वीकार्यता के नाम पर ख़ामोश रहने और उन्हें शर्मिन्दा किए जाने की कोशिशें होती हैं.
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विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि महिलाओं को अपनी बात रखने से रोकने के लिए उन्हें "नात्ज़ी," "जनसंहारी," या "चरमपंथी" जैसे नाम देकर, डराने-धमकाने की कोशिशें की जाती हैं.

“ये चलन बेहद चिन्ताजनक हैं क्योंकि इनके ज़रिए भय व शर्मिन्दा करने के हथकंडे अपनाकर, उन्हें ख़ामोश करने और उनके ख़िलाफ़ हिंसा व नफ़रत भड़काने की कोशिशें की जाती हैं. इन गतिविधियों से समाज में महिलाओं और लड़कियों की सार्थक व गरिमामय भागेदारी पर बुरा असर पड़ता है.”

विशेष रैपोर्टेयर का कहना है कि नफ़रत भरी भाषा (Hate speech) को, अनेक आधारों पर अवैध ठहराने वाले प्रावधानों को, जिस तरह कुछ देश मनमाने तरीक़े से लागू करते हैं, उस पर भी वो बहुत चिन्तित हैं. इन आधारों में  लैंगिक अभिव्यक्ति और लैंगिक पहचान भी शामिल हैं.

महिलाओं और लड़कियों को धमकी या हिंसा के डर के बिना, किसी भी विषय पर चर्चा करने का आधिकार हासिल है. इनमें ऐसे मुद्दे शामिल हैं जो उनके लिए बहुत अहम हैं, ख़ासतौर पर अगर वो उनकी प्राकृतिक पहचान से सम्बन्धित हैं, और जिन पर भेदभाव स्पष्ट रूप से निषिद्ध है.

समाज में लिंग और लैंगिक पहचान के आधार पर अधिकारों के दायरे पर विचार रखने व व्यक्त करने को, अमान्य या महत्वहीन मानकर ख़ारिज नहीं किया जाना चाहिए.

मानवाधिकार मानक

प्रैस विज्ञप्ति में कहा गया है कि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के अनुसार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी भी प्रतिबन्ध को वैधता, आवश्यकता, आनुपातिकता और एक न्यायसंगत उद्देश्य की पूर्ति के मानवाधिकार मानकों पर तोलकर ही लागू किया जाना चाहिए.

“साथ ही महिलाओं एवं लड़कियों की लैंगिक पहचान और लैंगिक रुझान के विचारों से असहमत लोगों को भी अपनी बात रखने का अधिकार है. हालाँकि, ऐसा करने में उन्हें उन लोगों की सुरक्षा और समग्रता को ख़तरे में नहीं डालना चाहिए, जिनका वो विरोध कर रहे हैं या उनसे असहमत हैं.”

विशेष रैपोर्टेयर का कहना है कि लैंगिक पहचान एवं लिंग आधारित अधिकारों के दायरे के बारे में सवाल उठाने पर व्यापक प्रतिबन्ध लगाया जाना, आस्था एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल सिद्धान्तों का उल्लंघन है और ऐसा करना, अन्यायपूर्ण व अनुचित सैंसरशिप का रूप माना जा सकता है.

विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि महिलाओं के ख़िलाफ़ बदले की कार्रवाई विशेष रूप से चिन्ताजनक हैं. इनमें सैंसरशिप, क़ानूनी उत्पीड़न, बेरोज़गारी, आय की हानि, सोशल मीडिया व ऑनलाइन मंचों से निष्कासन, और शोध निष्कर्ष व लेख प्रकाशित करने से इनकार करना शामिल है.

“इसके अतिरिक्त, कुछ मामलों में, महिला राजनेताओं को उनके राजनैतिक दलों के विरोध का सामना भी करना पड़ता है, जिसमें उन्हें पार्टी से निकाले जाने की धमकी मिलना या असल में निष्कासित किया जाना भी शामिल हैं.”