आपदा जोखिम न्यूनीकरण की दिशा में, कमज़ोर व अपर्याप्त प्रगति
संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने गुरूवार को महासभा में कहा है कि आपदा जोखिम न्यूनीकरण की दिशा में वैश्विक प्रगति कमज़ोर और अपर्याप्त रही है, जिसने 2030 के टिकाऊ विकास लक्ष्यों (SDGs) प्राप्ति के लिए ख़तरा उत्पन्न कर दिया है.
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ़्रेमवर्क की समीक्षा करने के लिए, गुरूवार को देशों की बैठक हुई. ये समझौता प्राकृतिक और मानव-जनित आपदाओं से विध्वंस, हानि, और मौतों में इस दशक के अन्त तक कमी लाने के लिए, वर्ष 2015 में हुआ था.
इस बैठक में सदस्य देशों ने एक राजनैतिक घोषणा-पत्र भी अपनाया जिसमें आपदा जोखिम डेटा और विश्लेषण साझा करने की राष्ट्रीय प्रणालियों को बेहतर किए जाने की पुकारें भी शामिल हैं. इनमें क्षेत्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर की प्रणालियाँ भी शामिल हैं.
रुख़ बदलने की ज़रूरत
यूएन महासभा के अध्यक्ष कसाबा कोरोसी की नज़र में, ये मध्यावधि समीक्षा, 2030 से पहले हमारा रुख़ और कार्रवाई बदलने का अन्तिम अवसर है. उन्होंने कार्रवाई की तात्कालिक ज़रूरत को भी रेखांकित किया.
कसाबा कोरोसी ने कहा, “आठ वर्ष बीत चुके हैं, हमें ये स्वीकार करना होगा कि हमारी प्रगति की रफ़्तार, हमारे दौर की तात्कालिकता के अनुसार नहीं रही है. वर्ष 2015 के बाद से आपदाओं से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या 80 गुना बढ़ गई है.”
एक अहम पड़ाव
यूएन उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने इस बैठक में कहा कि जोखिम का प्रबन्धन कोई विकल्प नहीं, बल्कि एक वैश्विक प्रतिबद्धता है.
आमिना जे मोहम्मद ने कहा, “हमारी दुनिया, इतिहास के एक बेहद अहम पड़ाव पर है. अब जबकि हम 2030 के अपने लक्ष्य की मध्यावधि समीक्षा कर रहे हैं, तो हमें ये स्वीकार करना होगा कि प्रगति कमज़ोर व अपर्याप्त रही है.”
विषम प्रगति
संयुक्त राष्ट्र के आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) की मुखिया मामी मिज़ूतोरी ने ध्यान दिलाया कि वर्ष 2015 के बाद से, ऐसा नहीं है कि सबकुछ निराशाजनक ही रहा हो.
उदाहरण के लिए, देशों की लगातार बढ़ती संख्या ने या तो राष्ट्रीय हानि लेखा-जोखा प्रणालियाँ स्थापित की हैं या उनका नवीनीकरण किया है.
साथ ही, ऐसे देशों की संख्या में भी ख़ासी बढ़ोत्तरी हुई है जिन्होंने आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए राष्ट्रीय रणनीतियाँ अपनाई हैं.
उन्होंने कहा कि अलबत्ता, ये प्रगति विषम रही है. उससे भी ज़्यादा आपदाओं में तब्दील होने वाले जोखिम, दुनिया के कम विकसित देशों, लघु द्वीपीय विकासशील देशों, भूमिबद्ध विकासशील व अफ़्रीकी देशों के साथ-साथ, मध्यम आय वाले देशों को अनुपात से ज़्यादा प्रभावित करना जारी रखे हुए हैं.