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वैश्विक संकटों के बीच, आर्थिक प्रगति लम्बे समय तक धीमी रहने का जोखिम

नामीबिया की एक यूरेनियम खदान में, एक विशाल ट्रक के पहिये की मरम्मत करता एक कर्मचारी.
World Bank/John Hogg
नामीबिया की एक यूरेनियम खदान में, एक विशाल ट्रक के पहिये की मरम्मत करता एक कर्मचारी.

वैश्विक संकटों के बीच, आर्थिक प्रगति लम्बे समय तक धीमी रहने का जोखिम

आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (UNDESA) का एक नया आकलन दर्शाता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मज़बूत सुधार की सम्भावनाएँ फ़िलहाल क्षीण हैं, जिसकी वजह मुद्रास्फीति, ब्याज़ दरों में वृद्धि और गहराती अनिश्चितता बताई गई है. मंगलवार को जारी इस रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि वित्त पोषण में आवश्यकता और उपलब्धता की खाई बढ़ने, निवेश के कमज़ोर होने और क़र्ज़ के बढ़ते बोझ के कारण, टिकाऊ विकास पर प्रगति पटरी से उतर सकती है.

अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 महामारी के प्रभावों, जलवायु परिवर्तन और अर्थव्यवस्था में ढांचागत चुनौतियों के बरक़रार रहने के कारण, दुनिया के समक्ष लम्बी अवधि तक कमज़ोर आर्थिक प्रगति का जोखिम है.

मध्य-2023, विश्व आर्थिक स्थिति एवं सम्भावना नामक इस आकलन को मंगलवार को जारी किया गया है.

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रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में विश्व अर्थव्यवस्था में 2.3 प्रतिशत की वृद्धि की सम्भावना है, जोकि पहले इस साल जनवरी में व्यक्त किए अनुमान से 0.4 फ़ीसदी अधिक है. वहीं, 2024 में आर्थिक वृद्धि की दर 2.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है.

इसके बावजूद, वैश्विक परिदृश्य उतना उत्साहजनक नहीं है. आर्थिक वृद्धि की रफ़्तार में अनुमान, वैश्विक महामारी से पहले के दो दशकों में 3.1 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर से कहीं कम है.

आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के लिए यूएन अवर महासचिव ली जुनहुआ ने बताया कि मौजूदा वैश्विक आर्थिक परिदृश्य, टिकाऊ विकास लक्ष्यों को साकार करने के मार्ग में एक तात्कालिक चुनौती है.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वैश्विक समुदाय को वित्त पोषण की क़िल्लत की समस्या से तत्काल निपटना होगा, जिसका सामना अनेक विकासशील देशों को करना पड़ रहा है.

साथ ही, टिकाऊ विकास में महत्वपूर्ण निवेश के लिए क्षमताओं को मज़बूती प्रदान की जानी होगी और समावेशी व दीर्घकालिक प्रगति के लिए अर्थव्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन किया जाना आवश्यक है.

विकासशील देशों के लिए चुनौती

अनेक विकासशील देशों में आर्थिक प्रगति की सम्भावनाएँ बद से बदतर हुई हैं, जिसकी मुख्य वजह बाहरी वित्त पोषण की क़ीमतों का बढ़ना और उधार के लिए शर्तों में सख़्ती आना है.

अफ़्रीका और लातिन अमेरिका व कैरीबियाई देशों में, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में इस वर्ष मामूली वृद्धि होने की सम्भावना है, जोकि आर्थिक प्रदर्शन में आई सुस्ती के दीर्घकालिक रुझान को दर्शाता है.

वहीं, सबसे कम विकसित देशों के वर्ष 2023 में 4.1 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ने का अनुमान है और अगले साल यह दर बढ़कर 5.2 प्रतिशत पर पहुँच जाएगी.

मगर, टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा में आर्थिक वृद्धि के लिए स्थापित लक्ष्य, 7 प्रतिशत, से यह बहुत कम है.

व्यापार और मुद्रास्फीति

इस बीच, भूराजनैतिक तनावों, वैश्विक मांग में कमज़ोरी और सख़्त मौद्रिक व राजकोषीय नीतियों के कारण वैश्विक व्यापार पर बोझ बरक़रार है.

सामान एवं सेवाओं में वैश्विक व्यापार के आकार में इस साल 2.3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की सम्भावना है, जोकि वैश्विक महामारी से पूर्व के रुझान से बहुत कम है. अनेक देशों में महंगाई ऊँचे स्तर पर है, जबकि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य वस्तुओं व ईंधन की क़ीमतों में गिरावट दर्ज की जा चुकी है.

औसत वैश्विक मुद्रास्फीति, वर्ष 2023 में 5.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है और यह 2022 के 7.5 प्रतिशत से कम है, जोकि दो दशकों में सबसे ऊँचा स्तर था.

अनेक देशों में क़ीमतों में आए उछाल में धीरे-धीरे गिरावट आने की सम्भावना है, मगर फिर यह केन्द्रीय बैंकों के लक्ष्य से ऊपर रहने का ही अनुमान जताया गया है.

अमेरिका, योरोपीय संघ की विकसित अर्थव्यवस्थाओं के श्रम बाज़ारों में मज़बूती दर्ज की गई है.
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अमेरिका, योरोपीय संघ की विकसित अर्थव्यवस्थाओं के श्रम बाज़ारों में मज़बूती दर्ज की गई है.

श्रम बाज़ारों में मज़बूती

अमेरिका, योरोप और अन्य विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं के श्रम बाज़ारों में मज़बूती नज़र आई है, जिससे घर-परिवारों के व्यय में वृद्धि बरक़रार है.

अमेरिका में, घर-परिवारों द्वारा किए जाने ख़र्च की वजह से, इस साल देश की आर्थिक वृद्धि के पूर्वानुमान को बढ़ाकर 1.1 प्रतिशत किया गया है. योरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था के अब 0.9 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ने की सम्भावना है, जिसकी वजह गैस क़ीमतों में आई गिरावट और उपभोक्ता व्यय है.

चीन में कोविड-19 सम्बन्धी पाबन्दियों को वापिस लिए जाने के बाद आर्थिक प्रगति की दर 5.3 प्रतिशत रहने की सम्भावना जताई गई है.

बड़े पैमाने पर श्रमिकों की क़िल्लत और बेरोज़गारी दर के कम होने की वजह से, आय में भी सुधार दर्ज किया गया है.

अनेक विकसित अर्थव्यवस्थाओं में रोज़गार दर रिकॉर्ड स्तर पर है और महामारी के बाद से अब तक लैंगिक खाई को पाटने में भी सफलता मिली है. लेकिन, श्रम बाज़ारों में आई मज़बूती के कारण केन्द्रीय बैन्कों के लिए मुद्रास्फीति पर लगाम कसना मुश्किल साबित हुआ है.