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सूडान आपबीती: ‘कारें देकर और संयम बरतकर अपनी जान बचाई'

रघुवीर बताते हैं कि पोर्ट सूडान पहुँचकर जब उन्होंने वहाँ भारतीय सेना को देखा, तो उनकी जान में जान आई. उन्हें लगा अब जान बच जाएगी.
Raghuveer Sharma
रघुवीर बताते हैं कि पोर्ट सूडान पहुँचकर जब उन्होंने वहाँ भारतीय सेना को देखा, तो उनकी जान में जान आई. उन्हें लगा अब जान बच जाएगी.

सूडान आपबीती: ‘कारें देकर और संयम बरतकर अपनी जान बचाई'

शान्ति और सुरक्षा

सूडान में शीर्ष सैन्य नेतृत्व के बीच जारी घातक सत्ता संघर्ष से देश में गम्भीर स्थिति बनी हुई है. ऐसे में बहुत से देशों ने सूडान से अपने नागरिकों को बाहर निकालने के अभियान चलाए हैं, जिनमें भारत का कावेरी अभियान भी शामिल है. इस अभियान के तहत साढ़े तीन हज़ार से ज़्यादा भारतीय नागरिकों को सूडान से सुरक्षित बाहर निकालकर, भारत वापिस पहुँचाया गया है. इन्हीं भारतीय नागरिकों में से एक हैं - राजस्थान के रघुवीर शर्मा, जिन्होंने यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत में, सूडान के भयावह हालात का आँखों देखा हाल सुनाया...

इस बीच यूएन शरणार्थी एजेंसी UNHCR और अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) भी आपदा राहत मुहैया कराने में सक्रिय हैं. यूएन एजेंसियाँ शरणार्थियों और सूडान में रहने वाले और वहाँ से निकलने के लिए तत्पर अन्य देशों के नागरिकों के बारे में, विस्थापन की निगरानी करने वाले आँकड़े भी मुहैया करा रहे हैं. बहुत से लोग पनाह के लिए चाड, इथियोपिया और मिस्र जैसे पड़ोसी देशों में भी पहुँचे हैं.

भारत के पश्चिमी प्रदेश राजस्थान में नागौर ज़िले के डिडवाना गाँव के रहने वाले रघुवीर शर्मा, दो साल पहले, अपने भाई के साथ सूडान पहुँचे थे. रघुवीर शर्मा, राजधानी ख़ारतूम के ओमेगा स्टील संयंत्र में बतौर उत्पादन प्रभारी काम कर रहे थे.

सूडान की राष्ट्रीय सेना और एक अर्द्धसैनिक बल त्वरित समर्थन बल (RSF) के बीच गत 15 अप्रैल से लड़ाई भड़की हुई है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इस लड़ाई के कारण अभी तक 400 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि अनुमानतः लाखों अन्य लोग देश के भीतर ही विस्थापित हुए हैं. हज़ारों अन्य लोग पड़ोसी देशों पनाह लेने के लिए भी पहुँचे हैं.

उन्होंने बताया, “हम पर्यावरण को स्वच्छ करने का काम करते हैं, धातु कतरन की री-सायकलिंग करते हैं. लगभग 2 साल हो गए थे मुझे वहाँ गए हुए, और हम ख़ुश थे कि अचानक 15 अप्रैल को वहाँ सिविल युद्ध भड़क गया. सेना और अर्द्धसैनिक बल आपस में लड़ पड़े और वहाँ के हवाई अड्डे पर गोलाबारी करके, उसे जला दिया गया.”

उस वक़्त रघुवीर और उनकी कम्पनी में काम करने वाले 160 कर्मचारी, कम्पनी के अन्दर स्थित एक गैस्ट हाउस में थे.

वो बताते हैं कि जब हवाई अड्डे को तहस नहस कर दिया गया, तो वो चिन्तित हो गए कि अब भारत कैसे पहुँचेंगे. भारत में उनका सम्पर्क भी नहीं हो पा रहा था, वो लोग दूतावास से भी सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वहाँ इंटरनैट नेटवर्क ठप हो गया था.

फिर सिलसिला शुरू हुआ, शहर में गोलीबारी का, “जहाँ हम रह रहे थे, उस गेस्ट हाउस के ऊपर से, लड़ाकू विमान उड़कर आते थे, और गोला बारूद, मिसाइलें वगैरह सब कुछ वहाँ पर गिरा रहे थे.”

“हम 160 लोग थे वहाँ. हम बहुत घबरा गए कि किस तरह सूडान के किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचा जाए, क्योंकि हमारी कम्पनी ख़ारतूम से 15 किलोमीटर दूर स्थित थी.”

लूटपाट व डर का आलम

इससे पहले कि वो निकलने का कुछ तरीक़ा सोच पाते, 17 तारीख़ को उनके गेस्ट हाउस में कुछ लड़ाके गोलीबारी करते हुए घुस आए.

“हम सभी डरकर कमरा बन्द करके बैठ गए थे, वो अन्धाधुन्ध गोलीबारी करते हुए सभी जगह तोड़-फोड़ कर रहे थे.”

“वो कुछ बोल रहे थे, लेकिन ना तो उन्हें अंग्रेज़ी आती थी, न अरबी. वो अपनी स्थानीय भाषा में बात कर रहे थे और हमें उनकी बात समझ नहीं आ रहा थी.”

“फिर उन्होंने हमारे एक साथी को बन्धक बना लिया. वो चिल्लाने लगा कि मुझे बचाओ.”

हम हिम्मत जुटाकर अपने साथी को छुड़ाने के लिए गए, और जो भी चीज़ें हमारे पास थीं, मोबाइल, लैपटॉप, उन्हें दीं और गाड़ियों की चाभी देकर उन्हें वहाँ से रवाना किया.”

दूतावास की भेजी बस से पोर्ट सूडान पहुँचे भारतीय.
Raghuveer Sharma

'कारों के बदले में जीवन का सौदा'

अब वो समझ चुके थे कि उनसे किस तरह बचना है. वो बताते हैं, “फिर हमने एक योजना बनाई कि जैसे ही ये लोग गेस्ट हाउस के अन्दर घुसें, तो उनको अन्दर नहीं आने दें. जब तक हमारे पास गाड़ी, मोबाइल वगैरह है तब तक जान सलामत रहेगी. तो उन्हें जो ले जाना है, वो ले जाने दें, बस हमें हमारा राशन चाहिए. सबसे पहले हमें वो राशन छुपाकर रखना होगा.”

“वो फिर वापस आते - घंटे-घंटे भर में वापस आते रहते, और यहाँ से कुछ ना कुछ लूट कर ले जाते थे. वो आते और हम उन्हें कार दे देते थे और वो गाड़ी लेकर चले जाते थे. हमारे पास 10-15 कारें थीं.”

7 दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा. वो रोज़ गोलीबारी करते हुए आते, तो अब हम सभी गेस्ट हाउस के बाहर आ जाते थे. उन 10 दिनों में न तो हम ठीक से सो पाए, न खा-पी सके. वो आते तो हम बाहर जाकर उन्हें जो भी चाहिए होता था, दे देते. हम संयम रखकर, अपने व साथियों का जीवन बचा सके.”

बाल सैनिक!

कभी डर, कभी विस्मय से भरे रघुवीर ने बताया, “अजब बात यह थी कि वो हथियारबन्द लड़ाके, 10 - 15 साल के बच्चे नज़र आते थे. 10-15 साल के बच्चों को आप हथियार दे रहे हो, उन्हें तो पता भी नहीं कि गोली कब और किस तरह चलानी होती है. जिस बच्चे के हाथ में कलम होनी चाहिए, किताब होनी चाहिए, उसके हाथ में बन्दूक थमा दी. तो वो बच्चा क्या समझ पाएगा कि कहाँ फायरिंग करनी है, कहाँ नहीं.”

कुछ समय पहले सूडान में नील नदी के ऊपर पुल पर अपने भाई के साथ रघुवीर शर्मा. उनका कहना है कि यह पुल अब तहस-नहस हो चुका है.

रघुवीर और उनके भाई जहाँ सूडान में फँसे थे, वहीं राजस्थान में उनके माता-पिता व भाभी पर मानो क़हर टूट पड़ा था.

रघुवीर बताते हैं, “उस समय परिवार से ठीक तरह से कोई सम्पर्क नहीं हो पा रहा था. हमारे पास से कम से कम 150 फ़ोन तो लूट लिए गए थे, 10-12 फ़ोन हमने छुपाकर रखे थे. उन्हीं के ज़रिए हम सम्पर्क साधने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन नैटवर्क की बहुत अधिक परेशानी थी, मुश्किल से ही सम्पर्क हो पाता था.”

फिर दूतावास में सम्पर्क स्थापित होने पर, सभी को सुरक्षित निकालने का अभियान शुरू हुआ.

“23 अप्रैल को भारतीय दूुतावास की बस हमारी कम्पनी में आई और हमें वहाँ से उड़ान के लिए रवाना किया. हम 161 जन वहाँ से पोर्ट सूडान के लिए निकले और 1000 किलोमीटर का सफ़र तय करके वहाँ पहुँचे. पोर्ट सूडान पहुँचने पर, जब हमने भारतीय सेना को देखा तो हमें कुछ हिम्मत मिली, लगा कि अब जान बच जाएगी.”

भारी राहत

रघुबीर शर्मा कहते हैं, “हम तो सूडान के लिए केवल प्रार्थना ही कर सकते हैं कि जल्द वहाँ सब ठीक हो जाए. अगर संयुक्त राष्ट्र कुछ कार्रवाई कर सके तो बहुत अच्छा होगा, विशेष रूप में बच्चों की ख़ातिर, जिन्हें घातक हथियार थमाकर उनका शोषण किया जा रहा है."

रघुबीर अपने अच्छे दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “लोग अच्छे हैं, प्यार भी करते हैं, मदद भी करते हैं. भारतीय लोगों का बहुत सम्मान है वहाँ. बॉलीवुड के दीवाने हैं लोग. भारतीय गाने सुनते हैं, अमिताभ बच्चन, शाहरुख ख़ान, सलमान ख़ान सभी को पहचानते हैं.”

रघुवीर शर्मा ने सूडान में जल्द ही सबकुछ सामान्य हो जाने की उम्मीद भी जताई.

 

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