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इसराइल: भूख हड़ताल कर रहे फ़लस्तीनी क़ैदी की मौत की जवाबदेही की मांग

फ़लस्तीनी क्षेत्र - पश्चिमी तट में रामल्लाह के निकट एक इसराइली अवरोधक दीवार के निकट से गुज़रते हुए कुछ महिलाएँ.
IRIN/Shabtai Gold
फ़लस्तीनी क्षेत्र - पश्चिमी तट में रामल्लाह के निकट एक इसराइली अवरोधक दीवार के निकट से गुज़रते हुए कुछ महिलाएँ.

इसराइल: भूख हड़ताल कर रहे फ़लस्तीनी क़ैदी की मौत की जवाबदेही की मांग

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के दो स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बुधवार को कहा है कि इसराइल की एक जेल में भूख हड़ताल करने वाले फ़लस्तीनी क़ैदी ख़ादेर अदनान की मौत के मामले में, इसराइल सरकार की तरफ़ से जवाबदेही निर्धारित किया जाना ज़रूरी है.

इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, फ़लस्तीनी लोगों की बड़े पैमाने पर, मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तारियों को, “क्रूर” और “अमानवीय” भी बताया है.

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45 वर्षीय फ़लस्तीनी क़ैदी ख़ादेर अदनान की गत मंगलवार सुबह, लगभग तीन महीने की भूख हड़ताल के बाद मौत हो गई थी.

ख़ादेर अदनान, इसराइल द्वारा फ़लस्तीनी लोगों को बहुत ही “ख़ौफ़नाक हालात” में और निष्पक्ष मुक़दमा चलाने की गारंटी का हनन करते हुए, मनमाने तरीक़े से बन्दी बनाने की नीति का विरोध कर रहे थे.

वृहद जवाबदेही की ये पुकार फ़लस्तीनी क्षेत्रों में मानवाधिकारों की स्थिति पर स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ या विशेष रैपोर्टेयर फ़्रांसेस्का अलबनीज़ और स्वास्थ्य के अधिकार पर विशेष रैपोर्टेयर त्लालेंग मोफ़ोकेंग की तरफ़ से आई है.

भूख हड़तालों का लम्बा इतिहास

ख़ादेर अदनान ने 5 फ़रवरी को आतंकवाद से सम्बन्धित आरोपों में गिरफ़्तार किए जाने के बाद से ही, विरोध स्वरूप अपनी भूख हड़ताल शुरू कर दी थी.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि इसराइल अधिकारियों ने, ख़ादिर अदनान के स्वास्थ्य में गम्भीर गिरावट के बावजूद, उन्हें रिहा करने या, अस्पताल भेजने से इनकार कर दिया, और उन्हें जेल की अस्पताल सुविधा में ही क़ैद रखा, और वहाँ उन्हें कथित रूप से समुचित स्वास्थ्य देखभाल मुहैया नहीं कराई गई.

मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया कि ख़ादिर अदनान को अतीत में, कम से कम 12 बार गिरफ़्तार किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने लगभग 8 वर्ष जेल में गुज़ारे, जिनमें से ज़्यादातर अवधि प्रशासनिक बन्दीकरण था. अदनान इससे पहले भी पाँच बार भूख हड़ताल कर चुके थे.

त्रासद साक्ष्य

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है, “ख़ादिर अदनान की मौत, इसराइल की क्रूर और अमानवीय बन्दीकरण नीति और गतिविधियों का त्रासद साक्ष्य है. ये घटना साथ ही, इसराइल को फ़लस्तीनी क़ैदियों के ख़िलाफ़ की जाने वाली अवैध कार्रवाइयों के मामलों में, जवाबदेह ठहराने में, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की नाकामी को भी दर्शाती है.”

बिना मुक़दमे के ही सैकड़ों बन्दी

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि इसराइल ने इस समय लगभग 4 हज़ार 900 फ़लस्तीनियों को अपनी जेलों में बन्दी बनाकर रखा है, जिनमें एक हज़ार से प्रशासनिक बन्दी हैं, जिन्हें गुप्त जानकारी के आधार पर, मुक़दमा चलाए बिना ही, अनिश्चितकाल के लिए बन्दी बनाकर रखा गया है.

इसराइली जेलों में फ़लस्तीनी बन्दियों की ये संख्या, वर्ष 2008 के बाद से सबसे ज़्यादा है, जबकि अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन व संस्थाएँ, इसराइल से इस चलन को तत्काल बन्द करने की बार-बार सिफ़ारिशें करती रही हैं और पुकार लगाती रही हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय OHCHR ने एक प्रैस विज्ञप्ति में कहा है कि फ़लस्तीनी क़ैदी, इसराइल की बन्दीकरण गतिविधियों और चलन की क्रूरता के विरोध में, भूख हड़तालों का रास्ता अपनाते रहे हैं.

औपनिवेशिक क़ब्ज़ा

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा है कि इसराइल की जेल नीतियों को, “इसके क़ब्ज़े की औपनिवेशिक प्रकृति से अलग नहीं किया जा सकता, जिनका मक़सद तमाम क्षेत्र में फ़लस्तीनियों को अपने क़ब्ज़े में लेना है, जिस पर इसराइल अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता है.”

उन्होंने कहा कि प्रशासनिक बन्दीकरण का व्यवस्थागत चलन, संरक्षित लोगों को निष्पक्ष और नियमित मुक़दमे के अधिकार से इरादतन वंचित करने के युद्धापराध की श्रेणी में गिना जा सकता है.

उन्होंने कहा कि ये बहुत ज़रूरी और तात्कालिक है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय, इसराइल को उसके क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी इलाक़ों में, उसकी अवैध गतिविधियों और कार्रवाइयों के लिए, जवाबदेह ठहराए, और युद्धापराधों को सामान्य बनाने के चलन को रोका जाए.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने निष्कर्षतः कहा, “क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों में, न्याय में मामूली सी भी प्रगति देखने से पहले, अभी और कितनी ज़िन्दगियाँ गँवानी होंगी.”

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की नियुक्ति जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद, विशेष प्रक्रिया के तहत करती है.

ये मानवाधिकार विशेषज्ञ किन्हीं विशेष मानवाधिकार स्थितियों या किसी देश की स्थितियों की निगरानी करते हैं और रिपोर्ट सौंपते हैं. ये मानवाधिकार विशेषज्ञ यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं और ना ही उन्हें उनके कामकाज के लिए, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.