'प्रकृति के रखवाले', आदिवासी लोगों के पारम्परिक ज्ञान से सीखने की पुकार
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने 'आदिवासी मुद्दों पर यूएन के स्थाई फ़ोरम' के 2023 सत्र के दौरान, सोमवार को अपने सम्बोधन में, प्रकृति की रक्षा करने और जैवविविधता संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए, आदिवासी समुदायों की सराहना की है. मगर, उन्होंने चिन्ता जताई है कि आदिवासी लोगो के मानवाधिकारों को नकारा जा रहा है.
यूएन प्रमुख ने कहा कि आदिवासी लोगों के पास, जलवायु संकट से निपटने के लिए अनेक समाधान हैं, और वे, ऐमेज़ोन जंगलों से लेकर सहेल और हिमालय क्षेत्र तक विश्व जैवविविधता के रक्षक हैं.
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उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के अनुरूप ढलने में आदिवासी लोगों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, और संसाधनों से परिपूर्ण उनके क्षेत्रों का दोहन किया जा रहा है.
आदिवासी समुदायों को उनके पूर्वजों की भूमि से बेदख़ल किया जा रहा है और उन पर हमले भी हो रहे हैं.
यूएन महासचिव ने वर्ष 2007 में पारित, आदिवासी लोगों के अधिकारों पर घोषणापत्र का उल्लेख किया, जिसके बाद संगठन के कामकाज में आदिवासी लोगों की वृहद भागेदारी का मार्ग प्रशस्त हुआ. इनमें जैवविविधता संरक्षण पर सन्धि और जलवायु परिवर्तन यूएन फ़्रेमवर्क सन्धि शामिल है.
महासचिव गुटेरेश ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र, सभी स्तरों पर नीतियों व कार्यक्रमों में आदिवासी लोगों के अधिकारों और उनकी आवाज़ों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है.
“आइए, हम आदिवासी लोगों के अनुभवों को अपनाएँ और उनसे सीखें.”
कोलम्बिया में ज़ेनु समुदाय के एक आदिवासी सदस्य और यूएन स्थाई फ़ोरम के प्रमुख डारियो मेजिया मोन्ताल्वो ने बताया कि आदिवासी लोगों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
उन्होंने उदघाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि “हमसे पहले जो इस रास्ते पर आए थे, उनकी शक्ति के फलस्वरूप, उन्हें संयुक्त राष्ट्र के दरवाज़े खोलने में सफलता मिली.”
“मैं आदिवासी लोगों के उन नेताओं व उनके साथियों को श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूँ, जिन्होंने अपने लोगों व क्षेत्रों की रक्षा करते हुए अपनी जान गँवा दी. यह फ़ोरम उनका है.”
डारियो मेजिया मोन्ताल्वो ने इस फ़ोरम को विश्व में सांस्कृतिक व राजनैतिक विविधता का विशालतम समागम बताते हुए कहा कि आदिवासी लोग, जलवायु संकट के समाधान प्रदान करने और अपने अनुभव बाँटने के लिए तैयार हैं.
भागीदारी पर बल
उन्होंने कहा कि “जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता के मुद्दों का आदिवासी लोगों की वास्तविक व कारगर भागेदारी के बिना निपटारा नहीं किया जा सकता है.”
“तात्कालिक जलवायु कार्रवाई के लिए आदिवासी भाइयों व बहनों का उत्पीड़न, उन्हें मार दिए जाने व उनके आपराधिकरण को रोकना होगा.”
यूएन महासभा के 77वें सत्र के लिए अध्यक्ष कसाबा कोरोसी ने कहा कि पृथ्वी और आमजन का स्वास्थ्य बुनियादी रूप से जुड़े हुए हैं और आदिवासी लोगों से यह सीखने में लम्बा समय लग रहा है, दुनिया जिसकी एक बड़ी क़ीमत चुका रही है.
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को उन कारकों को समझना होगा, जिनसे आदिवासी लोगों का स्वास्थ्य-कल्याण प्रभावित होता है और फिर उनसे समग्र व अधिकार-आधारित तरीक़ों से निपटना होगा.
“आपके लोगों के सदियों से सहेजे गए पैतृक ज्ञान ने, अनेक आधुनिक दवाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है.”
“आपके पास, विश्व की 80 फ़ीसदी जैवविविधता का रखवाला होने के तौर पर, जलवायु जोखिमों के अनुकूलन, शमन और उनमें कमी लाने के लिए पारम्परिक दक्षता है.”
महासभा प्रमुख ने प्रतिनिधियों से शान्ति को बढ़ावा देने, मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने वाले और टिकाऊ विकास को प्रोत्साहित करने वाले समाधानों को मज़बूती देने की पुकार लगाई है.
दुनिया बदल देने की सामर्थ्य
यूएन आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की अध्यक्ष लाचेज़ारा स्टोएवा ने कहा कि इस वर्ष के सत्र में विशेष रूप से मानव स्वास्थ्य और पृथ्वी के स्वास्थ्य के बीच अन्तर्निहित सम्बन्ध को रेखांकित किया गया है.
“जलवायु कार्रवाई और अच्छा स्वास्थ्य व कल्याण, 2030 एजेंडा के दो बुनियादी लक्ष्य हैं.”
“और जैसाकि हम जानते हैं कि एसडीजी गहराई तक आपस में गुँथे हुए हैं. किसी एक लक्ष्य पर प्रगति का अभाव, शेष सभी लक्ष्यों पर प्रगति के रास्ते में बाधा डाल सकता है.”
लाचेज़ारा स्टोएवा ने युवजन फ़ोरम के दौरान आदिवासी युवाओं की भागीदारी के प्रति उत्सुकता जताई, जिनकी आवाज़ों और प्रस्तावों में, उनके अनुसार, दुनिया को अधिक न्यायोचित, हरित और टिकाऊ बनाने की सामर्थ्य है.
आदिवासी मुद्दों पर यूएन की स्थाई फ़ोरम
- यह फ़ोरम, आदिवासी मुद्दों पर आर्थिक एवं सामाजिक परिषद का एक उच्चस्तरीय परामर्शदाता निकाय है. इस मंच को आदिवासी लोगों के आर्थिक व सामाजिक विकास, संस्कृति, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकारों से सम्बन्धित मुद्दों के लिए गठित किया गया था.
- फ़ोरम के शासनादेश (mandate) में छह क्षेत्र आते हैं, जिनमें आर्थिक एवं सामाजिक विकास, संस्कृति, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकार हैं.
- हर सत्र में एक ख़ास विषय पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है.
- यह स्थाई फ़ोरम, यूएन के उन तीन निकायों में है, जिनका दायित्व विशिष्ट रूप से आदिवासी लोगों के अधिकार सम्बन्धी विषयों को देखना है.
- फ़ोरम का 2023 सत्र, न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में 17-28 अप्रैल तक आयोजित होगा.