वैश्विक शिक्षा लक्ष्यों की प्राप्ति में, 97 अरब डॉलर की बाधा
संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर 97 अरब डॉलर की अतिरिक्त धनराशि नहीं उपलब्ध कराई गई तो बहुत से देश, 2030 के राष्ट्रीय शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति में नाकाम हो जाएंगे. रिपोर्ट में वित्त की तत्काल समीक्षा किए जाने का भी आहवान किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की ‘वैश्विक शिक्षा निगरानी’ (GEM) नामक यह रिपोर्ट, विश्व बैंक और अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की हाल में होने वाली बैठकों के लिए तैयार की गई है.
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UNESCO
रिपोर्ट में 2030 के टिकाऊ विकास एजेंडा के लक्ष्य संख्या-4 पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिसका उद्देश्य सर्वजन के लिए, एक समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन भर के शैक्षिक अवसरों को बढ़ावा देना है.
निष्कर्ष दिखाते हैं कि अगर देशों को अपने शैक्षिक लक्ष्य हासिल करने हैं, तो शिक्षा क्षेत्र के लिए अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता होगी.
नई रणनीतियों की ज़रूरत
अतिरिक्त संसाधनों के आवंटन के अलावा, धनराशि की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए भी रणनीतियों की दरकार है.
धन की सबसे बड़ी क़िल्लत सब-सहारा अफ़्रीका क्षेत्र में है, जोकि 70 अरब डॉलर प्रतिवर्ष है. इस क्षेत्र में बहुत लम्बी यात्राएँ करनी पड़ती हैं, जिसके कारण प्राइमरी स्कूल की उम्र के लगभग 20 प्रतिशत बच्चे और ऊपरी सैकंडरी स्कूल आयु के लगभग 60 प्रतिशत बच्चे स्कूलों में नहीं हैं.
रिपोर्ट में पाया गया है कि अगर दानदाता अपने संकल्पों पर अमल करें और निर्धनतम देशों में बुनियादी शिक्षा को प्राथमिकता पर रखें, तो इस धन-क़िल्लत के लगभग एक तिहाई हिस्से की भरपाई हो सकती है.
और अधिक अध्यापकों की ज़रूरत
अन्य महत्वपूर्ण निष्कर्षों में ज़ोर दिया गया है कि लागत में, निम्न-आय वाले देशों में पूर्व-प्राइमरी स्तर पर अध्यापकों की संख्या, वर्ष 2030 तक तीन गुनी करने की आवश्यकता भी शामिल है. ये संख्या निम्न-मध्यम आय वाले देशो में दो गुनी किए जाने की ज़रूरत है.
निम्न-आय वाले देशों में प्राइमरी स्कूल अध्यापकों की संख्या में लगभग 50 प्रतिशत वृद्धि की ज़रूरत है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड – 19 महामारी से उत्पन्न हुई बाधाओं के पूर्ण प्रभाव अभी अज्ञात हैं, लागत में उन विशाल शिक्षा हानियों की भरपाई भी शामिल है, जिन्होंने पहले से ही मौजूद, सैक्षिक संकट को और गहन बना दिया.
बच्चों और किशोरों की केवल आधी संख्या, अब एक ऐसे भविष्य के लिए तैयार है, जिसमें उनकी शिक्षा पूरी होगी और जिसमें पाठन में न्यूनतम कुशलता हासिल होगी.
इस बीच, निम्न और निम्न-मध्य आय वाले दो तिहाई देशों ने, 2020 में कोविड महामारी शुरू होने के बाद के पहले वर्ष में, सार्वजनिक शिक्षा ख़र्च में कटौतियाँ कर दी हैं.