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'अल्पतम विकसित देशों के लिए बहाने नहीं, क्रान्तिकारी समर्थन की दरकार'

यूएन प्रमुख ने क़तर की राजधानी दोहा में रविवार को सबसे कम विकसित देशों पर पाँचवे यूएन सम्मेलन को सम्बोधित किया.
UN Photo/Evan Schneider
यूएन प्रमुख ने क़तर की राजधानी दोहा में रविवार को सबसे कम विकसित देशों पर पाँचवे यूएन सम्मेलन को सम्बोधित किया.

'अल्पतम विकसित देशों के लिए बहाने नहीं, क्रान्तिकारी समर्थन की दरकार'

आर्थिक विकास

क़तर की राजधानी दोहा में विश्व नेता, एक महत्वपूर्ण संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के लिए एकत्र हुए हैं, जिसका उद्देश्य दुनिया के सबसे कम विकसित देशों में टिकाऊ विकास प्रक्रिया में तेज़ी लाना, ज़रूरतमन्दों के लिए अन्तरराष्ट्रीय सहायता सुनिश्चित करना और इन देशों में समृद्धि के लिए निहित सम्भावनाओं को साकार करना है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने रविवार को, दोहा में अल्पतम विकसित देशों पर संयुक्त राष्ट्र के पाँचवे सम्मेलन (LDC5) को सम्बोधित करते हुए क्षोभ प्रकट किया कि स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा, सामाजिक संरक्षा, बुनियादी ढाँचे और रोज़गार सृजन तक, व्यवस्थाओं पर दबाव है, या वे नदारद हैं और हालात बद से बदतर हो रहे हैं.

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LDC5 सम्मेलन क़तर की राजधानी दोहा में 5 से 9 मार्च तक आयोजित हो रहा है.

वैश्विक महामारी कोविड-19 की शुरुआत के तीन वर्ष बाद, अल्पतम विकसित देश, टिकाऊ विकास प्राप्ति के मार्ग में अनेक गम्भीर ढाँचागत अवरोधों से जूझ रहे हैं और आर्थिक व पर्यावरणीय झटकों के प्रति संवेदनशील हैं.

सबसे कम विकसित देशों की श्रेणी में आने वाले 46 देशों में संकट, अनिश्चितता, जलवायु व्यवधान बढ़ रहे हैं और वैश्विक व्यवस्था उनके लिए ‘अन्यायपूर्ण’ है.

महासचिव गुटेरेश ने ज़ोर देकर कहा कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली, सम्पन्न देशों ने अपने हितों को ध्यान में रखकर बनाई थी, जोकि सबसे कम विकसित देशों के लिए न्यायसंगत नहीं है. उन्हें क़र्ज़ लेने पर विकसित देशों की तुलना में 8 गुना अधिक ब्याज़ दरें चुकानी पड़ती हैं.

इस पृष्ठभूमि में, यूएन महासचिव ने LDC देशों के लिए तीन अहम क्षेत्रों में क्रान्तिकारी समर्थन की आवश्यकता को रेखांकित किया है.

तत्काल सहायता पर बल

पहला, सबसे कम विकसित देशों में टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए तत्काल आवश्यक समर्थन मुहैया कराया जाना होगा.

इसके तहत विकासशील देशों के लिए प्रति वर्ष 500 अरब डॉलर की व्यवस्था करने और विकसित देशों द्वारा आधिकारिक विकास सहायता के लिए सकल राष्ट्रीय आय का 0.15 से 0.20 हिस्सा सुनिश्चित करने के लक्ष्य हैं.

इसके समानान्तर, कर चोरी और अवैध वित्तीय लेनदेन की रोकथाम के लिए अन्तरराष्ट्रीय प्रयासों की आवश्यकता होगी.

इस क्रम में, यूएन प्रमुख ने दोहा कार्रवाई कार्यक्रम का उल्लेख किया, जोकि LDC देशों और निजी सैक्टर, नागरिक समाज व सरकार समेत उनके विकास साझीदारों के बीच, नए सिरे से संकल्प लिए जाने और समन्वित प्रयासों के लिए एक ब्लू प्रिंट है.

‘एक नया ब्रैटन वुड्स क्षण’

दूसरा, यूएन के शीर्षतम अधिकारी के अनुसार, एक नए, ब्रैटन वुड्स क्षण के ज़रिये वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में सुधार लाने की आवश्यकता है.

इसके तहत, आपात हालात के दौरान वित्त पोषण का विस्तार करने, क़र्ज़ उपायों में आपदा और वैश्विक महामारी के अनुच्छदों को एकीकृत किए जाने, और बहुपक्षीय विकास बैंकों द्वारा अपने व्यवसायिक मॉडल में बदलाव लाने की दरकार है. 

महासचिव ने कहा कि सहज-बोध के साथ देशों की अर्थव्यवस्थाओं को आंकने के लिए ऐसे नए रास्ते ढूंढे जाने होंगे, जोकि उधार देने के लिए केवल सकल घरेलू उत्पाद जैसे मापंदडों पर केन्द्रित ना हों.

जलवायु समर्थन में बदलाव

यूएन महासचिव ने ध्यान दिलाया कि सबसे कम विकसित देश, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं, जबकि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उनका योगदान बेहद कम है.

इस क्रम में, उन्होंने विकसित देशों से विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई के लिए 100 अरब डॉलर मुहैया कराने के वादे को पूरा करने का आग्रह किया है.

इसके ज़रिए, जलवायु वित्त पोषण, हानि व क्षति कोष, अनुकूलन वित्त पोषण, हरित जलवायु कोष को मज़बूती देने के अलावा, विश्व में हर किसी को समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों के दायरे में लाने का प्रयास किया जाना है.

यूएन प्रमुख ने प्रतिनिधियों को बताया कि जलवायु कार्रवाई को स्फूर्ति प्रदान करने के इरादे से, सितम्बर 2023 में यूएन मुख्यालय में जलवायु महत्वाकांक्षा शिखर बैठक आयोजित की जाएगी.

यह सम्मेलन कथनी के बजाय करनी पर ध्यान केन्द्रित करने और इस संकट से अग्रिम मोर्चे पर जूझ रहे देशों के लिए जलवायु न्याय सुनिश्चित करने पर लक्षित है.

'वादे पूरे करने होंगे'

यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि अधूरे वादों और उन्हें तोड़ने के युग का अब अन्त किया जाना होगा.

“आइए, सबसे कम विकसित देशों की आवश्यकताओं को वहाँ स्थान दें, जहाँ उन्हें देना चाहिए. पहले, हमारी योजनाओं में. पहले हमारी प्राथमिकताओं में. पहले, हमारे निवेशों में.”

वैश्विक महामारी की शुरुआत से अब तक, 46 LDC देशों को महामारी से निपटने और बढ़ते क़र्ज़ जैसी चुनौतियों से जूझना पड़ा है, जिससे उनके विकास को धक्का पहुँचा है.

इन हालात से उबरने के प्रयासों के बावजूद, अल्पतम विकसित देशों में हर तीन में से एक व्यक्ति अत्यधिक निर्धनता में जीवन गुज़ार रहा है.

यूएन महासभा के 77वें सत्र के लिए अध्यक्ष कसाबा कोरोसी ने विश्व नेताओं के नाम अपने सम्बोधन में सचेत किया कि टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति और LDC देशों की अर्थव्यवस्थाओं को संवारने के लिए, दोहा कार्रवाई कार्यक्रम की अहमियत और उसमें तय दायित्वों को समझा जाना अनिवार्य है.

उनके अनुसार विकास साझीदारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सबसे कम विकसित देशों को उनकी निर्बलताओं से उबारने के वादों को पूरा किया जाए.

“यदि हम असल साझेदारियों को मज़बूती दें, और टैक्नॉलॉजी व नवाचार का सँवारे, तो हमारे लक्ष्य 2030 तक हमारी पहुँच में हो सकते हैं.”

क़तर के अमीर शेख़ तमीम इब्न हमाद अल थानी ने दोहा में पाँचवे LDC सम्मेलन को सम्बोधित किया.
UN Photo/Evan Schneider

मेज़बान देश का संकल्प

LDC5 सम्मेलन के आरम्भिक सत्र की अध्यक्षता क़तर के अमीर शेख़ तमीम इब्न हमाद अल थानी ने की, जिन्होंने अपने मुख्य सम्बोधन में दोहा कार्रवाई कार्यक्रम के लिए छह करोड़ डॉलर के योगदान की घोषणा की है.  

खाड़ी देश के नेता ने विश्वव्यापी संकटों से निपटने के लिए अन्तरराष्ट्रीय एकजुटता की आवश्यकता दोहराई है.

“यह धनी और विकसित देशों का एक नैतिक दायित्व है कि सबसे कम विकसित देशों के समक्ष मौजूद चुनौतियों से उन्हें उबारने के लिए हम और अधिक योगदान दें.”

LDC 5 सम्मेलन में ऋण संकट एक अहम मुद्दा है, जिसके मद्देनज़र, क़तर के अमीर ने इस संकट से अल्पतम विकसित देशों पर होने वाले प्रभाव पर ध्यान देने का अनुरोध किया है.

उन्होंने विकास साझेदारों से क़तर के उदाहरण का अनुसरण करने और दोहा कार्रवाई कार्यक्रम को लागू किए जाने में समर्थन प्रदान करने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने सबसे कम विकसित देशों के लोगों के लिए मानव कल्याण और विकास दायित्व क़रार दिया है.

वर्ष 2011 में पिछले यूएन सम्मेलन के मेज़बान देश, तुर्कीये के राष्ट्रपति और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने भी आरम्भिक सत्र को सम्बोधित किया.

अगले कुछ दिनों में, 130 से अधिक विश्व नेता और प्रतिनिधिमंडलों के प्रमुख, जनरल डिबेट के दौरान LDC देशों के समक्ष मौजूदा साझा चुनौतियों के अर्थपूर्ण समाधान, सामूहिक रूप से ढूंढने पर ध्यान केन्द्रित करेंगे.

पाँच दशकों का पड़ाव

रविवार को मुख्य सत्र के तुरन्त बाद, क़तर के राष्ट्रीय सम्मेलन केन्द्र में एक आयोजन हुआ, जिसमें वर्ष 1971 में LDC श्रेणी के सृजन के बाद से अब तक की उपलब्धियों को रेखांकित किया गया.

सबसे कम विकसित देशों को सतत प्रगति व विकास की दिशा में ले जाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1960 से ही प्रयास किए हैं, और इस उद्देश्य से, उन्हें अन्तरराष्ट्रीय समुदाय में सर्वाधिक निर्बल के रूप में वर्गीकृत करके विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया है.

इन देशों के समक्ष मौजूद ढाँचागत समस्याओं की शिनाख़्त करकेग, यूएन ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को यह मज़बूत संकेत दिया है कि इन देशों को विशेष छूट की आवश्यकता होगी.

सबसे कम विकसित, भूमिबद्ध और लघु द्वीपीय विकासशील देशों के लिए यूएन की उच्च प्रतिनिधि रबाब फ़ातिमान ने कहा, “LDC का इतिहास केवल मुश्किलों भरा ही नहीं है. यह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मानव जज़्बे का इतिहास है. विकट हालात में संघर्ष और सफलता.”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि दोहा कार्रवाई कार्यक्रम के ज़रिये, प्रतिकूल परिस्थितियों पर पार पाया जा सकता है, हर एक को समान अवसर प्रदान किए जा सकते हैं, ताकि उनके लिए सफलता पाना सम्भव हो.

LDC5 सम्मेलन की महासचिव ने कहा, “आइए, हम सभी मिलकर इस लम्हे का इस्तेमाल करते हुए यह यात्रा यहाँ दोहा में शुरू करें. सम्भावना से समृद्धि तक की यात्रा.”

सबसे कम विकसित देशों पर पाँचवे यूएन सम्मेलन के दौरान, दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए यूएन कार्यालय, IBSA कोष और भारत-यूएन विकास साझेदारी कोष पर प्रदर्शनी का उदघाटन.
@UNOSSC Dingding Sun

विकास के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग

सम्मेलन के दौरान, अल्पतम विकसित देशों में रूपान्तरकारी विकास के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग पहल की शक्ति पर भी चर्चा हुई. दक्षिण-दक्षिण सहयोग से अर्थ वैश्विक दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित विकासशील देशों में और उनके बीच तकनीकी सहयोग से है.

इसके ज़रिए सदस्य देश, अन्तरराष्ट्रीय संगठन, शिक्षाविद, नागरिक समाज और निजी सैक्टर आपस में मिलकर काम करते हैं और ज्ञान, कौशल व सफल उपक्रमों को साझा करते हैं.

यह सहयोग मुख्य रूप से कृषि विकास, मानवाधिकार, शहरीकरण, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों पर केन्द्रित है. 

इस क्रम में, निर्धनता और भूख पर पार पाने के लिए भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ़्रीका कोष (IBSA Fund) के तहत गाम्बिया और युगांडा के लिए 30 लाख डॉलर की नई परियोजनाओं की घोषणा की गई.

IBSA कोष की स्थापना वर्ष 2004 में की गई थी, जिसके ज़रिए 20 LDC देशों में 22 परियोजनाओं को समर्थन प्रदान किया जाता है.

दक्षिण-दक्षिण सहयोग की निदेशक डीमा अल-ख़ातिब ने यूएन न्यूज़ को बताया कि इस सहयोग के अन्तर्गत जिन परियोजनाओं को आज प्रस्तुत किया गया है, वे उन रूपान्तरकारी बदलावों की परिचायक हैं, जिन्हें यूएन व्यवस्था के भीतर, विकासशील देशों द्वारा एक साथ मिलकर काम करने से हासिल किया जा सकता है.

“हम दक्षिण-दक्षिण सहयोग में निहित सम्भावनाओं और LDC देशों के लिए हालात बदल देने की उनकी क्षमता में विश्वास करते हैं.”