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बांग्लादेश: पत्रकारों के न्यायिक उत्पीड़न पर रोक का आग्रह

यूनेस्को, पत्रकारों और पत्रकारिता से सम्बन्धित काम करने वाले कर्मियों की सुरक्षा को सक्रियता के साथ बढ़ावा देता है.
Unsplash/Engin Akyurt
यूनेस्को, पत्रकारों और पत्रकारिता से सम्बन्धित काम करने वाले कर्मियों की सुरक्षा को सक्रियता के साथ बढ़ावा देता है.

बांग्लादेश: पत्रकारों के न्यायिक उत्पीड़न पर रोक का आग्रह

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बांग्लादेश सरकार से, खोजी पत्रकार रोज़ीना इस्लाम पर लगाए गए आरोपों को वापिस लेने और पत्रकारों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के विरुद्ध लम्बी अदालती कार्रवाई के ज़रिए, उनका उत्पीड़न किए जाने पर रोक लगाने का आग्रह किया है.

यूएन विशेषज्ञों ने बुधवार को जारी अपने एक वक्तव्य में कहा है कि रोज़ीना इस्लाम के विरुद्ध आपराधिक आरोपों और जाँच का इतने समय तक जारी रहना, बेहद चिन्ताजनक है और ये सीधे तौर पर उनकी खोजी पत्रकारिता की प्रतिक्रिया स्वरूप प्रतीत होता है.

रोज़ीना इस्लाम, बांग्लादेश के सबसे बड़े दैनिक समाचार पत्र, प्रोथोम एलो में एक पत्रकार के तौर पर कार्यरत थीं.

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रोज़ीना इस्लाम ने वर्ष 2021 में,  कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य क्षेत्र में तथाकथित भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन पर रिपोर्टिंग की और आपात चिकित्सा सामग्री की ख़रीद के दौरान बरती गई तथाकथित अनियमितताओं को उजागर किया.

रोज़ीना इस्लाम, 17 मई 2021 को देश के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाक़ात करने के लिए गई थीं.

लेकिन, उन्हें वहाँ कोविड-19 वैक्सीन की ख़रीदारी के विषय में अपने फ़ोन से बिना अनुमति के, सरकारी दस्तावेज़ों की फ़ोटो खींचने के आरोप में हिरासत में ले लिया गया.

इसके बाद, उन पर आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम और दंड संहिता के तहत आरोप निर्धारित किए गए.

लम्बी न्यायिक प्रक्रिया

3 जुलाई 2022 को, ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने, अदालत को अपनी अन्तिम रिपोर्ट सौंपते हुए जानकारी दी कि रोज़ीना इस्लाम पर लगाए गए आरोपों पर कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं.

सात महीने बाद, स्वास्थ्य मंत्रालय की एक याचिका के बाद, जनवरी 2023 में, उसी अदालत ने पुलिस को फिर से आगे की जाँच करने का आदेश दिया.

इस मामले में अगली सुनवाई अब 28 फ़रवरी को होने की सम्भावना है.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने चिन्ता जताई है कि रोज़ीना इस्लाम मामले में लम्बी न्यायिक प्रक्रिया, बांग्लादेश और उससे इतर एक ख़तरनाक रुझान को दर्शाती है, जिसमें पत्रकारों व सम्पादकों के विरुद्ध, अक्सर गम्भीर, अप्रमाणित आरोप लगाए जाते हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार, महिला पत्रकारों को विशेष रूप से निशाना बनाया जाता है, और उन्हें अक्सर लिंग आधारित भेदभाव, उत्पीड़न व हिंसा का भी सामना करना पड़ता है.

प्रैस स्वतंत्रता पर बल

न्यायिक प्रक्रिया के नाम पर धमकियों, अपहरण, गिरफ़्तारियों, क़ैद, डराने-धमकाने, आवाज़ दबाने के माध्यम के रूप में, इस तरह के मामलों को अनसुलझा रखा जाता है.

विशेषज्ञों के अनुसार, “आलोचनात्मक रिपोर्टिंग को दबाने, प्रैस की स्वतंत्रता व अभिव्यक्ति की आज़ादी को कमज़ोर करने, और स्व-सैंसरशिप को प्रोत्साहन देने के लिए न्यायिक प्रणाली को औज़ार नहीं बनाया जाना चाहिए.”

विशेष रैपोर्टेयर ने ज़ोर देकर कहा कि स्वतंत्र, बिना किसी सैंसरशिप के, बेरोकटोक प्रैस ही, लोकतांत्रिक समाज का आधार है.

“हम सरकार से पत्रकारों और उनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक सुरक्षित व सक्षम वातावरण को बढ़ावा देने का आग्रह करते हैं, और साथ ही, हम अधिकारियों को तकनीकी परामर्श और समर्थन देने के लिए तैयार हैं.”

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने बांग्लादेश सरकार से पत्रकार रोज़ीना इस्लाम के ख़िलाफ़ आरोपों को वापस लेने और पत्रकारों व सम्पादकों के विरुद्ध अन्य पुराने मामलों को वापिस लेने का आग्रह किया है.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिए करती है.

ये पद मानद होते हैं और ये विशेषज्ञ यूएन कर्मचारी नहीं होते हैं. मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.