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भाषाई समृद्धता का जश्न, मातृ भाषा दिवस पर बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने की पुकार

थाईलैंड में कुछ छात्राएँ, अपनी मातृ भाषा में प्रकाशित कुछ किताबों के साथ.
© UNICEF/Arun Roisri
थाईलैंड में कुछ छात्राएँ, अपनी मातृ भाषा में प्रकाशित कुछ किताबों के साथ.

भाषाई समृद्धता का जश्न, मातृ भाषा दिवस पर बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने की पुकार

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने मंगलवार को अन्तरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस पर कहा है कि विषमताओं को ख़त्म करने और सर्वजन के मानवाधिकारों को प्रोत्साहन देने के लिए, बहुभाषी शिक्षा, एक अहम कुंजी है.

संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की महानिदेशक ऑड्री अज़ूले का कहना है कि अन्तरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस 1999 से, विश्व की लगभग छह हज़ार 700 भाषाओं की समृद्धता का जश्न मनाता आ रहा है.

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इस दिवस का लक्ष्य विश्व की भाषाई सुन्दरता का उत्सव मनाना है जिसके अन्तर्गत भाषाओं की विविधता को एक साझा विरासत के रूप में संजोना भी शामिल है. साथ ही सर्वजन के लिए, मातृ भाषा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए काम करना भी, इसका एक लक्ष्य है.

इस वर्ष इस दिवस की थीम “बहुभाषी शिक्षा – शिक्षा परिवर्तन के लिए एक अनिवार्यता” – वर्ष 2021 में हुए यूएन शिक्षा परिवर्तन सम्मेलन में की गई सिफ़ारिशों से मेल खाती है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश द्वारा आयोजित उस शिक्षा परिवर्तन सम्मेलन में, प्रतिभागियों ने, विशेष रूप से आदिवासी जन की शिक्षा और भाषाओं पर ध्यान आकर्षित किया था.

अफ़्रीका में है सर्वाधिक भाषाई विविधता

इन सिफ़ारिशों में ख़ामियों और भविष्य की चुनौतियों को भी रेखांकित किया गया है. यूनेस्को की हाल की रिपोर्ट – ‘सीखने के लिए जन्म’ में दिखाया गया है कि अफ़्रीका में, हर पाँच में से लगभग एक बच्चे को, उनकी मातृ भाषा में शिक्षा प्रदान की जाती है. अफ़्रीका सबसे ज़्यादा भाषाई विविधता वाला महाद्वीप है.

साथ ही, विश्व के लगभग 40 प्रतिशत शिक्षार्थियों को अपनी बोलचाल या समझने की भाषा में शिक्षा प्राप्ति की सुविधा नहीं है.

यूनेस्को की प्रमुख ऑड्री अज़ूले का कहना है कि इस स्थिति से, सीखने, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और सामाजिक सम्बन्ध बनाने की योग्यता गम्भीर रूप से कमज़ोर होती है, और यह, मानवता की भाषाई विरासत को बड़े पैमाने पर कमज़ोर करती है.

उन्होंने कहा, “इसलिए यह बहुत अहम है कि शिक्षा में बदलाव करने की अनिवार्य कार्रवाई में, भाषा के इस मुद्दे को ध्यान में रखा जाए.” आगे बढ़ते हुए, बेहतर सटीक कार्रवाई के लिए, बेहतर डेटा एकत्र किए जाने की दरकार है.

विविधता की नाज़ुक क़ीमत

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ऑड्री अज़ूले का कहना है, “अलबत्ता इसके लिए सबसे ज़्यादा, विश्व की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता की अपूर्णनीय, मगर नाज़ुक क़ीमत के बारे में सामान्य जागरूकता का विस्तार भी ज़रूरी है.”

“मानव जाति द्वारा बोली जाने वाली, सात हज़ार से भी ज़्यादा भाषाओं में से हर एक में, विश्व की एक अनोखी झलक समाई हुई है, चीज़ों की झलक, सोचने के तरीक़े और महसूस करने की झलक – यहाँ तक कि किसी एक भाषा के विलुप्त होने से, अपूर्णनीय क्षति होती है.”

दूसरी तरफ़ प्रगति भी देखने को मिल रही है. यूनेस्को आदिवासी भाषाओं के अन्तरराष्ट्रीय दशक (2022-2023) का नेतृत्व कर रहा है, जोकि विश्व भर के लिए, सांस्कृतिक विविधता के एक प्रमुख हिस्से के संरक्षण करने के प्रयासों में सक्रियता के लिए, एक महत्वपूर्ण अवसर है.

साथ ही, बहुभाषी शिक्षा की महत्ता के बारे में भी समझ बढ़ रही है, विशेष रूप से स्कूली शिक्षा के आरम्भिक दिनों में.

समावेशन की कुंजी

अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर फ़रनांड डे वैरेनेस का कहना है कि देशों को अल्पसंख्यक और आदिवासी भाषाओं के प्रयोग व उनके साथ अपने बर्ताव में, और ज़्यादा समावेशी होना होगा.

उन्होंने कहा, “वैश्विक भाषाई बुनावट की समृद्धि और सुन्दरता का जश्न मनाने के लिए, राष्ट्रवादी बहुसंख्यकवाद के नए रूपों से, दूर हटना बहुत अनिवार्य है, जिसमें ये माना जाता है कि समाजों और देशों को केवल एक भाषा का प्रयोग करना चाहिए और अन्य भाषाओं को हटा देना चाहिए.”

ये विचार, समावेशी समाजों से मेल नहीं खाता है, जिनमें भाषाई अल्पसंख्यकों और आदिवासी जन के मानवाधिकारों का सम्मान किया जाता है.

विशेष रैपोर्टेयर फ़रनांड डे वैरेनेस ने कहा, “भाषाएँ, संचार और ज्ञान, स्मृति, व इतिहास को साझा करने के अनिवार्य साधन हैं, मगर वो, पूर्ण व समान भागेदारी की कुंजी भी हैं.”

“अल्पसंख्यकों और आदिवासी जन को सशक्त बनाने के सर्वाधिक प्रभावशाली रास्तों में से एक ये भी है कि उन्हें शिक्षा में अपनी भाषाओं का प्रयोग करने की गारंटी हो.”

ऐसे में जबकि संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर में अन्तरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस, अनेक भाषाओं में मना रहा है तो, बांग्लादेश और उसके साझीदारों ने न्यूयॉर्क में यूएन मुख्यालय में एक बैठक आयोजित की. साथ ही, यूनेस्को ने भी फ्रांस में एक कार्यक्रम का आयोजन किया.