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टिकाऊ नील अर्थव्यवस्था, लघु देशों और तटीय आबादी के लिये बहुत अहम

हरित क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ बहुत प्रभावी प्रकृति आधारित समाधान हैं.
© Unsplash/Benjamin L. Jones
हरित क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ बहुत प्रभावी प्रकृति आधारित समाधान हैं.

टिकाऊ नील अर्थव्यवस्था, लघु देशों और तटीय आबादी के लिये बहुत अहम

जलवायु और पर्यावरण

दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत आबादी समुद्री तटवर्ती इलाक़ों में रहती है या उनके पास रहती है, तो उस आबादी की आजीविका को ध्यान में रखते हुए, लिस्बन में हो रहे यूएन महासगार सम्मेलन के दूसरे दिन, मंगलवार को, टिकाऊ महासागर आधारित अर्थव्यवस्थाओं और तटीय पारिस्थितिकियों के प्रबन्धन पर ध्यान केन्द्रित किया गया.

विश्व की तटीय आबादियाँ, वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान करती हैं, जोकि प्रतिवर्ष लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है. ये योगदान वर्ष 2030 तक बढ़कर 3 ट्रिलियन डॉलर तक होने की अपेक्षा है.

महासागर के पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य सुनिश्चित करने, आजीविकाओं को समर्थन देने और आर्थिक प्रगति में जान फूँकने के लिये, महत्वपूर्ण क्षेत्रों को लक्षित सहायता की दरकार है, जिनमें मछली पालन व शिकार, पर्यटन, ऊर्जा, जहाज़रानी व बन्दरगाह गतिविधियों के साथ-साथ, अक्षय ऊर्जा और समुद्री जैव विविधता जैसे नवाचारी क्षेत्र शामिल हैं.

समुद्री संसाधन आवश्यक

ये विशेष रूप में लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) के लिये विशेष महत्व का मुद्दा है जिनके लिये समुद्री संसाधन बहुत अहम सम्पदा हैं, जो उन्हें खाद्य सुरक्षा, पोषण, रोज़गार, विदेशी मुद्रा, और मनोरंजक गतिविधियाँ मुहैया कराते हैं.

इससे भी ज़्यादा, अगर साक्ष्य आधारित नीतिगत कार्यक्रम चलाए जाएँ तो, ये सम्पदाएँ आर्थिक वृद्धि, और कम विकसित देशों (LDCs) की समृद्धि में, वृहद और टिकाऊ योगदान कर सकती हैं.
टिकाऊ नील अर्थव्यवस्था का असली मतलब?

तंज़ानिया के किगोमा इलाक़े में धूम में मछलियाँ सुखाए जाते हुए.
© FAO/Luis Tato
तंज़ानिया के किगोमा इलाक़े में धूम में मछलियाँ सुखाए जाते हुए.

अभी नील अर्थव्यवस्था की कोई सार्वभौमिक स्तर पर स्वीकार्य परिभाषा उपलब्ध नहीं है, मगर विश्व बैंक इसे “आर्थिक वृद्धि, आजीविकाओं को बेहतर बनाने, और महासागर की पारिस्थितिकी के स्वास्थ्य का संरक्षण करते हुए, कामकाज व रोज़गार के लिये, महासागरीय संसाधनों के टिकाऊ प्रयोग” के रूप में परिभाषित करता है.

एक नील अर्थव्यवस्था सततता के तीनों स्तम्भों को प्राथमिकता देती है: पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक. जब टिकाऊ विकास के बारे में बात की जाती है तो एक नील अर्थव्यवस्था और एक महासागर अर्थव्यवस्था के बीच अन्तर को समझना बहुत ज़रूरी है. इस शब्द से तात्पर्य है कि यह पहल पर्यावरणीय रूप में टिकाऊ, समावेशी और जलवायु सहनशील है.

अभी कार्रवाई

तमाम महासागरों और समुद्रों के 30 प्रतिशत हिस्से पर, लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) का नियंत्रण है. मगर सवाल ये है कि ये देश और निजी क्षेत्र, टिकाऊ महासागर के लिये, किस तरह समान और जवाबदेह साझेदारियाँ बना सकते हैं?

यूएन महासागर सम्मेलन के दूसरे दिन विशेषज्ञों ने, SIDS कार्रवाई कार्यक्रम और टिकाऊ विकास लक्ष्य-14 में किये गए वादों को लागू करने की पुकार लगाते हुए, इसे सम्भव बनाने के लिये, निजी क्षेत्र के साथ सहयोग की सम्भावनाएँ तलाश किये जाने की महत्ता दोहराई. इस कार्यक्रम को SAMOA मार्ग भी कहा जाता है, और एसडीजी14 महासागरों के संरक्षण और टिकाऊ प्रयोग पर केन्द्रित है.

समुद्री घास पृथ्वी पर सबसे ज़्यादा विविध और मूल्यवान समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र है.
© Unsplash
समुद्री घास पृथ्वी पर सबसे ज़्यादा विविध और मूल्यवान समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र है.

बहुपक्षवाद का रास्ता

दुनिया भर में करोड़ों लोगों को मछली पालन और मछली शिकार से रोज़गार मिलता है, जिनमें से ज़्यादातर लोग विकासशील देशों में स्थित हैं, तो ऐसे स्वस्थ व सहनसक्षम समुद्री व तटीय पारिस्थितिकियाँ, टिकाऊ विकास से लिये मूलभूत हैं.

विकासशील देशों की सहनशीलता के लिये जो अन्य क्षेत्र अहम हैं, उनमें तटीय पर्यटन क्षेत्र भी है, जिससे कुछ लघु द्वीपीय विकासशील देशों के वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को 40 प्रतिशत या उससे भी ज़्यादा योगदान मिलता है.

इसी तरह समुद्री मछली शिकार व मछली पालन क्षेत्र है जो तीन अरब 20 करोड़ द्वारा लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली पशु प्रोटीन का औसतन 20 प्रतिशत हिस्सा मुहैया कराता है. ये योगदान, कुछ कम विकसित देशों में औसत खपत का 50 प्रतिशत तक हिस्सा है.

विश्व व्यापार संगठन (WTO) की महानिदेशिका न्गोज़ी ओकोन्जो-इवीला का कहना है कि बहुपक्षवाद के बिना, महासागर की समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता.

उन्होंने नील अर्थव्यवस्था मार्ग पर ज़ोर देते हुए कहा, “लघु द्वीपीय विकासशील देशों में, विशाल महासागर अर्थव्यवस्थाएँ बनने की क्षमता मौजूद है (…) अगर हम टिकाऊ तरीक़े से करें तो, हम विकास सम्भावनाओं का ताला खोल सकते हैं.”

सेनेगल में एक महिला मछलियाँ पकड़ने के बाद, बिक्री के लिये ले जाते हुए.
© FAO/Sylvain Cherkaoui
सेनेगल में एक महिला मछलियाँ पकड़ने के बाद, बिक्री के लिये ले जाते हुए.