अफ़ग़ानिस्तान: तालेबान से बातचीत ही है 'आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता'
संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारियों ने गुरूवार को सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों को जानकारी देते हुए बताया है कि अफ़ग़ानिस्तान में विनाशकारी भूकम्प, देश के समक्ष मौजूद अनेक आपात परिस्थितियों में से एक है, जिनसे बाहर निकलने के लिये यह ज़रूरी है कि तालेबान प्रशासन के साथ सम्वाद जारी रखा जाए.
सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों के राजदूतों ने अफ़ग़ानिस्तान में 22 जून को आए भूकम्प के पीड़ितों की स्मृति में एक मिनट का मौन रखा.
इसके बाद देश में यूएन मिशन के विशेष उप प्रतिनिधि रमीज़ अलकबरोफ़ और मानवीय राहत मामलों में संयोजन कार्यालय के अवर महासचिव मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने, उन्हें देश के हालात से अवगत कराया.
In remarks to #SecurityCouncil session on #Afghanistan today, UNAMA acting head @RamizAlakbarov briefed on swift humanitarian response to yesterday's devastating earthquake & called for concerted international support. More: https://t.co/5DwZYRiPNu pic.twitter.com/TbWUoOUBPt
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रमीज़ अलकबरोफ़ के अनुसार, देश में भूकम्प के कारण अब तक 800 लोगों की मौत की पुष्टि की जा चुकी है और चार हज़ार से अधिक घायल हुए हैं.
विशेष उप प्रतिनिधि ने कहा कि मौजूदा कठिन परिस्थितियों के बावजूद, आपसी सम्पर्क व सम्वाद जारी रखने की रणनीति ही आगे बढ़ने और क्षेत्रीय व अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एकमात्र रास्ता है.
विशेष उप प्रतिनिधि अलकबरोफ़ ने अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति पर गहरी चिन्ता व्यक्त की.
आम माफ़ी लागू किये जाने के बावजूद और तालेबान नेताओं द्वारा उसका सम्मान किये जाने के आश्वासन के बावजूद, यूएन मिशन को पूर्ववर्ती सरकार के साथ सम्बद्ध रहे लोगों की हत्याओं, बुरे बर्ताव और उनके मानवाधिकार उल्लंघन की विश्वसनीय खबरें निरन्तर प्राप्त हो रही हैं.
साथ ही, राष्ट्रीय प्रतिरोधी मोर्चे और आइसिल-केपी आतंकी गुट के साथ सम्बन्ध रखने के आरोप में लोगों के मानवाधिकार उल्लंघन की खबरें भी मिली हैं.
महिलाओं व लड़कियों को निशाना बनाकर पाबन्दियाँ लागू करने के आदेश भी जारी किये गए हैं जिनमें लड़कियों की माध्यमिक स्तर की शिक्षा पर प्रतिबन्ध, और अपना चेहरा ढँकने के लिये सरकारी आदेश भी शामिल हैं.
यूएन के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, इन नीतियों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव बहुत अधिक है, जबकि शिक्षा को नकारे जाने की मनोसामाजिक क़ीमत का हिसाब नहीं लगाया जा सकता है.
आर्थिक मुश्किलें बरक़रार
अफ़ग़ानिस्तान के समक्ष इस समय सबसे बड़ा मुद्दा आर्थिक संकट का है, जोकि हिंसक संघर्ष और दरिद्रता का एक बड़ा कारक है.
एक अनुमान के अनुसार, इस वर्ष अगस्त से अब तक देश की अर्थव्यवस्था 40 प्रतिशत तक सिकुड़ चुकी है, और बेरोज़गारी 13 प्रतिशत से बढ़कर 40 फ़ीसदी के आँकड़े को छू सकती है. निर्धनता की आधिकारिक दर 97 प्रतिशत तक होने की आशंका है.
विशेष उप प्रतिनिधि अलकबरोफ़ ने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि अगर अर्थव्यवस्था पुनर्बहाली नहीं हुई, और अर्थपूर्ण व सतत ढंग से आगे नहीं बढ़ी, तो अफ़ग़ान जनता को बार-बार मानवीय संकटों का सामना करना पड़ेगा.
अफ़ग़ानिस्तान जलवायु और भूराजनैतिक जोखिमों के प्रति बेहद सम्वेदनशील है. सूखा, बाढ़, बीमारियों का फैलाव आम लोगों व मवेशियों को प्रभावित कर रहा है और भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाएँ विषमताओं को और सघन बना रही हैं.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी होगी और भूख की मार टालने के लिये कृषि व खाद्य प्रणालियों पर ध्यान देना होगा. इससे बाल श्रम में कमी लाने, स्वास्थ्य हालात को बेहतर बनाने और सामाजिक विकास व बदलाव के लिये माहौल तैयार करने में मदद मिलेगी.
असुरक्षा और राजनैतिक भागीदारी से दूरी
इसके समानान्तर, रमीज़ अलकबरोफ़ ने बड़े पैमाने पर फैले हुए, बिना फटे पड़े विस्फोटकों की सफ़ाई पर भी ध्यान दिये जाने की बात कही है.
वहीं राजनैतिक मोर्चे पर, उन्होंने स्पष्ट किया है कि तालेबान का सत्ता पर लगभग पूर्ण वर्चस्व है, और हथियारबन्ध प्रतिरोध का उभरना, राजनैतिक भागीदारी से बाहर रखे जाने की वजह से है.
सुरक्षा हालात का अनुमान लगा पाना बेहद कठिन होता जा रहा है और तालेबान नेतृत्व के विरुद्ध सशस्त्र विरोधी गुटों द्वारा हमले मई महीने में दोगुने हो गए.
यूएन मिशन के विशेष उप प्रतिनिधि ने कहा कि आगामी महीने में, संयुक्त राष्ट्र की इच्छा, तालेबान प्रशासन के साथ राजनैतिक विचार-विमर्श व समावेशन को बढ़ावा देना जारी रखना है.
लाखों पर अकाल का ख़तरा
अफ़ग़ानिस्तान में 190 राहत संगठन अपना सहायता अभियान चला रहे हैं, और देश की क़रीब आधी आबादी यानि लगभग एक करोड़ 90 लाख लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं.
आपात राहत मामलों के प्रमुख मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने बताया कि इनमें से 60 लाख लोगों को आपात स्तर की खाद्य असुरक्षा से जूझना पड़ रहा है, जोकि किसी भी देश में सबसे बड़ी संख्या है.
दिसम्बर 2021 में सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पारित करके, सहायता धनराशि को तालेबान के हाथों में जाने से रोकने और अफ़ग़ान नागरिकों तक राहत पहुँचाने का मार्ग प्रशस्त किया था.
उन्होंने कहा कि मानवीय राहतकर्मी रिकॉर्ड संख्या में लोगों तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अब भी एक लम्बी पहाड़ी पर चढ़ाई करनी है.
इसके अलावा, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक एजेंसियाँ, लाभार्थियों के चयन में अपनी भूमिका चाहती हैं, और वे उन लोगों तक राहत पहुँचा रही हैं, जोकि उनकी प्राथमिकता सूची में सबसे आगे हैं, और ये यूएन अधिकारियों के साथ किये गए वादों को मरोड़ता है.
बढ़ती दख़लअन्दाज़ी
मार्टिन ग्रिफ़िथ्स के अनुसार, मानवीय राहतकर्मियों से तालेबान प्रशासन की मांग है कि बजट और कर्मचारियों के अनुबन्ध के सिलसिले में आँकड़े और जानकारी साझा की जाएँ.
ग़ैर-सरकारी संगठनों के लिये कुछ विशेष पदों पर महिलाओं को रोज़गार दे पाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है.
उन्होंने बताया कि अतीत के महीनों की तुलना में यह दख़लअन्दाज़ी अधिक है, और उसे तालेबान के साथ सम्पर्क व सम्वाद के ज़रिये सुलझाया जाता है.
मगर, एक मुद्दे के निपटारे के बाद, कोई दूसरा आ जाता है, जिसकी वजह से राहत संगठनों, समुदायों और स्थानीय प्रशासन में अब हताशा बढ़ रही है.
अवर महासचिव मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने सहायता धनराशि की आवश्यकता को रेखांकित किया. अफ़ग़ानिस्तान के लिये चार अरब डॉलर की मानवीय राहत योजना में से केवल एक-तिहाई धनराशि का ही प्रबन्ध हो पया है, जबकि मार्च में दो अरब 40 करोड़ डॉलर के संकल्प लिये गए थे.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह समय हिचकिचाहट दिखाने का नहीं है, चूँकि हस्तक्षेप के अभाव में भूख और कुपोषण की स्थिति बद से बदतर होगी, जिसके विनाशकारी नतीजे होंगे.