'म्याँमार का बहुकोणीय संकट नाटकीय रूप में गहराया और फैला है'
म्याँमार के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत नोएलीन हेयज़र ने सोमवार को यूएन महासभा में बताया है कि देश में फ़रवरी 2021 में सैन्य तख़्तापलट के बाद शुरू हुए राजनैतिक संकट ने, ऐसे अनेक मोर्चे खोल दिये हैं जहाँ लम्बे समय से शान्ति क़ायम थी, और देश में चुनौतियाँ ज़्यादा गहरी होने के साथ-साथ, उनका दायरा भी नाटकीय तरीक़े से फैला है.
नोएलीन हेयज़र ने कहा कि छह महीने पहले जब उन्होंने अपनी ये ज़िम्मेदारी संभाली थी, तब से देश, एक गम्भीर व व्यापक संघर्ष में धँसता चला जा रहा है.
Happening today: General Assembly is briefed by Special Envoy Noeleen Heyzer on the conflict and multidimensional crisis in Myanmar. Happening now in the Trusteeship or via @UNWebTV https://t.co/VkMZREJH7m pic.twitter.com/47zamXlJaj
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उन्होंने ध्यान दिलाया कि म्याँमार पहले ही दुनिया की सबसे बड़ी शरणार्थी आपदाओं में से एक है, और वहाँ बहुकोणीय संकटों ने लगभग दस लाख लोगों को, देश के भीतर ही विस्थापित कर दिया है, जिसके गम्भीर क्षेत्रीय और अन्तरराष्ट्रीय परिणाम हैं.
लगभग दस लाख रोहिंज्या लोग, जिनमें मुख्यतः मुस्लिम हैं, वो पड़ोसी बांग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं, और लाखों अन्य लोग, पूरे क्षेत्र में बिखरे हुए हैं.
एक मायूस पीढ़ी
इस संकट के परिणामस्वरूप देश के संस्थानों का पतन हुआ है, और सामाजिक व आर्थिक ढाँचे में व्यवधान उत्पन्न हुआ है - जिनमें स्वास्थ्य, शिक्षा, बैंकिंग, खाद्य सुरक्षा और रोज़गार शामिल हैं – जबकि आपराधिक व ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियाँ बढ़ी हैं.
और पिछले पाँच वर्षों के दौरान, निर्धनता में जीवन जीने वाले लोगों की संख्या दो गुनी हो गई है जो देश की कुल आबादी के आधे हिस्से से भी ज़्यादा हो गई है.
विशेष दूत ने कहा, “आज लगभग एक करोड़ 44 लाख लोगों, यानि देश की कुल आबादी के लगभग एक चौथाई हिस्से को, तत्काल मानवीय सहायता की अवश्यकता है.”
साथ ही, कोविड-19 महामारी और राजनैतिक संकट के बाद, पिछले दो साल के दौरान, स्कूलों में दाख़िल छात्रों की संख्या में, 80 प्रतिशत तक की कमी आई है, और लगभग 78 लाख बच्चे स्कूली शिक्षा से बाहर हो गए हैं.
उन्होंने आगाह करते हुए कहा, “वो पीढ़ी जो लोकतांत्रिक बदलाव से लाभान्वित हुई थी, अब उसका भ्रम टूट चुका है, ये पीढ़ी अब गम्भीर कठिनाइयों से गुज़र रही है और ये दुखद है, जैसाकि बहुत से लोग सोचते हैं कि उनके पास अब हथियार उठाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है.”
संघर्ष एक सामान्य स्थिति
चूँकि सैन्य हिंसा और अविश्वास लगातार गहराया है, जिसमें शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध हिंसा भी शामिल है, तो सभी देश वासियों के लिये सशस्त्र संघर्ष, अब एक सामान्य स्थिति बन गई है.
विशेष दूत ने कहा, “सेना ने ज़रूरत से ज़्यादा बल प्रयोग करना जारी रखा हुआ है, सेना ने आम लोगों पर अपने हमले और ज़्यादा बढ़ा दिये हैं व विपक्षी ताक़तों के ख़िलाफ़ अपने अभियान तेज़ कर दिये हैं, जिनमें हवाई हमले भी शामिल हैं.“
“नागरिक इमारतें और गाँव आग में तबाह हुए हैं और देश के भीतर ही विस्थापित आबादियों पर भी हमले किये गए हैं.”
इस बीच ऐसी ख़बरें मिली हैं कि लगभग 600 सशस्त्र विद्रोही गुट या ‘लोक रक्षा बल’, लड़ाई में सक्रिय हो गए हैं, जिनमें से कुछ गुट उन लोगों को निशाना बनाकर हत्याएँ कर रहे हैं जिन्हें सेना-समर्थक समझा जाता है.
बेसहारा छोड़ दिये जाने की भावना
नोएलीन हेयज़र ने कहा कि वो तनाव और संघर्ष को कम करने के प्रयासों में, दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन – आसियान (ASIAN) के निकट सहयोग के साथ काम कर रही हैं.
अलबत्ता उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि क्षेत्रीय स्तर पर और उससे भी ज़्यादा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के दरम्यान जारी मतभेदों के कारण, म्याँमार के लोगों में ये भावना घर कर गई है कि उन्हें ज़रूरत की इस घड़ी में बेसहारा छोड़ दिया गया है.
रोहिंज्या की याद
अस्थिरता और संघर्ष ने कमज़ोर हालात वाले समुदायों के लिये जोखिम और ज़्यादा बढ़ा दिया है जिनमें रोहिंज्या भी शामिल हैं.
विशेष दूत ने एक बहु-मार्गीय रणनीति तैयार की है जिसमें मानवीय और संरक्षण ज़रूरतों पर ध्यान दिया गया है. साथ ही नागरिक शासन की वापसी, प्रभावशाली और लोकतांत्रिक प्रशासन, और रोहिंज्या मुद्दे का एक टिकाऊ समाधान भी शामिल हैं.
ध्यान रहे कि ज़्यादातर रोहिंज्या 2017 में सरकारी सेनाओं के हिंसक उत्पीड़न से बचने के लिये बांग्लादेश पहुँचे हैं. संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन मानवाधिकार प्रमुख ने, इस मामले को नस्लीय सफ़ाए का एक प्रखर उदाहरण क़रार दिया था.
नोएलीन हेयज़र ने कहा, “रोहिंज्या लोगों के लिये टिकाऊ समाधान, एक शान्तिपूर्ण, समावेशी व लोकतांत्रिक म्याँमार की रूपरेखा में समाहित होने चाहिये.”