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बर्बादी के ढेर पर फ़लस्तीनी अर्थव्यवस्था, ग़ाज़ा युद्ध ने विकास को दो दशक पीछे धकेला

इसराइली सैन्य बलों की वापसी के बाद ख़ान यूनिस शहर, जहाँ लड़ाई में भारी बर्बादी हुई है.
© UNOCHA/Themba Linden
इसराइली सैन्य बलों की वापसी के बाद ख़ान यूनिस शहर, जहाँ लड़ाई में भारी बर्बादी हुई है.

बर्बादी के ढेर पर फ़लस्तीनी अर्थव्यवस्था, ग़ाज़ा युद्ध ने विकास को दो दशक पीछे धकेला

आर्थिक विकास

ग़ाज़ा पट्टी में युद्ध और अनवरत इसराइली बमबारी ने फ़लस्तीन के सामाजिक-आर्थिक विकास को 20 वर्ष पीछे धकेल दिया है. गुरूवार को प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में संकटग्रस्त ग़ाज़ा में मौजूदा आर्थिक हालात का आकलन किया गया है.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और पश्चिमी एशिया के लिए आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (ESCWA) के एक साझा अध्ययन के अनुसार, 7 अक्टूबर को इसराइल पर हमास के आतंकी हमलों और फिर इसराइल की जवाबी कार्रवाई के बाद फ़लस्तीनी अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है.

फ़लस्तीन में निर्धनता दर बढ़कर 58.4 प्रतिशत पर पहुँच गई है, जिससे 17 लाख से अतिरिक्त लोग निर्धनता के गर्त में धँसे हैं.

वहीं, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 26.9 प्रतिशत की गिरावट आई है, जिससे वर्ष 2023 में युद्ध से पहले की तुलना में 7.1 अरब डॉलर की हानि हुई है.

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UNDP प्रशासक एखिम स्टाइनर ने बताया कि युद्ध का हर दिन बीतने के साथ ग़ाज़ावासियों और सभी फ़लस्तीनियों पर युद्ध की विशाल क़ीमत बढ़ती जा रही है, अभी और मध्यम व दीर्घकाल में भी.

“जन हानि के अभूतपूर्व स्तर, पूँजी के विध्वंस और इतने कम समय में निर्धनता में ऊँचे उछाल से, विकास का एक गम्भीर संकट और गहरा होगा, जिससे आने वाली पीढ़ियों के भविष्य पर ख़तरा है.”

पीड़ा का फ़िलहाल अन्त नहीं

नए विश्लेषण के अनुसार, युद्ध के लम्बा खिंचने की स्थिति में और भी अधिक गम्भीर असर होने की आशंका है.

यदि लड़ाई नौ महीनों के लिए जारी रही तो निर्धनता का स्तर बढ़कर दोगुना होने, 60.7 प्रतिशत पर पहुँचने की आशंका है, जोकि 18.6 लाख अतिरिक्त लोगों को निर्धनता की ओर धकेल देगा.

सकल घरेलू उत्पाद में 29 प्रतिशत की गिरावट आने की सम्भावना होगी, जोकि कुल 7.6 अरब डॉलर की हानि को दर्शाएगा.

आकलन में मानव वाकस सूचकांक (HDI) में भी तेज़ गिरावट आने के प्रति आगाह किया गया है, जोकि किसी देश की आबादी के कल्याण व आर्थिक-सामाजिक स्थिति का सूचक है.

अध्ययन के अनुसार, फ़लस्तीनी राष्ट्र के लिए मानव विकास सूचकांक लुढ़कर 0.647 तक पहुँच सकता है और प्रगति 2004 के समय में पहुँच सकती है.

ग़ाज़ा में स्थिति बदतर

ग़ाज़ा के लिए अनुमान और अधिक गम्भीर हो सकते हैं. यदि नौ महीने तक युद्ध जारी रहा तो वहाँ मानव विकास सूचकांक 0.551 पर पहुँचने की आशंका है जिससे प्रगति 44 वर्ष पीछे पहुँच जाएगी. 

पश्चिमी एशिया के लिए यूएन आयोग की कार्यकारी सचिव रोला डश्टी ने बताया कि ग़ाज़ा में बड़े पैमाने पर तबाही की स्थिति में यह क्षेत्र पूर्ण रूप से बाहरी सहायता पर निर्भर हो सकता है.

उन्होंने कहा कि अतीत के युद्धों की तुलना में, ग़ाज़ा में इस बार अभूतपूर्व स्तर पर बर्बादी हुई है और व्यापक पैमाने पर घरों, आजीविका, प्राकृतिक संसाधनों, बुनियादी ढाँचों को नुक़सान पहुँचा है.

इसका असर गहरा है और आने वाले कई दशकों तक जारी रह सकता है. रोला डश्टी के अनुसार, आकलन के अनुसार, इस स्थिति में ग़ाज़ा जिस तरह से बाहरी सहायता पर निर्भर होगा, वैसा स्तर 1948 के बाद से नहीं देखा गया है.

ना तो यहाँ अर्थव्यवस्था होगी, ना ही उत्पादन के ज़रिये होंगे, ना ही रोज़गार और ना ही व्यापार के लिए क्षमता बचेगी. 

इससे पहले विश्व बैन्क और संयुक्त राष्ट्र के एक नए विश्लेषण में बताया गया था कि ग़ाज़ा में जनवरी 2024 तक, बुनियादी ढाँचे को 18.5 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ है, जोकि 2022 में फ़लस्तीन के कुल जीडीपी का 97 प्रतिशत है.