यूक्रेन: रूसी क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में ‘भय का माहौल’, मानवाधिकार कार्यालय की रिपोर्ट
रूसी महासंघ ने यूक्रेन में अपने नियंत्रण वाले इलाक़ों में भय का एक माहौल पैदा किया है और स्थानीय आबादी पर अपना नियंत्रण बढ़ाने के लिए व्यापक पैमाने पर अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी और मानवाधिकार क़ानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) की एक नई रिपोर्ट में ये निष्कर्ष सामने आए हैं.
रूस द्वारा यूक्रेन के क्राइमिया और सेवस्तोपोल इलाक़ों पर क़ब्ज़ा किए जाने के दस वर्ष पूरे हो गए हैं, मगर इस रिपोर्ट में उन यूक्रेनी इलाक़ों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिन्हें रूस ने 24 फ़रवरी 2022 को पूर्ण स्तर पर सशस्त्र आक्रमण के बाद अपने क़ब्ज़े में लिया था.
रूसी सैन्य कार्रवाई में यूक्रेन के दोनेत्स्क, लुहांस्क, ख़ेरसॉन और ज़ैपोरिझझिया इलाक़ों को छीनने के प्रयास हुए हैं.
यह रिपोर्ट पीड़ितों व प्रत्यक्षदर्शियों के साथ 2,300 इंटरव्यू पर आधारित है, जिसमें क़ाबिज़ इलाक़ों में रूसी भाषा, नागरिकता, क़ानून, कोर्ट प्रणाली, और शिक्षा पाठ्यक्रम थोपे जाने के लिए उठाए गए क़दमों का ब्यौरा दिया गया है.
रिपोर्ट में चिन्ता जताई गई है कि इन क्षेत्रों में यूक्रेनी संस्कृति व पहचान की अभिव्यक्तियों को दबाने और यूक्रेन की प्रशासनिक व्यवस्था को हटाने की कोशिशें भी की गई हैं.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने कहा, “रूसी महासंघ के क़दमों से समुदायों का सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो गया है और लोग अलग-थलग पड़ गए हैं. इसके सम्पूर्ण यूक्रेनी समाज के लिए गहरे और लम्बे समय तक जारी रहने वाले नतीजे होंगे.”
रिपोर्ट के अनुसार, रूसी सैन्य बलों ने आम तौर पर दंडमुक्ति की भावना के साथ व्यापक पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन को अंजाम दिया.
इसके तहत, आम नागरिकों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया, उन्हें यातना देने व बुरा बर्ताव किए जाने की घटनाएँ हुईं और लोगों के जबरन ग़ायब हो जाने के मामले भी सामने आए.
मानवाधिकारों पर प्रहार
यूएन कार्यालय का कहना है कि रूसी सैन्य बलों ने शुरुआत में उन व्यक्तियों को निशाना बनाया, जिनसे सुरक्षा के लिए ख़तरा था, मगर फिर बाद में इसका दायरा बढ़ाते हुए उन व्यक्तियों को भी फंदे में ले लिया गया, जोकि इस क़ब्ज़े के विरोध में था.
इसके अलावा, रूसी बलों द्वारा शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों को कुचले जाने, स्वतंत्र अभिव्यक्तियों पर पाबन्दी लगाए जाने, स्थानीय लोगों की आवाजाही पर सख़्त नियंत्रण थोपे जाने और घरों व व्यवसायों में लूटपाट के भी आरोप लगे हैं.
बताया गया है कि यूक्रेन के क़ाबिज़ इलाक़ों में इंटरनैट व मोबाइल नैटवर्क, टीवी व रेडियो चैनल को बन्द कर दिया गया और रूसी नैटवर्क के ज़रिये ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध कराई गई ताकि उसे नियंत्रित किया जा सके.
मगर, इस वजह से यूक्रेनी आबादी के लिए स्वतंत्र समाचार स्रोतों, परिजनों और मित्रों से जानकारी पाना मुश्किल हो गया. लोगों को एक दूसरे की गतिविधियों के बारे में गोपनीय ढंग से जानकारी देने के लिए प्रोत्साहित किया गया, जिससे अपने मित्रों व पड़ोसियों के प्रति भय पनपा.
पहचान व संस्कृति पर असर
रिपोर्ट के अनुसार, रूसी महासंघ ने यूक्रेनी पहचान की अभिव्यक्तियों को दबाने के लिए भी क़दम उठाए, जिसका बच्चों पर विशेष रूप से असर पड़ा.
रूसी महासंघ ने अनेक स्कूलों में यूक्रेनी पाठ्यक्रम के बजाय रूसी पाठ्यक्रम शुरू किया, और ऐसी किताबें शुरू कीं, जिनमें यूक्रेन पर सशस्त्र हमले को न्यायसंगत ठहराया गया था.
इसके अलावा, बच्चों को युवजन समूह में भी भर्ती किया गया ताकि देशभक्ति की रूसी अभिव्यक्तियों को बच्चों में पोषित किया जा सके.
क़ाबिज़ इलाक़े में लोगों को रूसी पासपोर्ट लेने का दबाव डाला गया. इसे अस्वीकार करने वाले लोगों को अपनी आवाजाही की आज़ादी पर पाबन्दियों का सामना करना पड़ा और उन्हें सार्वजनिक सैक्टर में रोज़गार, स्वास्थ्य देखभाल की सुलभता और संरक्षा लाभ भी नहीं दिए गए.
जवाबदेही पर बल
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने रूसी महासंघ से तत्काल यूक्रेन पर सशस्त्र हमला रोकने और अन्तरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमाओं से पीछे हटने का आग्रह किया है, और इसे यूएन महासभा व अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के प्रासंगिक प्रस्तावों के अनुरूप किया जाना होगा.
उन्होंने कहा कि क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में स्थानीय आबादी के अधिकारों के हनन मामलों में व्यापक स्तर पर जवाबदेही को तय किए जाने की ज़रूरत है, ताकि आपराधिक न्याय सुनिश्चित करने के साथ-साथ, सच व हर्जाना समेत अन्य क़दम उठाए जा सके ताकि फिर ऐसी घटनाएँ ना दोहराई जाएं.
वोल्कर टर्क के अनुसार, इन सभी मामलों में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को यूक्रेन का समर्थन करना चाहिए.