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भारत: भूमिहीन प्रवासी श्रमिक से, मुखर सामुदायिक नेत्री तक का सफ़र

स्वयं सहायता समूह से प्रशिक्षण के बाद महिलाओं में भारी मशीनरी चलाने का आत्मविश्वास आ गया.
UNWOMEN India/Ruhani Kaur
स्वयं सहायता समूह से प्रशिक्षण के बाद महिलाओं में भारी मशीनरी चलाने का आत्मविश्वास आ गया.

भारत: भूमिहीन प्रवासी श्रमिक से, मुखर सामुदायिक नेत्री तक का सफ़र

महिलाएँ

भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्वयं सहायता समूह, घूंघट के पीछे छुपकर ज़िन्दगी गुज़ारने को मजबूर महिलाओं के उत्थान के प्रयास कर रहे हैं, जिससे वो महिलाएँ आर्थिक सशक्तिकरण के ज़रिए, समुदाय की मूक सदस्य बने रहने भर के बजाय, एक प्रभावी कामकाजी महिला बनने व समुदायों का नेतृत्व करने में सक्षम हो रही हैं. इन महिलाओं की प्रेरक कहानी को यूएनवीमेन के प्रकाशन में स्थान मिला है.  

मध्य प्रदेश के बड़वानी ज़िले में वारला ब्लॉक की निवासी, सुमली बाई गंगाराम कहती हैं, “कुछ साल पहले तक, पारम्परिक आदिवासी पोशाक पहनने वाली महिलाओं को, बसों में अपनी सीटें, शर्ट-पैंट पहने पुरूषों के लिए ख़ाली कर देनी पड़ती थीं. लेकिन अब हम जानते हैं कि हमने भी टिकट के लिए भुगतान किया है और हमें बैठे रहने का पूरा हक़ है.'' 

महिलाओं में यह जागरूकता, भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के स्थानीय स्वयं सहायता समूहों के अथक प्रयासों का परिणाम है. इसका उद्देश्य, निर्धन ग्रामीण परिवारों तक पहुँचकर, उन्हें स्थाई आजीविका के अवसरों से जोड़ना है. आठ वर्ष पहले स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के बाद, सुमली बाई का जीवन बदलने लगा. 

हालाँकि, यह सफ़र आसान नहीं रहा है.

वो याद करते हुए बताती हैं, ''हमारे पास स्वयं सहायता समूह में भर्ती के लिए 100 रुपये तक नहीं थे. हमने किसी तरह 10-12 महिलाओं को इकट्ठा तो किया, लेकिन वे बैठकों में बोल नहीं पाती थीं, क्योंकि उन्हें कभी घर में बोलने नहीं दिया जाता था."

महिलाओं द्वारा संचालित एक हल्दी का क़ारखाना.
UNWOMEN India/Ruhani Kaur

वो, अगले दो से तीन वर्षों में, एसएचजी लक्ष्मी सहायता समूह की अध्यक्ष बनीं. वर्तमान में, वह 200 स्वयं सहायता समूहों के संघ, बलवाड़ी आदिवासी महिला मंडल की अध्यक्ष हैं, जिसमें लगभग डेढ़ हज़ार महिला सदस्य शामिल हैं.

कभी मौसमी प्रवासी रही एक अशिक्षित महिला, जिसे आजीविका अर्जित करने के लिए सीमावर्ती महाराष्ट्र की ओर पलायन करना पड़ता था, आज अपने समुदाय की महिलाओं की वित्तीय साक्षरता सुनिश्चित करने में मदद कर रही हैं. 

प्यार से सुमली दीदी के नाम से मशहूर सुमली बाई, बचत, क्रेडिट और ऋण के बारे में जानकारी देती हैं, जिससे एसएचजी की जवाबदेही बेहतर करने में मदद मिली है और आय सृजन गतिविधियों के लिए आसान ऋण के प्रावधान से, शोषक साहूकारों पर उनकी निर्भरता कम हो गई है.

इस सफ़र में उन्होंने कई वर्जनाएँ तोड़ीं - और अब वो, अपने गाँव की आदिवासी न्याय समिति की सदस्य भी हैं. यह समिति, पारम्परिक रूप से पुरुष-प्रधान इकाई है, जहाँ पहले महिलाओं का प्रवेश वर्जित था.

वह कहती हैं, “मुझे यह बहुत अजीब लगता था कि पुरुष, महिलाओं से परामर्श किए बिना ही, महिलाओं के मुद्दों पर निर्णय लेते थे. इसलिए, महिलाओं की राय के बिना सुनाए गए फ़ैसलों का मैंने विरोध करना शुरू कर दिया.'' 

आर्थिक उन्नति की राह पर अग्रसर महिलाएँ.
UNWOMEN India/Ruhani Kaur

सुमली बाई ने, अध्यक्ष के रूप में विभिन्न मंचों पर अपने महासंघ का प्रतिनिधित्व करते हुए, जनपद व पंचायत स्तर के अधिकारियों, पुलिस स्टेशन एवं स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि उनके समुदाय के लोगों को, उनके आधार कार्ड, श्रमिक कार्ड, स्वास्थ्य कार्ड, मृदा कार्ड, पेंशन अधिकार व अन्य प्रासंगिक सरकारी दस्तावेज़ मिल सकें.

उन्होंने एक खुली जगह भी बनाई है जहाँ विशेषकर ग्रामीण महिलाएँ, अपनी समस्याएँ और चुनौतियाँ, सामूहिक समाधान के लिए ला सकती हैं. 

सुमली बाई कहती हैं, ''घरेलू हिंसा के मामले में यह ख़ासतौर पर बहुत मददगार रहा है.''

उन्होंने बताया, "हम जब से स्वयं सहायता समूह में शामिल हुए हैं, हमारा घूंघट हट गया है और सम्मान बढ़ गया है. अब हम पुलिस स्टेशन में जा सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर सीधे ज़िला कलैक्टर से भी पूछताछ कर सकते हैं.'' 

वो गर्व से कहती हैं, “महिलाओं के पास कभी आर्थिक शक्ति व सम्मान नहीं था; लेकिन अब हम आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं और हमें सब से सम्मान मिलता है.''